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व्याख्या (Explanation)

 

व्याख्या (Explanation)

'व्याख्याकिसी भाव या विचार के विस्तार और विवेचन को कहते हैं।

व्याख्या  भावार्थ है आशय। यह इन दोनों से भित्र है। नियम भी भित्र है। 'व्याख्याकिसी भाव या विचार के विस्तार और विवेचन को कहते हैं। इसमें परीक्षार्थी को अपने अध्ययनमनन और चिन्तन के पदर्शन की पूरी स्वतन्त्रा रहती है।

व्याख्या के प्रकार

प्रसंग निर्देश व्याख्या का अनिवार्य अंग है। इसलिएव्याख्या लिखने के पूर्व प्रसंग का उल्लेख कर देना चाहिएपर प्रसंगनिर्देश संक्षिप्त होना चाहिए। परीक्षाभवन में व्याख्या लिखते समय परीक्षार्थी प्रायः दो-दोतीन-तीन पृष्ठों में प्रसंगनिर्देशकरते है और कभी-कभी मूलभाव से दूर जाकर लम्बी-चौड़ी भूमिका बांधने लगते हैं। यह ठीक नहीं। उत्तम कोटि की व्याख्या में प्रसंगनिर्देश संक्षिप्त होता है। ऐसी कोई भी बात  लिखी जायजो अप्रासंगिक हो। अप्रासंगिक बातों को ठूँस देने से अव्यवस्था उत्पत्र हो जाती है। अतः परीक्षार्थी को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि व्याख्या में कोई बात फिजूल और बेकार  हो। प्रसंगनिर्देशविषय के अनुकूल होना चाहिए।

व्याख्या में मूल के भावों और विचारों का समुचित और सन्तुलित विवेचन होना चाहिए। यहाँ परीक्षार्थीको अपनी स्वतन्त्र बुद्धि और विद्या से काम लेने का पूरा अधिकार है। विषय के विवेचन में विचारों के सत्यासत्य का निर्णय किया जाता है। इसलिएविचारो का विवेचन में विचारों के सत्यासत्य का निर्णय किया जाता है। इसलिएविचारों का विवेचन करते समय छात्र को विषय के गुण और दोषदोनों की समीक्षा करनी चाहिए। यदि वह चाहेंतो उसके एक ही पक्ष का विवेचन कर सकता है। लेकिनअच्छी व्याख्या में विचारों या भावों का सन्तुलित विवेचन अपेक्षित है। यदि छात्र मूल के भावों से सहमत हैतो उसे उसकी तर्कसंगत पुष्टि करनी चाहिए और यदि असहमत हैतो वह उसका खण्डन भी कर सकता है।

व्याख्या में खण्डन-मण्डन से पहले मूल के भावों का सामान्य अर्थ अथवा भावार्थ लिख देना चाहिएताकि परीक्षक यह जान सके कि छात्र ने उसका सामान्य अर्थ भली भाँति समझ लिया है। व्याख्या में भावार्थ अथवा आशय का इतना ही काम है। भावार्थ के बाद विषय का विवेचन होना चाहिए।

व्याख्या लिखने के लिए पहले लम्बी-लम्बी पंक्तियाँ दी जाती थी। लेकिन अब एक-दो पंक्तियों या वाक्यों का अवतरण दिया जाता है। इन दो तरह के अवतरणों की व्याख्या लिखते समय थोड़ी सावधानी बरतनी चाहिए। जब कोई बड़ा-सा अवतरण व्याख्या के लिए दिया जायतब समझना चाहिए कि इसमें अनेक विचारों का समावेश हो सकता है। ऐसी स्थिति में विद्यार्थी को अवतरण के मूल और गौण भावों की खोज करनी चाहिए। इसके विपरीतजब एक-दो पंक्तियों का अवतरण दिया जायतब छात्रों को उन्हीं शब्दों का विवेचन करना चाहिएजिनसे भाव स्पष्ट हो जाय। छोटे अवतरणों में भावों की अधिकता रहती है। व्याख्या में इन्हीं गूढ़ भावों का विस्तार होना चाहिए।

सम्यक विवेचन के बाद अन्त में कठिन शब्दों का अर्थटिप्पणी के रूप में दे देना चाहिए। इस तरह व्याख्या समाप्त होती है।

व्याख्या के लिए आवश्यक निर्देश

मूल अवतरण से व्याख्या बड़ी होती है। इसकी लम्बाई-चौड़ाई के सम्बन्ध में कोई निश्र्चित सलाह नहीं दी जा सकती। छात्रों को सिर्फ यह देखना है कि मूल भावों अथवा विचारों का समुचित और सन्तोषजनक विवेचन हुआ या नहीं। इन बातों को ध्यान में रखकर अच्छी और उत्तम व्याख्या लिखी जा सकती है। इसके बजाय इसमें निम्नलिखित बातें होनी चाहिए-

(1) व्याख्या में प्रसंग-निर्देश अत्यावश्यक है।

(2) प्रसंग-निर्देश संक्षिप्तआकर्षक और संगत होना चाहिए। 

(3) व्याख्या में मूल विचार या भाव का संतोषपूर्ण विस्तार हो 

(4) अंत में शब्दार्थ लिखे जायँ 

(5) मूल के विचारों का खण्डन या मण्डन किया जा सकता है।

(6) मूल के विचारों के गुण-दोषों पर समानरूप से प्रकाश डालना चाहिए। 

(7) यदि कोई महत्त्वपूर्ण बात होतो उसपर अन्त में टिप्पणी दे देनी चाहिए।

उदाहरण -

तुमने मुझे पहचाना नहीं। तुम्हारी आँखों पर चर्बी छाई हुई है। कंगाल ही कलियुग का कल्कि-अवतार है।

व्याख्याये पंक्तियाँ हिंदी के सुप्रसिद्ध कहानी-लेखक राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह की कहानी 'दरिद्रनारायणसे ली गयी हैं। इन पंक्तियों में लेखक धनवानों को यह बताना चाहता है कि इस युग में कंगाल ही भगवान है। वे भगवान को पाने के लिए तीर्थो में जाकर पंडों को धन का दान करते हैपर वह धन कंगालों या गरीबों को मिलना चाहिएक्योंकि कंगाल ही धन के सही अधिकारी हैं। धनी लोग धन के घमंड में चूर हैवे गरीबों की दर्दभरी कहानी नहीं सुनते। उनकी आँखों पर घमंड का चश्मा चढ़ा है या उनपर चर्बी छायी है। जबतक वे इस चश्मे को उतार नहीं फेंकतेतबतक कलियुग के कल्कि-अवतार के दर्शन नहीं कर सकते। इस युग का भगवान कंगाल हैगरीब है। उसकी सेवा ही आज भगवान की सबसे बड़ी पूजा है।









हिन्दी व्याकरण 

•   भाषा   •   लिपि   •   व्याकरण   •   वर्ण,वर्णमाला   •   शब्द   •   वाक्य   •   संज्ञा   •   सर्वनाम   •   क्रिया   •   काल   •   विशेषण   •   अव्यय   •   लिंग   •   उपसर्ग   •   प्रत्यय   •   तत्सम तद्भव शब्द   •    संधि 1   •  संधि 2   •   कारक   •   मुहावरे 1   •   मुहावरे 2   •   लोकोक्ति   •   समास 1   •   समास 2   •   वचन   •   अलंकार   •   विलोम   •   अनेकार्थी शब्द   •  अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 1   •   अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 2   •   पत्रलेखन   •   विराम चिह्न   •   युग्म शब्द   •   अनुच्छेद लेखन   •   कहानी लेखन   •   संवाद लेखन   •   तार लेखन   •   प्रतिवेदन लेखन   •   पल्लवन   •   संक्षेपण   •   छन्द   •   रस   •   शब्दार्थ   •   धातु   •   पदबंध   •   उपवाक्य   •   शब्दों की अशुद्धियाँ   •   समोच्चरित भिन्नार्थक शब्द   •   वाच्य   •   सारांश   •   भावार्थ   •   व्याख्या   •   टिप्पण   •   कार्यालयीय आलेखन   •   पर्यायवाची शब्द   •   श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द   •   वाक्य शुद्धि   •   पाठ बोधन   •   शब्द शक्ति   •   हिन्दी संख्याएँ   •   पारिभाषिक शब्दावली   •



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