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कारक (Case)

 


कारक (Case)

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनका (संज्ञा या सर्वनाम कासम्बन्ध सूचित होउसे (उस रूप को) 'कारककहते हैं। 

अथवासंज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उनका (संज्ञा या सर्वनाम काक्रिया से सम्बन्ध सूचित होउसे (उस रूप को) 'कारककहते हैं।

इन दो 'परिभाषाओंका अर्थ यह हुआ कि संज्ञा या सर्वनाम के आगे जब 'ने', 'को', 'सेआदि विभक्तियाँ लगती हैंतब उनका रूप ही 'कारककहलाता हैं।

तभी वे वाक्य के अन्य शब्दों से सम्बन्ध रखने योग्य 'पदहोते है और 'पदकी अवस्था में ही वे वाक्य के दूसरे शब्दों से या क्रिया से कोई लगाव रख पाते हैं। 'ने', 'को', 'सेआदि विभित्र विभक्तियाँ विभित्र कारकों की है। इनके लगने पर ही कोई शब्द 'कारकपदबन पाता है और वाक्य में आने योग्य होता है। 'कारकपदया 'क्रियापदबने बिना कोई शब्द वाक्य में बैठने योग्य नहीं होता।

जैसे- ''रामचन्द्रजी ने खारे जल के समुद्र पर बन्दरों से पुल बँधवा दिया।''

इस वाक्य में 'रामचन्द्रजी ने', 'समुद्र पर', 'बन्दरों सेऔर 'पुलसंज्ञाओं के रूपान्तर हैजिनके द्वारा इन संज्ञाओं का सम्बन्ध 'बँधवा दियाक्रिया के साथ सूचित होता है। 

दूसरा उदाहरण-

श्रीराम ने रावण को बाण से मारा

इस वाक्य में प्रत्येक शब्द एक-दूसरे से बँधा है और प्रत्येक शब्द का सम्बन्ध किसी  किसी रूप में क्रिया के साथ है। 

यहाँ 'ने' 'को' 'सेशब्दों ने वाक्य में आये अनेक शब्दों का सम्बन्ध क्रिया से जोड़ दिया है। यदि ये शब्द  हो तो शब्दों का क्रिया के साथ तथा आपस में कोई सम्बन्ध नहीं होगा। संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया के साथ सम्बन्ध स्थापित करने वाला रूप कारक होता है।

कारक के भेद - हिन्दी में कारको की संख्या आठ है-

(1) कर्ता कारक (Nominative case)   (2) कर्म कारक (Accusative case)      (3) करण कारक (Instrument case)  (4) सम्प्रदान कारक(Dative case)

(5) अपादान कारक(Ablative case)      (6) सम्बन्ध कारक (Gentive case)    (7) अधिकरण कारक (Locative case) (8) संबोधन कारक(Vocative case)

कारक के विभक्ति चिन्ह   कारकों की पहचान के चिह्न  लक्षण निम्न प्रकार हैं-

कारक       लक्षण                        चिह्न                 कारक-चिह्न या विभक्तियाँ

(1) कर्ता    जो काम करें                   ने                   प्रथमा

(2) कर्म               जिस पर क्रिया का फल पड़े         को                  द्वितीया

(3) करण                          काम करने (क्रियाका साधन       सेके द्वारा             तृतीया

(4) सम्प्रदान जिसके लिए किया की जाए         को,के लिए             चतुर्थी

(5) अपादान  जिससे कोई वस्तु अलग हो                से (अलग के अर्थ में)        पंचमी

(6) सम्बन्ध  जो एक शब्द का दूसरे से सम्बन्ध जोड़े काकीकेरारीरे      षष्ठी

(7) अधिकरण जो क्रिया का आधार हो            में,पर                 सप्तमी

(8) सम्बोधन जिससे किसी को पुकारा जाये       हेअरेहो!

सम्बोधन विभक्तियाँसभी कारकों की स्पष्टता के लिए संज्ञा या सर्वनाम के आगे जो प्रत्यय लगाये जाते हैंउन्हें व्याकरण में 'विभक्तियाँअथवा 'परसर्गकहते हैं।

विभक्ति से बने शब्द-रूप को 'पदकहते हैं। शब्द (संज्ञा और क्रियाबिना पद बने वाक्य में नहीं चल सकते। ऊपर सभी कारकों के विभक्त-चिह्न दे दिये गये हैं।

विभक्तियों की प्रायोगिक विशेषताएँ

प्रयोग की दृष्टि से हिन्दी कारक की विभक्तियों की कुछ अपनी विशेषताएँ हैं। इनका व्यवहार करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

(i) सामान्यतः विभक्तियाँ स्वतन्त्र हैं। इनका अस्तित्व स्वतन्त्र है। चूँकि एक काम शब्दों का सम्बन्ध दिखाना हैइसलिए इनका अर्थ नहीं होता। जैसेनेसे आदि। 

(ii) हिन्दी की विभक्तियाँ विशेष रूप से सर्वनामों के साथ प्रयुक्त होने पर प्रायः विकार उत्पत्र कर उनसे मिल जाती हैं। जैसेमेराहमाराउसेउन्हें। 

(iii) विभक्तियाँ प्रायः संज्ञाओं या सर्वनामों के साथ आती है। जैसेमोहन की दुकान से यह चीज आयी है।

विभक्तियों का प्रयोग

हिन्दी व्याकरण में विभक्तियों के प्रयोग की विधि निश्र्चित है। हिन्दी में दो तरह की विभक्तियाँ हैं- (i) विश्लिष्ट और (ii) संश्लिष्ट। संज्ञाओं के साथ आनेवाली विभक्तियाँ विश्लिष्ट होती हैअर्थात अलग रहती है। जैसेराम नेवृक्ष परलड़कों कोलड़कियों के लिए। सर्वनामों के साथ विभक्तियाँ संश्लिष्ट या मिली होती हैं। जैसेउसकाकिसपरतुमकोतुम्हेंतेरातुम्हाराउन्हें। यहाँ यह ध्यान रखना है कि तुम्हें-इन्हें में 'कोऔर तेरा-तुम्हारा में 'काविभक्तिचिह्न संश्लिष्ट है। अतः 'के लिए'- जैसे दो शब्दों की विभक्ति में पहला शब्द संश्लिष्ट होगा और दूसरा विश्लिष्ट। जैसेतू+रे लिए =तेरे लिएतुम+रे लिए =तुम्हारे लिएमैं+रे लिए =मेरे लिए। 

यहाँ प्रत्येक कारक और उसकी विभक्ति के प्रयोग का परिचय उदाहरणसहित दिया जाता है।

(1) कर्ता कारक (Nominative case) :- वाक्य में जो शब्द काम करने वाले के अर्थ में आता हैउसे कर्ता कहते है। दूसरे शब्द मेंक्रिया का करने वाला 'कर्ताकहलाता है। 

इसकी विभक्ति 'नेलुप्त है। 

जैसे- ''मोहन खाता है।'' इस वाक्य में खाने का काम मोहन करता है अतः कर्ता मोहन है 

''मनोज ने पत्र लिखा।'' इस वाक्य क्रिया का करने वाला 'मनोजकर्ता है। 

विशेषकभी-कभी कर्ता कारक में 'नेचिह्न नहीं भी लगता है। जैसे- 'घोड़ादौड़ता है।

इसकी दो विभक्तियाँ हैने और ०। संस्कृत का कर्ता ही हिन्दी का कर्ताकारक है। वाक्य में कर्ता का प्रयोग दो रूपों में होता हैपहला वहजिसमें 'नेविभक्ति नहीं लगतीअर्थात जिसमें क्रिया के लिंगवचन और पुरुष कर्ता के अनुसार होते हैं। इसे 'अप्रत्यय कर्ताकारककहते है। इसे 'प्रधान कर्ताकारकभी कहा जाता है।

उदाहरणार्थ, 'मोहन खाता है। यहाँ 'खाता हैंक्रिया हैजो कर्ता 'मोहनके लिंग और वचन के अनुसार है। इसके विपरीत जहाँ क्रिया के लिंगवचन और पुरुष कर्ता के अनुसार  होकर कर्म के अनुसार होते हैवहाँ 'नेविभक्ति लगती है। इसे व्याकरण में 'सप्रत्यय कर्ताकारककहते हैं। इसे 'अप्रधान कर्ताकारकभी कहा जाता है। उदाहरणार्थ, 'श्याम ने मिठाई खाई' इस वाक्य में क्रिया 'खाईकर्म 'मिठाईके अनुसार आयी है।

कर्ता के 'नेचिह्न का प्रयोग कर्ताकारक की विभक्ति 'नेहै। बिना विभक्ति के भी कर्ताकारक का प्रयोग होता है। 'अप्रत्यय कर्ताकारकमें 'नेका प्रयोग  होने के कारण वाक्यरचना में कोई खास कठिनाई नहीं होती। 'नेका प्रयोग अधिकतर 'पश्र्चिमी हिन्दीमें होता है। बनारस से पंजाब तक इसके प्रयोग में लोगों को विशेष कठिनाई नहीं होतीक्योंकि इस 'नेविभक्ति की सृष्टि उधर ही हुई है। हिन्दी भाषा की इस विभक्ति से अहिन्दीभाषी घबराते हैं। लेकिनथोड़ी सावधानी रखी जाय और इसकी व्युत्पत्ति को ध्यान में रखा जायतो यह स्पष्ट हो जायेगा कि ''इसका स्वरूप तथा प्रयोग जैसा संस्कृत में हैवैसा हिन्दी में भी हैहिन्दी में वैशिष्टय नहीं आया।''

खड़ीबोली हिन्दी में 'नेचिह्न कर्ताकारक में संज्ञा-शब्दों की एक विश्लिष्ट विभक्ति हैजिसकी स्थिति बड़ी नपी-तुली और स्पष्ट है। किन्तुहिन्दी लिखने में इसके प्रयोग की भूलें प्रायः हो जाया करती हैं। 'नेका प्रयोग केवल हिन्दी और उर्दू में होता है। अहिन्दीभाषियों को 'नेके प्रयोग में कठिनाई होती है।

यहाँ यह दिखाया गया है कि हिन्दी भाषा में 'नेका प्रयोग कहाँ होता है और कहाँ नहीं होता।

कर्ता के 'नेविभक्ति-चिह्न का प्रयोग कहाँ होता ?

'नेविभक्ति का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है।

(i) 'नेका प्रयोग कर्ता के साथ तब होता हैजब एकपदीय या संयुक्त क्रिया सकर्मक भूतकालिक होती है। केवल सामान्य भूतआसन्न भूतपूर्ण भूतसंदिग्ध भूतहेतुहेतुमद् भूत कालों में 'नेविभक्ति लगती है। जैसे-

सामान्य भूतराम ने रोटी खायी।

आसन्न भूतराम ने रोटी खायी है।

पूर्ण भूतराम ने रोटी खायी थी।

संदिग्ध भूत-राम ने रोटी खायी होगी।

हेतुहेतुमद् भूतराम ने पुस्तक पढ़ी होतीतो उत्तर ठीक होता।

तात्पर्य यह है कि केवल अपूर्ण भूत को छोड़ शेष पाँच भूतकालों में 'नेका प्रयोग होता है।

(ii) सामान्यतः अकर्मक क्रिया में 'नेविभक्ति नहीं लगतीकिन्तु कुछ ऐसी अकर्मक क्रियाएँ हैजैसेनहानाछींकनाथूकनाखाँसनाजिनमें 'नेचिह्न का प्रयोग अपवादस्वरूप होता है। इन क्रियाओं के बाद कर्म नहीं आता। जैसेउसने थूका। राम ने छींका। उसने खाँसा। उसने नहाया।

(iii) जब अकर्मक क्रिया सकर्मक बन जायतब 'नेका प्रयोग होता हैअन्यथा नहीं। जैसेउसने टेढ़ी चाल चली। उसने लड़ाई लड़ी।

(iv) जब संयुक्त क्रिया के दोनों खण्ड सकर्मक होंतो अपूर्णभूत को छोड़ शेष सभी भूतकालों में कर्ता के आगे 'नेचिह्न का प्रयोग होता है। जैसेश्याम ने उत्तर कह दिया। किशोर ने खा लिया।

(v) प्रेरणार्थक क्रियाओं के साथअपूर्णभूत को छोड़ शेष सभी भूतकालों में 'नेका प्रयोग होता है। जैसेमैंने उसे पढ़ाया। उसने एक रुपया दिलवाया।

कर्ता के 'नेविभक्ति-चिह्न का प्रयोग कहाँ नहीं होता ?

'नेविभक्ति का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में नहीं होता है।

(i) वर्तमान और भविष्यत् कालों की क्रिया में कर्ता के साथ 'नेका प्रयोग नहीं होता। 

जैसेराम जाता है। राम जायेगा।

(ii) बकनाबोलनाभूलनाये क्रियाएँ यद्यपि सकर्मक हैंतथापि अपवादस्वरूप सामान्यआसत्रपूर्ण और सन्दिग्ध भूतकालों में कर्ता के 'नेचिह्न का व्यवहार नहीं होता। 

जैसेवह गाली बका। वह बोला। वह मुझे भूला।

हाँ, 'बोलनाक्रिया में कहीं-कहीं 'नेआता है। 

जैसेउसने बोलियाँ बोलीं।

'वह बोलियाँ बोला'- ऐसा भी लिखा या कहा जा सकता है।

(iii) यदि संयुक्त क्रिया का अन्तिम खण्ड अकर्मक होतो उसमें 'नेका प्रयोग नहीं होता।

जैसेमैं खा चुका। वह पुस्तक ले आया। उसे रेडियो ले जाना है।

(iv) जिन वाक्यों में लगनाजानासकना तथा चुकना सहायक क्रियाएँ आती हैं उनमे 'नेका प्रयोग नहीं होता।

जैसेवह खा चुका। मैं पानी पीने लगा। उसे पटना जाना हैं।

कर्ता में 'कोका प्रयोग-

विधि-क्रिया ('चाहिएआदिऔर संभाव्य भूत ('जाना था', 'करना चाहिए थाआदिमें कर्ता 'कोके साथ आता है।

जैसेराम को जाना चाहिए। राम को जाना थाजाना चाहिए था।

(2) कर्म कारक (Accusative case) :- जिस संज्ञा या सर्वनाम पर क्रिया का प्रभाव पड़े उसे कर्म कारक कहते है।

दूसरे शब्दों मेंवाक्य में क्रिया का फल जिस शब्द पर पड़ता हैउसे कर्म कारक कहते है। 

इसकी विभक्ति 'कोहै। 

जैसेमाँ बच्चे को सुला रही है। 

इस वाक्य में सुलाने की क्रिया का प्रभाव बच्चे पर पड़ रहा है। इसलिए 'बच्चे कोकर्म कारक है।

राम ने रावण को मारा। यहाँ 'रावण कोकर्म है। 

विशेष-कभी-कभी 'कोचिह्न का प्रयोग नहीं भी होता है। जैसेमोहन पुस्तक पढता है।

कर्मकारक का प्रत्यय चिह्न 'कोहै। बिना प्रत्यय के या अप्रत्यय कर्म के कारक का भी प्रयोग होता है। इसके नियम है-

(i) बुलानासुलानाकोसनापुकारनाजगानाभगाना इत्यादि क्रियाओं के कर्मों के साथ 'कोविभक्ति लगती है। 

जैसेमैंने हरि को बुलाया।

माँ ने बच्चे को सुलाया। 

शीला ने सावित्री को जी भर कोसा।

पिता ने पुत्र को पुकारा। 

हमने उसे (उसकीखूब सबेरे जगाया। 

लोगों ने शेरगुल करके डाकुओं को भगाया।

(ii) 'मारनाक्रिया का अर्थ जब 'पीटनाहोता हैतब कर्म के साथ विभक्ति लगती हैपर यदि उसका अर्थ 'शिकार करनाहोता हैतो विभक्ति नहीं लगतीअर्थात कर्म अप्रत्यय रहता है। जैसे- लोगों ने चोर को मारा। 

परशिकारी ने बाघ मारा। 

हरि ने बैल को मारा। 

परमछुए ने मछली मारी।

(iii) बहुधा कर्ता में विशेष कर्तृत्वशक्ति जताने के लिए कर्म सप्रत्यय रखा जाता है। जैसेमैंने यह तालाब खुदवाया हैमैंने इस तालाब को खुदवाया है। दोनों वाक्यों में अर्थ का अन्तर ध्यान देने योग्य है। पहले वाक्य के कर्म से कर्ता में साधारण कर्तृत्वशक्ति का और दूसरे वाक्य में कर्म से कर्ता में विशेष कर्तृत्वशक्ति का बोध होता है। इस तरह के अन्य वाक्य हैबाघ बकरी को खा गयाहरि ने ही पेड़ को काटा हैलड़के ने फलों को तोड़ लिया इत्यादि। जहाँ कर्ता में विशेष कर्तृत्वशक्ति का बोध कराने की आवश्यकता  होवहाँ सभी स्थानों पर कर्म को सप्रत्यय नहीं रखना चाहिए।

इसके अतिरिक्तजब कर्म निर्जीव वस्तु होतब 'कोका प्रयोग नहीं होना चाहिए। जैसे- 'राम ने रोटी को खायाकी अपेक्षा 'राम ने रोटी खायी ज्यादा अच्छा है। मैं कॉंलेज को जा रहा हूँमैं आम को खा रहा हूँमैं कोट को पहन रहा हूँइन उदाहरणों में 'कोका प्रयोग भद्दा है। प्रायः चेतन पदार्थों के साथ 'कोचिह्न का प्रयोग होता है और अचेतन के साथ नहीं। पर यह अन्तर वाक्य-प्रयोग पर निर्भर करता है।

(iv) कर्म सप्रत्यय रहने पर क्रिया सदा पुंलिंग होगीकिन्तु अप्रत्यय रहने पर कर्म के अनुसार।

जैसेराम ने रोटी को खाया (सप्रत्यय), राम ने रोटी खायी (अप्रत्यय)

(v) यदि विशेषण संज्ञा के रूप में प्रयुक्त होंतो कर्म में 'कोअवश्य लगता है।

जैसेबड़ों को पहले आदर दो,; छोटों को प्यार करो।

(3) करण कारक (Instrument case) :- जिस वस्तु की सहायता से या जिसके द्वारा कोई काम किया जाता हैउसे करण कारक कहते है।

दूसरे शब्दों मेंवाक्य में जिस शब्द से क्रिया के सम्बन्ध का बोध होउसे करण कारक कहते है। 

इसकी विभक्ति 'सेहै। 

जैसे- ''हम आँखों से देखते है।''

इस वाक्य में देखने की क्रिया करने के लिए आँख की सहायता ली गयी है। इसलिए आँखों से करण कारक है 

करणकारक के सबसे अधिक प्रत्ययचिह्न हैं। 'नेभी करणकारक का ऐसा चिह्न हैजो करणकारक के रूप में संस्कृत में आये कर्ता के लिए 'एनके रूप मेंकर्मवाच्य और भाववाच्य में आता है। किन्तुहिन्दी की प्रकृति 'नेको सप्रत्यय कर्ताकारक का ही चिह्न मानती है।

हिन्दी में करणकारक के अन्य चिह्न हैसेद्वाराके द्वाराके जरिएके साथके बिना इत्यादि। इन चिह्नों में अधिकतर प्रचलित से', 'द्वारा', 'के द्वारा' 'के जरिएइत्यादि ही है। 'के साथ', के बिनाआदि साधनात्मक योग-वियोग जतानेवाले अव्ययों के कारणसाधनात्मक योग बतानेवाले 'के द्वाराकी ही तरह के करणकारक के चिह्न हैं। 'करनका अर्थ है 'साधन' अतः 'सेचिह्न वहीं करणकारक का चिह्न है जहाँ यह 'साधनके अर्थ में प्रयुक्त हो। 

जैसेमुझसे यह काम  सधेगा। यहाँ 'मुझसेका अर्थ है 'मेरे द्वारा', 'मुझ साधनभूत के द्वाराया 'मुझ-जैसे साधन के द्वारा। अतः 'साधनको इंगित करने के कारण यहाँ 'मुझसेका 'सेकरण का विभक्तिचिह्न है। अपादान का भी विभक्तिचिह्न 'सेहै।

'अपादानका अर्थ है 'अलगाव की प्राप्ति अतः अपादान का 'सेचिह्न अलगाव के संकेत का प्रतीक हैजबकि करन काअपादान के विपरीतसाधना कासाधनभूत लगाव का। 'पेड़ से फल गिरा', 'मैं घर से चलाआदि वाक्यों में 'सेप्रत्यय 'पेड़को या घर को 'साधननहीं सिद्ध करताबल्कि इन दोनों से बिलगाव सिद्ध करता है। अतः इन दोनों वाक्यों में 'घरऔर 'पेड़के आगे प्रयुक्त 'सेविभक्तिचिह्न अपादानकारक का है और इन दोनों शब्दों में लगाकर इन्हे अपादानकारक का 'पदबनाता है।

करणकारक का क्षेत्र अन्य सभी कारकों से विस्तृत है। इस कारण में अन्य समस्त कारकों से छूटे हुए प्रत्यय या वे पद जो अन्य किसी कारक में आने से बच गए हों जाते है। 

अतः इसकी कुछ सामान्य पहचान और नियम जान लेना आवश्यक है-

(i) 'सेकरन और अपादान दोनों विभक्तियों का चिह्न हैकिन्तु साधनभूत का प्रत्यय होने पर करण माना जायेगाजबकि अलगाव का प्रत्यय होने पर अपादान। 

जैसेवह कुल्हाड़ी से वृक्ष काटता है। 

मुझे अपनी कमाई से खाना मिलता है। 

साधुओं की संगति से बुद्धि सुधरती है। 

यह तीनों करण है। 

पेड़ से फल गिरा। 

घर से लौटा हुआ लड़का। 

छत से उतरी हुई लता। 

यह तीनों अपादान है।

(ii) 'नेसप्रत्यय कर्ताकारक का चिह्न है। किन्तु, 'से', 'के द्वाराऔर 'के जरियेहिन्दी में प्रधानतः करणकारक के ही प्रत्यय माने जाते हैक्योंकि ये सारे प्रत्यय 'साधनअर्थ की ओर इंगित करते हैं। जैसे-

मुझसे यह काम  सधेगा। 

उसके द्वारा यह कथा सुनी थी। 

आपके जरिये ही घर का पता चला। 

तीर से बाघ मार दिया गया। 

मेरे द्वारा मकान ढहाया गया था।

(iii) भूखप्यासजाड़ाआँखकानपाँव इत्यादि शब्द यदि एकवचन करणकारक में सप्रत्यय रहते हैतो एकवचन होते है और अप्रत्यय रहते हैतो बहुवचन। 

जैसेवह भूख से बेचैन है;............ वह भूखों बेचैन है;

लड़का प्यास से मर रहा है;............ लड़का प्यासों मर रहा है। 

स्त्री जाड़े से काँप रही है;............. स्त्री जाड़ों काँप रही है। 

मैंने अपनी आँख से यह घटना देखी;........ मैंने अपनी आँखों यह घटना देखी। 

कान से सुनी बात पर विश्र्वास नहीं करना चाहिए;.......... कानों सुनी बात पर विश्र्वास नहीं करना चाहिए 

लड़का अब अपने पाँव से चलता है;............. लड़का अब अपने पाँवों चलता है।

(4) सम्प्रदान कारक :- जिसके लिए कोई क्रिया (काम )की जाती हैउसे सम्प्रदान कारक कहते है।

दूसरे शब्दों मेंजिसके लिए कुछ किया जाय या जिसको कुछ दिया जायइसका बोध करानेवाले शब्द के रूप को सम्प्रदान कारक कहते है। 

इसकी विभक्ति 'कोऔर 'के लिएहै। 

जैसेशिष्य ने अपने गुरु के लिए सब कुछ किया। गरीब को धन दीजिए। 

''वह अरुण के लिए मिठाई लाया।''

इस वाक्य में लाने का काम 'अरुण के लिएहुआ। इसलिए 'अरुण के लिएसम्प्रदान कारक है।

(i)कर्म और सम्प्रदान का एक ही विभक्तिप्रत्यय है 'को', पर दोनों के अर्थो में अन्तर है। सम्प्रदान का 'को', 'के लिएअव्यय के स्थान पर या उसके अर्थ में प्रयुक्त होता हैजबकि कर्म के 'कोका 'के लिएअर्थ से कोई सम्बन्ध नहीं है। 

नीचे लिखे वाक्यों पर ध्यान दीजिए-

कर्महरि मोहन को मारता है।......... सम्प्रदानहरि मोहन को रुपये देता है।

कर्मउसके लड़के को बुलाया।.......... सम्प्रदानउसने लड़के को मिठाइयाँ दी।

कर्ममाँ ने बच्चे को खेलते देखा।....... सम्प्रदानमाँ ने बच्चे को खिलौने खरीदे।

(ii) साधारणतः जिसे कुछ दिया जाता है या जिसके लिए कोई काम किया जाता हैवह पद सम्प्रदानकारक का होता है। 

जैसेभूखों को अत्र देना चाहिए और प्यासों को जल। गुरु ही शिष्य को ज्ञान देता है।

(iii) 'के हित', 'के वास्ते', 'के निर्मितआदि प्रत्ययवाले अव्यय भी सम्प्रदानकारक के प्रत्यय है। जैसे-

राम के हित लक्ष्मण वन गये थे। 

तुलसी के वास्ते ही जैसे राम ने अवतार लिया। 

मेरे निर्मित ही ईश्र्वर की कोई कृपा नहीं।

(5) अपादान कारक(Ablative case) :- जिससे किसी वस्तु का अलग होना पाया जाता हैउसे अपादान कारक कहते है।

दूसरे शब्दों मेंसंज्ञा के जिस रूप से किसी वस्तु के अलग होने का भाव प्रकट होता हैउसे अपादान कारक कहते है। 

इसकी विभक्ति 'सेहै। 

जैसे- ''दूल्हा घोड़े से गिर पड़ा।''

इस वाक्य में 'गिरनेकी क्रिया 'घोड़े सेहुई अथवा गिरकर दूल्हा घोड़े से अलग हो गया। इसलिए 'घोड़े सेअपादान कारक है।

जिस शब्द में अपादान की विभक्ति लगती हैउससे किसी दूसरी वस्तु के पृथक होने का बोध होता है। जैसे-

हिमालय से गंगा निकलती है। 

मोहन ने घड़े से पानी ढाला। 

बिल्ली छत से कूद पड़ी 

चूहा बिल से बाहर निकला।

करण और अपादान के 'सेप्रत्यय में अर्थ का अन्तर करणवाचक के प्रसंग में बताया जा चुका है।

(6) सम्बन्ध कारक (Gentive case) :- शब्द के जिस रूप से संज्ञा या सर्वनाम के संबध का ज्ञान होउसे सम्बन्ध कारक कहते है।

दूसरे शब्दों मेंसंज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी अन्य शब्द के साथ सम्बन्ध या लगाव प्रतीत होउसे सम्बन्धकारक कहते है। 

इसकी विभक्ति 'का', 'की', और 'केहैं।  जैसे- ''सीता का भाई आया है।''

इस वाक्य में गीता तथा भाई दोनों शब्द संज्ञा है। भाई से गीता का संबध दिखाया गया है। वह किसका भाई है ? गीता का। इसलिए गीता का संबध कारक है 

रहीम का मकान छोटा है। संबंध का लिंग-वचन संबद्ध वस्तु के अनुसार होता है। जैसेरहीम की कोठरीरहीम के बेटे। सर्वनाम में संबंध में 'का', 'की', 'केप्रत्यय का रूप 'रा', 'री', 'रेया 'ना', 'नी', 'नेभी होता है। जैसेमेरा लड़कामेरी लड़कीमेरे लड़के या अपना लड़काअपनी लड़कीअपने लड़के।

(i) सम्बन्धकारक का विभक्तिचिह्न 'काहै। वचन और लिंग के अनुसार इसकी विकृति 'केऔर 'कीहै। इस कारक से अधिकतर कर्तृत्वकार्य-कारणमोल-भावपरिमाण इत्यादि का बोध होता है। जैसे-

अधिकतरराम की किताबश्याम का घर। 

कर्तृत्वप्रेमचन्द्र के उपन्यासभारतेन्दु के नाटक। 

कार्य-करणचाँदी की थालीसोने का गहना। 

मोल-भावएक रुपए का चावलपाँच रुपए का घी। 

परिमाणचार भर का हारसौ मील की दूरीपाँच हाथ की लाठी। 

द्रष्टव्यबहुधा सम्बन्धकारक की विभक्ति के स्थान में 'वालाप्रत्यय भी लगता है। जैसेरामवाली किताबश्यामवाला घरप्रेमचन्दवाले उपन्यासचाँदीवाली थाली इत्यादि।

(ii) सम्बन्धकारक की विभक्तियों द्वारा कुछ मुहावरेदार प्रयोग भी होते है। जैसे-

(दिन के दिनमहीने के महीनेहोली की होलीदीवाली की दीवालीरात की रातदोपहर के दोपहर इत्यादि। 

(कान का कच्चाबात का पक्काआँख का अन्धागाँठ का पूराबात का धनीदिल का सच्चा इत्यादि। 

(वह अब आने का नहींमैं अब जाने का नहींवह टिकने का नहीं इत्यादि।

(iii) दूसरे कारकों के अर्थ में भी सम्बन्धकारक की विभक्ति लगती है। जैसेजन्म का भिखारीजन्म से भिखारी (करण), हिमालय का चढ़नाहिमालय पर चढ़ना (अधिकरण)

(iv) सम्बन्धअधिकार और देने के अर्थ में बहुधा सम्बन्धकारक की विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसेहरि को बाल-बच्चा नहीं हैं। राम के बहन हुई है। राजा के आँखें नहीं होतीकेवल कान होते हैं। रावण ने विभीषण के लात मारी। ब्राह्मण को दक्षिणा दो।

(v) सर्वनाम की स्थिति में सम्बन्धकारक का प्रत्यय रा-रे-री और ना-ने-नी हो जाता है। जैसेमेरा लड़कामेरी लड़कीतुम्हारा घरतुम्हारी पगड़ीअपना भरोसाअपनी रोजी।

(7) अधिकरण कारक (Locative case) :- शब्द के जिस रूप से क्रिया के आधार का ज्ञान होता हैउसे अधिकरण कारक कहते है।

दूसरे शब्दों मेंक्रिया या आधार को सूचित करनेवाली संज्ञा या सर्वनाम के स्वरूप को अधिकरण कारक कहते है। 

इसकी विभक्ति 'मेंऔर 'परहैं। 

जैसेमोहन मैदान में खेल रहा है। इस वाक्य में 'खेलनेकी क्रिया किस स्थान पर हो रही है ?

मैदान पर। इसलिए मैदान पर अधिकरण कारक है।

दूसरा उदाहरण-''मनमोहन छत पर खेल रहा है।'' इस वाक्य में 'खेलनेकी क्रिया किस स्थान पर हो रही है?

'छत पर इसलिए 'छत परअधिकरण कारक है।

(i) कभी-कभी 'मेंके अर्थ में 'परऔर 'परके अर्थ में 'मेंका प्रयोग होता है। जैसेतुम्हारे घर पर चार आदमी हैं=घर में। दूकान पर कोई नहीं था =दूकान में। नाव जल में तैरती है =जल पर।

(ii) कभी-कभी अधिकरणकारक की विभक्तियों का लोप भी हो जाता है। जैसे-

इन दिनों वह पटने है।

वह सन्ध्या समय गंगा-किनारे जाता है। 

वह द्वार-द्वार भीख माँगता चलता है। 

लड़के दरवाजे-दरवाजे घूम रहे हैं। 

जिस समय वह आया थाउस समय मैं नहीं था। 

उस जगह एक सभा होने जा रही है।

(iii) किनारेआसरे और दिनों जैसे पद स्वयं सप्रत्यय अधिकरणकारक के है और यहाँवहाँसमय आदि पदों का अर्थ सप्रत्यय अधिकरणकारक का है। अतः इन पदों की स्थिति में अधिकरणकारक का प्रत्यय नहीं लगता।

(8) संबोधन कारक(Vocative case) :- जिन शब्दों का प्रयोग किसी को बुलाने या पुकारने में किया जाता हैउसे संबोधन कारक कहते है।

दूसरे शब्दों में-संज्ञा के जिस रूप से किसी के पुकारने या संकेत करने का भाव पाया जाता हैउसे सम्बोधन कारक कहते है। 

इसकी विभक्ति 'अरे', 'हेआदि है। 

जैसे- ' हे भगवानसे पुकारने का बोध होता है। सम्बोधनकारक की कोई विभक्ति नहीं होती है। इसे प्रकट करने के लिए 'हे', 'अरे', 'रेआदि शब्दों का प्रयोग होता है। 

दूसरा उदाहरण-हे श्याम !इधर आओ  अरेतुम क्या कर रहे हो ? उपयुक्त्त वाक्यों में 'हे श्याम!, अरे!' संबोधन कारक है।

 




हिन्दी व्याकरण 

•   भाषा   •   लिपि   •   व्याकरण   •   वर्ण,वर्णमाला   •   शब्द   •   वाक्य   •   संज्ञा   •   सर्वनाम   •   क्रिया   •   काल   •   विशेषण   •   अव्यय   •   लिंग   •   उपसर्ग   •   प्रत्यय   •   तत्सम तद्भव शब्द   •    संधि 1   •  संधि 2   •   कारक   •   मुहावरे 1   •   मुहावरे 2   •   लोकोक्ति   •   समास 1   •   समास 2   •   वचन   •   अलंकार   •   विलोम   •   अनेकार्थी शब्द   •  अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 1   •   अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 2   •   पत्रलेखन   •   विराम चिह्न   •   युग्म शब्द   •   अनुच्छेद लेखन   •   कहानी लेखन   •   संवाद लेखन   •   तार लेखन   •   प्रतिवेदन लेखन   •   पल्लवन   •   संक्षेपण   •   छन्द   •   रस   •   शब्दार्थ   •   धातु   •   पदबंध   •   उपवाक्य   •   शब्दों की अशुद्धियाँ   •   समोच्चरित भिन्नार्थक शब्द   •   वाच्य   •   सारांश   •   भावार्थ   •   व्याख्या   •   टिप्पण   •   कार्यालयीय आलेखन   •   पर्यायवाची शब्द   •   श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द   •   वाक्य शुद्धि   •   पाठ बोधन   •   शब्द शक्ति   •   हिन्दी संख्याएँ   •   पारिभाषिक शब्दावली   •



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