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अव्यय (Indeclinable)

 


अव्यय (Indeclinable)


जिन शब्दों के रूप में लिंगवचनकारक आदि के कारण कोई परिवर्तन नही होता है उन्हें अव्यय( +व्ययया अविकारी शब्द कहते है  

इसे हम ऐसे भी कह सकते है- 'अव्ययऐसे शब्द को कहते हैंजिसके रूप में लिंगवचनपुरुषकारक इत्यादि के कारण कोई विकार उत्पत्र नही होता। ऐसे शब्द हर स्थिति में अपने मूलरूप में बने रहते है। चूँकि अव्यय का रूपान्तर नहीं होताइसलिए ऐसे शब्द अविकारी होते हैं। इनका व्यय नहीं होताअतः ये अव्यय हैं।

जैसेजबतबअभीउधरवहाँइधरकबक्योंवाहआहठीकअरेऔरतथाएवंकिन्तुपरन्तुबल्किइसलिएअतःअतएवचूँकिअवश्यअर्थात इत्यादि।

अव्यय और क्रियाविशेषण

पण्डित किशोरीदास बाजपेयी के मतानुसारअँगरेजी के आधार पर सभी अव्ययों को क्रियाविशेषण मान लेना उचित नहीक्योंकि कुछ अव्यय ऐसे हैंजिनसे क्रिया की विशेषता लक्षित नहीं होती। जैसेजब मैं भोजन करता हूँतब वह पढ़ने जाता हैं। इस वाक्य में 'जबऔर 'तबअव्यय क्रिया की विशेषता नहीं बताते। अतःइन्हें क्रियाविशेषण नहीं माना जा सकता।

निम्नलिखित अव्यय क्रिया की विशेषता नहीं बताते-

(i) कालवाचक अव्यय -  इनमें समय का बोध होता है। जैसेआजकलतुरन्तपीछेपहलेअबजबतबकभी-कभीकबअब सेनित्यजब सेसदा सेअभीतभीआजकल और कभी। उदाहरणार्थ - अब से ऐसी बात नहीं होगी।      ऐसी बात सदा से होती रही है।       वह कब आयामुझे पता नहीं।

(ii) स्थानवाचक अव्यय -  इससे स्थान का बोध होता है। जैसेयहाँवहाँकहाँजहाँयहाँ सेवहाँ सेइधर-उधर। उदाहरणार्थ-

वह यहाँ नहीं है।              वह कहाँ जायेगा ?                 वहाँ कोई नहीं है।               जहाँ तुम होवहाँ मैं हूँ।

(iii) दिशावाचक अव्यय -  इससे दिशा का बोध होता है। जैसेइधरउधरजिधरदूरपरेअलगदाहिनेबाएँआरपार।

(iv) स्थितिवाचक अव्यय -  नीचे,> नीचेऊपर तलेसामनेबाहरभीतर इत्यादि।

अव्यय के भेद

अव्यय निम्नलिखित चार प्रकार के होते है -

(1) क्रियाविशेषण (Adverb)               (2) संबंधबोधक (Preposition)

(3) समुच्चयबोधक (Conjunction)      (4) विस्मयादिबोधक (Interjection)

(1) क्रियाविशेषण :- जिन शब्दों से क्रियाविशेषण या दूसरे क्रियाविशेषण की विशेषता प्रकट होउन्हें 'क्रियाविशेषणकहते है।

दूसरे शब्दो मेंजो शब्द क्रिया की विशेषता बतलाते हैउन्हें क्रिया विशेषण कहा जाता है।

जैसेराम धीरे-धीरे टहलता हैराम वहाँ टहलता हैराम अभी टहलता है।

इन वाक्यों में 'धीरे-धीरे', 'वहाँऔर 'अभीराम के 'टहलने' (क्रियाकी विशेषता बतलाते हैं। ये क्रियाविशेषण अविकारी विशेषण भी कहलाते हैं। इसके अतिरिक्तक्रियाविशेषण दूसरे क्रियाविशेषण की भी विशेषता बताता हैं। 

वह बहुत धीरे चलता है। इस वाक्य में 'बहुतक्रियाविशेषण हैक्योंकि यह दूसरे क्रियाविशेषण 'धीरेकी विशेषता बतलाता है।

क्रिया विशेषण के प्रकार

(1) प्रयोग के अनुसार- (i) साधारण (ii) संयोजक (iii) अनुबद्ध

(2) रूप के अनुसार- (i) मूल क्रियाविशेषण (ii) यौगिक क्रियाविशेषण (iii) स्थानीय क्रियाविशेषण

(3) अर्थ के अनुसार- (i) परिमाणवाचक (ii) रीतिवाचक

(1) 'प्रयोगके अनुसार क्रियाविशेषण के तीन भेद

(i) साधारण क्रियाविशेषण -  जिन क्रिया विशेषणों का प्रयोग किसी वाक्य में स्वतन्त्र होता हैंउन्हें 'साधारण क्रियाविशेषणकहा जाता हैं।

जैसेहायअब मैं क्या करूँबेटाजल्दी आओ। अरे ! साँप कहाँ गया ?

(ii) संयोजक क्रियाविशेषण -  जिन क्रियाविशेषणों का सम्बन्ध किसी उपवाक्य से रहता हैउन्हें ' संयोजक क्रियाविशेषणकहा जाता हैं।

जैसेजब रोहिताश्र्व ही नहींतो मैं ही जीकर क्या करूँगी ! जहाँ अभी समुद्र हैंवहाँ किसी समय जंगल था।

(iii) अनुबद्ध क्रियाविशेषण -  जिन क्रियाविशेषणों के प्रयोग अवधारण (निश्र्चयके लिए किसी भी शब्दभेद के साथ होता होउन्हें 'अनुबद्ध क्रियाविशेषणकहा जाता है। 

जैसेयह तो किसी ने धोखा ही दिया है। मैंने उसे देखा तक नहीं।

(2) रूप के अनुसार क्रियाविशेषण के तीन भेद

(i) मूल क्रियाविशेषण - ऐसे क्रियाविशेषणजो किसी दूसरे शब्दों के मेल से नहीं बनते, 'मूल क्रियाविशेषणकहलाते हैं।

जैसेठीकदूरअचानकफिरनहीं।

(ii) यौगिक क्रियाविशेषण -  ऐसे क्रियाविशेषण,जो किसी दूसरे शब्द में प्रत्यय या पद जोड़ने पर बनते हैं, 'यौगिक क्रियाविशेषणकहलाते हैं। 

जैसेमन सेजिससेचुपके सेभूल सेदेखते हुएयहाँ तकझट सेवहाँ पर। यौगिक क्रियाविशेषण संज्ञासर्वनामविशेषणधातु और अव्यय के मेल से बनते हैं।

यौगिक क्रियाविशेषण नीचे लिखे शब्दों के मेल से बनते हैं-

(i) संज्ञाओं की द्विरुक्ति सेघर-घरघड़ी-घड़ीबीच-बीचहाथों-हाथ। 

(ii) दो भित्र संज्ञाओं के मेल सेदिन-रातसाँझ-सबेरेघर-बाहरदेश-विदेश। 

(iii) विशेषणों की द्विरुक्ति सेएक-एकठीक-ठीकसाफ-साफ। 

(iv) क्रियाविशेषणों की द्विरुक्ति सेधीरे-धीरेजहाँ-तहाँकब-कबकहाँ-कहाँ। 

(v) दो क्रियाविशेषणों के मेल सेजहाँ-तहाँजहाँ-कहींजब-तबजब-कभीकल-परसोंआस-पास। 

(vi) दो भित्र या समान क्रियाविशेषणों के बीच 'लगाने सेकभी--कभीकुछ--कुछ। 

(vii) अनुकरण वाचक शब्दों की द्विरुक्ति सेपटपटतड़तड़सटासटधड़ाधड़। 

(viii) संज्ञा और विशेषण के योग सेएक साथएक बारदो बार। 

(ix) अव्य  और दूसरे शब्दों के मेल सेप्रतिदिनयथाक्रमअनजानेआजन्म। 

(x) पूर्वकालिक कृदन्त और विशेषण के मेल सेविशेषकरबहुतकरमुख़्यकरएक-एककर।

(iii) स्थानीय क्रिया विशेषण -  ऐसे क्रियाविशेषणजो बिना रूपान्तर के किसी विशेष स्थान में आते हैं, 'स्थानीय क्रियाविशेषणकहलाते हैं। जैसेवह अपना सिर पढ़ेगा।

(3) 'अर्थके अनुसार क्रियाविशेषण के भेद

(i) परिमाणवाचक क्रियाविशेषण -  जो शब्द क्रिया परिमाण या माप प्रकट करते है उन्हें 'परिमाणवाचक क्रियाविशेषणकहते है।

जैसे -बहुतथोड़ाअधिककमछोटाकितना आदि 

उदाहरणआप अधिक बोलते हो। 

यहाँ अधिक शब्द क्रिया (बोलने )की माप प्रकट करता है। इसलिए अधिक शब्द परिमाणवाचक क्रियाविशेषण है।

(अधिकताबोधकबहुतअतिबड़ाबिलकुलसर्वथाखूबनिपटअत्यन्तअतिशय। 

(न्यूनताबोधककुछलगभगथोड़ाटुकप्रायःजराकिंचित्।

(पर्याप्तिवाचककेवलबसकाफीयथेष्टचाहेबराबरठीकअस्तु। 

(तुलनावाचकअधिककमइतनाउतनाजितनाकितनाबढ़कर।

(श्रेणिवाचकथोड़ा-थोड़ाक्रम-क्रम सेबारी-बारी सेतिल-तिलएक-एककरयथाक्रम।

(ii) रीतिवाचक क्रियाविशेषण - जो शब्द क्रिया की रीती या ढंग बताते है उन्हें रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहते है।

जैसेसहसावैसेऐसेअचानक आदि।

उदाहरणकछुआ धीरे-धीरे चलता है।

यहाँ धीरे-धीरे शब्द क्रिया होने ढंग बता रहा है।

इस क्रियाविशेषण की संख्या गुणवाचक विशेषण की तरह बहुत अधिक है। ऐसे क्रियाविशेषण प्रायः निम्नलिखित अर्थों में आते हैं-

(प्रकारऐसेवैसेकैसेमानोधीरेअचानकस्वयंस्वतःपरस्परयथाशक्तिप्रत्युतफटाफट। 

(निश्र्चयअवश्यसहीसचमुचनिःसन्देहबेशकजरूरअलबत्तायथार्थ मेंवस्तुतःदरअसल। 

(अनिश्र्चयकदाचित्शायदबहुतकरयथासम्भव। 

(स्वीकारहाँजीठीकसच। 

(कारणइसलिएक्योंकाहे को। 

(निषेधनहींमत। 

(अवधारणतोहीभीमात्रभरतकसा।

कुछ समानार्थक क्रियाविशेषणों का अन्तर

(i) अब-अभी 'अबमें वर्तमान समय का अनिश्र्चय है और 'अभीका अर्थ तुरन्त से हैजैसे-

अबअब आप जा सकते हैं। 

अब आप क्या करेंगे ?

अभीअभी-अभी आया हूँ। 

अभी पाँच बजे हैं। 

(ii) तब-फिरअन्तर यह है कि 'तबबीते हुए हमय का बोधक है और 'फिरभविष्य की ओर संकेत करता है। जैसे-

तबतब उसने कहा। 

तब की बात कुछ और थी।

फिरफिर आप भी क्या कहेंगे। 

फिर ऐसा होगा। 

'तबका अर्थ 'उस समयहै और 'फिरका अर्थ 'दुबाराहै। 

'केवलसदा उस शब्द के पहले आता हैजिसपर जोर देना होता हैलेकिन 'मात्र' 'ही', उस शब्द के बाद आता है।

(iii) कहाँ-कहीं- 'कहाँकिसी निश्र्चित स्थान का बोधक है और 'कहीकिसी अनिश्र्चित स्थान का परिचायक। कभी-कभी 'कहीनिषेध के अर्थ में भी प्रयुक्त होता हैजैसे-

कहाँवह कहाँ गया ?

मैं कहाँ  गया ?

कहाँ राजा भोजकहाँ गंगू तेली!

कहींवह कहीं भी जा सकता है। 

अन्य अर्थों में भी 'कहीका प्रयोग होता है-

(बहुत अधिकयह पुस्तक उससे कहीं अच्छी है। (कदाचित्कहीं बाघ   जाय। (विरोधराम की मायाकहीं धूप कहीं छाया।

(iv) -नहीं-मतइनका प्रयोग निषेध के अर्थ में होता है। 'से साधारण-निषेध और 'नहींसे निषेध का निश्र्चय सूचित होता है। 'की अपेक्षा 'नहींअधिक जोरदार है। 'मतका प्रयोग निषेधात्मक आज्ञा के लिए होता है। जैसे-

''- इनके विभित्र प्रयोग इस प्रकार हैं-

(क्या तुम  आओगे ?

(तुम  करोगेतो वह कर देगा। 

() 'तुम सोओगे वह। 

(जाओ रुक क्यों गये ?

नहीं- (तुम नहीं जा सकते। 

(मैं नहीं जाऊँगा। 

(मैं काम नहीं करता। 

(मैंने पत्र नहीं लिखा।

मत- (भीतर मत जाओ। 

(तुम यह काम मत करो। 

(तुम मत गाओ।

(v) ही-भीबात पर बल देने के लिए इनका प्रयोग होता है। अन्तर यह है कि 'हीका अर्थ एकमात्र और 'भीका अर्थ 'अतिरिक्तसूचित करता है। जैसे-

भीइस काम को तुम भी कर सकते हो।

हीयह काम तुम ही कर सकते हो।

(vi) केवल-मात्र- 'केवलअकेला का अर्थ और 'मात्रसम्पूर्णता का अर्थ सूचित करता हैजैसे-

केवलआज हम केवल दूध पीकर रहेंगे। यह काम केवल वह कर सकता है।

मात्र-, मुझे पाँच रूपये मात्र मिले।

(vii) भला-अच्छा- 'भलाअधिकतर विशेषण के रूप में प्रयुक्त होता हैपर कभी-कभी संज्ञा के रूप में भी आता हैजैसेभला का भला फल मिलता है।

'अच्छास्वीकृतिमूलक अव्यय है। यह कभी अवधारण के लिए और कभी विस्मयबोधक के रूप में प्रयुक्त होता है। जैसे-

अच्छाकल चला जाऊँगा। 

अच्छाआप  गये !

(viii) प्रायः-बहुधादोनों का अर्थ 'अधिकतरहैकिन्तु 'प्रायःसे 'बहुधा की मात्रा अधिक होती है।

प्रायःबच्चे प्रायः खिलाड़ी होते हैं। 

बहुधाबच्चे बहुधा हठी होते हैं।

(ix) बाद-पीछे- 'बादकाल का और 'पीछेसमय का सूचक है। जैसे-

बादवह एक सप्ताह बाद आया। 

पीछेवह पढ़ने में मुझसे पीछे है।

(2)सम्बन्धबोधक अव्यय :- जो शब्द वाक्य में किसी संज्ञा या सर्वनाम के साथ आकर वाक्य के दूसरे शब्द से उनका संबन्ध बताये वे शब्द 'सम्बन्धबोधक अव्ययकहलाते 

दूसरे शब्दों मेंजो अव्यय किसी संज्ञा के बाद आकर उस संज्ञा का सम्बन्ध वाक्य के दूसरे शब्द से दिखाते हैउसे 'सम्बन्धबोधक अव्ययकहते हैं। 

यदि यह संज्ञा  होतो वही अव्यय क्रियाविशेषण कहलायेगा।

जैसेदूरपासअन्दरबाहरपीछेआगेबिनाऊपरनीचे आदि।

उदाहरणवृक्ष के 'ऊपरपक्षी बैठे है।

धन के 'बिनाकोई काम नही होता।

मकान के 'पीछेगली है।

उपयुक्त प्रथम वाक्य में 'ऊपरशब्द 'वृक्ष और 'पक्षीके सम्बन्ध को दर्शता है।

दूसरे वाक्य में 'बिनाशब्द 'धनऔर 'काममें सम्बन्ध दर्शता है।

तीसरे वाक्य में 'पीछेशब्द 'मकानऔर 'गलीमें सम्बन्ध दर्शाता है।

अतः 'ऊपर' 'बिना' 'पीछेशब्द सम्बन्धबोधक है।

विशेषयह बात विशेष रूप से ध्यान रखनी चाहिए कि सम्बन्धबोधक शब्द को सम्बन्ध दर्शाना आवश्यक होता है। जब यह सम्बन्ध  जोड़कर साधारण रूप में प्रयोग होता है तो यह क्रिया-विशेषण का कार्य करता है। इस प्रकार एक ही शब्द क्रिया-विशेषण भी हो सकता है और सम्बन्धबोधक भी। जैसे-

सम्बन्धबोधक                 क्रिया-विशेषण

दुकान 'परग्राहक खड़ा है।                  दुकान 'परखड़ा है।

मेज के 'ऊपरकिताबें है।                   मेज के 'ऊपरहै।

सम्बन्धबोधक के भेद

प्रयोगअर्थ और व्युत्पत्ति के अनुसार सम्बन्धबोधक अव्यय के निम्नलिखित भेद है  

(1) प्रयोग के अनुसार- (i) सम्बद्ध (ii) अनुबद्ध 

(2) अर्थ के अनुसार- (i) कालवाचक (ii) स्थानवाचक (iii) दिशावाचक (iv) साधनवाचक (v) हेतुवाचक (vi) विषयवाचक (vii) व्यतिरेकवाचक (viii) विनिमयवाचक (ix) सादृश्यवाचक (x) विरोधवाचक (xi) सहचरवाचक (xii) संग्रहवाचक (xiii) तुलनावाचक

(3) व्युत्पत्ति के अनुसार- (i) मूल सम्बन्धबोधक (ii) यौगिक सम्बन्धबोधक

(1) प्रयोग के अनुसार सम्बन्धबोधक के भेद 

(i) सम्बद्ध सम्बन्धबोधक - ऐसे सम्बन्धबोधक शब्द संज्ञा की विभक्तियों के पीछे आते हैं। जैसेधन के बिनानर की नाई। 

(ii) अनुबद्ध सम्बन्धबोधकऐसे सम्बन्धबोधकअव्यय संज्ञा के विकृत रूप के बाद आते हैं। जैसेकिनारे तकसखियों सहितकटोरे भर , पुत्रों समेत।

(2) अर्थ के अनुसार सम्बन्धबोधक के भेद 

(i) कालवाचकआगेपीछेबादपहलेपूर्वअनन्तरपश्र्चात्उपरान्तलगभग। 

(ii) स्थानवाचकआगेपीछेनीचेतलेसामनेपासनिकटभीतरसमीपनजदीकयहाँबीचबाहरपरेदूर। 

(iii) दिशावाचकओरतरफपारआरपारआसपासप्रति। 

(iv) साधनवाचकद्वाराजरिएहाथमारफतबलकरजबानीसहारे। 

(v) हेतुवाचकलिएनिमित्तवास्तेहेतुखातिरकारणमारेचलते।

(vi)विषयवाचकबाबतनिस्बतविषयनामलेखेजानभरोसे। 

(vii) व्यतिरेकवाचकसिवाअलावाबिनाबगैरअतिरिक्तरहित। 

(viii) विनिमयवाचकपलटेबदलेजगहएवज। 

(ix) सादृश्यवाचकसमानतरहभाँतिनाईबराबरतुल्ययोग्यलायकसदृशअनुसारअनुरूपअनुकूलदेखादेखीसरीखासाऐसाजैसामुताबिक। 

(x) विरोधवाचकविरुद्धखिलापउलटेविपरीत। 

(xi) सहचरवाचकसंगसाथसमेतसहितपूर्वकअधीनस्वाधीनवश। 

(xii) संग्रहवाचकतकलौंपर्यन्तभरमात्र। 

(xiii) तुलनावाचकअपेक्षाबनिस्बतआगेसामने।

(3) व्युत्पत्ति के अनुसार सम्बन्धबोधक के भेद 

(i) मूल सम्बन्धबोधकबिनापर्यन्तनाईपूर्वक इत्यादि। 

(ii) यौगिक सम्बन्धबोधकसंज्ञा सेपलटेलेखेअपेक्षामारफत। 

विशेषण सेतुल्यसमानउलटाऐसायोग्य। 

क्रियाविशेषण सेऊपरभीतरयहाँबाहरपासपरेपीछे। 

क्रिया सेलिएमारेचलतेकरजाने।

(3)समुच्चयबोधक अव्यय :-  जो अविकारी शब्द दो शब्दोंवाक्यों या वाक्यांशों को परस्पर मिलाते हैउन्हें समुच्चयबोधक कहते है। 

दूसरे शब्दों मेंऐसा पद (अव्ययजो क्रिया या संज्ञा की विशेषता  बताकर एक वाक्य या पद का सम्बन्ध दूसरे वाक्य या पद से जोड़ता है, 'समुच्चयबोधककहलाता है। 

सरल शब्दो मेंदो वाक्यों को परस्पर जोड़ने वाले शब्द समुच्चयबोधक अव्यय कहे जाते है। 

जैसेयद्यपिचूँकिपरन्तुऔर किन्तु आदि।

उदाहरणआँधी आयी और पानी बरसा। यहाँ 'औरअव्यय समुच्चयबोधक हैक्योंकि यह पद दो वाक्यों- 'आँधी आयी', 'पानी बरसा'- को जोड़ता है।

समुच्चयबोधक अव्यय पूर्ववाक्य का सम्बन्ध उत्तरवाक्य से जोड़ता है।

इसी तरह समुच्चयबोधक अव्यय दो पदों को भी जोड़ता है। जैसेदो और दो चार होते हैं।

राम 'और 'लक्ष्मण दोनों भाई थे।

मोहन ने बहुत परिश्रम किया परन्तु 'सफल सका।

उपयुक्त पहले वाक्य में 'और ' शब्दों को जोड़ रहा है तथा दूसरे वाक्य में 'परन्तु ' दो वाक्यांशों को जोड़ रहा है। अतः ये दोनों शब्द समुच्चयबोधक है।

समुच्चयबोधक के भेद

इस अव्यय के मुख्य भेद निम्नलिखित है-

(1) समानाधिकरण (2) व्यधिकरण

(1) समानाधिकरणजिन पदों या अव्ययों द्वारा मुख्य वाक्य जोड़े जाते हैउन्हें 'समानाधिकरण समुच्चयबोधककहते है। इसके चार उपभेद हैं-

(i) संयोजकजो शब्दशब्दों या वाक्यों को जोड़ने का काम करते हैउन्हें संयोजक कहते है।

जैसेजोकिकितथाएवंऔर आदि।

उदाहरण -गीता ने इडली खायी 'तथा ' रीता डोसा खाया।

(ii) विभाजकजो शब्दविभिन्नता प्रकट करने के लिए प्रयुक्त होते हैउन्हें विभाजक कहते है।

जैसेयावाअथवाकिंवाकिचाहे....  किनहीं तोताकिमगरतथापिकिन्तुलेकिन आदि।

उदाहरणकॉपी मिल गयी 'किन्तुकिताब नही मिली।

(iii)विकल्पसूचकजो शब्द विकल्प का ज्ञान करायेंउन्हें 'विकल्पसूचकशब्द कहते है।

जैसेतोअथवाया आदि।

उदाहरण - मेरी किताब रमेश ने चुराई या राकेश ने। इस वाक्य में 'रमेशऔर 'राकेशके चुराने की क्रिया करने में विकल्प है।

(iv) विरोधदर्शकपरपरन्तुकिन्तुलेकिनमगरवरनबल्कि।

(v) परिणामदर्शकइसलिएसोअतःअतएव।

(2) व्यधिकरणजिन पदों या अव्ययों के मेल से एक मुख्य वाक्य में एक या अधिक आश्रित वाक्य जोड़े जाते हैउन्हें ' व्यधिकरण समुच्चयबोधककहते हैं। इसके चार उपभेद है।-

(i) कारणवाचकक्योंकिजोकिइसलिए कि। 

(ii) उद्देश्यवाचककिजोताकिइसलिए कि। 

(iii) संकेतवाचकजो-तोयदि-तोयद्यपि-तथापिचाहे-परन्तुकि। 

(iv) स्वरूपवाचककिजोअर्थातयानेमानो।

(4)विस्मयादिबोधक अव्यय :- जो शब्द आश्चर्यहर्षशोकघृणाआशीर्वादक्रोधउल्लासभय आदि भावों को प्रकट करेंउन्हें 'विस्मयादिबोधककहते है।

दूसरे शब्दों में-जिन अव्ययों से हर्ष-शोक आदि के भाव सूचित होंपर उनका सम्बन्ध वाक्य या उसके किसी विशेष पद से  होउन्हें 'विस्मयादिबोधककहते है।

इन अव्ययों के बाद विस्मयादिबोधक चिहन (!)लगाते है।

जैसेहायअब मैं क्या करूँ ? हैं !तुम क्या कर रहे हो ? यहाँ 'हाय!' और 'है !'

अरे !पीछे हो जाओगिर जाओगे।

इस वाक्य में अरे !शब्द से भय प्रकट हो रहा है।

विस्मयादिबोधक अव्यय हैजिनका अपने वाक्य या किसी पद से कोई सम्बन्ध नहीं। 

व्याकरण में विस्मयादिबोधक अव्ययों का कोई विशेष महत्त्व नहीं है। इनसे शब्दों या वाक्यों के निर्माण में कोई विशेष सहायता नहीं मिलती। इनका प्रयोग मनोभावों को तीव्र रूप में प्रकट करने के लिए होता है। 'अब मैं क्या करूँ ? इस वाक्य के पहले 'हाय!' जोड़ा जा सकता है।

विस्मयादिबोधक के निम्नलिखित भेद हैं-

(i)हर्षबोधकअहा!, वाह-वाह!,धन्य-धन्यशाबाश!, जयखूब आदि।

(ii)शोकबोधकअहा!, उफहा-हा!, आहहाय,त्राहि-त्राहि आदि।

(iii) आश्चर्यबोधकवाह!, हैं!,!, क्या!, ओहोअरेआदि

(iv) क्रोधबोधकहटदूर होचुप आदि।

(v) स्वीकारबोधकहाँ!, जी हाँजीअच्छाजी!, ठीक!, बहुत अच्छाआदि।

(vi)सम्बोधनबोधकअरे!, अजी!, लोरेहे आदि।

(vii)भयबोधकअरेबचाओ-बचाओ आदि।

निपात और उसके कार्य

यास्क के अनुसार 'निपातशब्द के अनेक अर्थ हैइसलिए ये निपात कहे जाते हैंउच्चावच्चेषु अर्थेषु निपतन्तीति निपाताः। यह पाद का पूरण करनेवाला होता है- 'निपाताः पादपूरणाः  कभी-कभी अर्थ के अनुसार प्रयुक्त होने से अनर्थक निपातों से अन्य सार्थक निपात भी होते हैं। निपात का कोई लिंगवचन नहीं होता। मूलतः इसका प्रयोग अववयों के लिए होता है। जैसे अव्ययों में आकारगत अपरिवर्त्तनीयता होती हैवैसे ही निपातों में भी।

निपातों का प्रयोग निश्चित शब्दशब्द-समूह या पूरे वाक्य को अन्य (अतिरिक्तभावार्थ प्रदान करने के लिए होता है। निपात सहायक शब्द होते हुए भी वाक्य के अंग नही होते। पर वाक्य में इनके प्रयोग से उस वाक्य का समग्र अर्थ प्रभावित होता है।

निपात के भेद

यास्क ने निपात के तीन भेद माने है-

(1) उपमार्थक निपात : यथाइवचित्नुः 

(2) कर्मोपसंग्रहार्थक निपात : यथावा;

(3) पदपूरणार्थक निपात : यथानूनम्खलुहिअथ।

यद्यपि निपातों में सार्थकता नहीं होतीतथापि उन्हें सर्वथा निरर्थक भी नहीं कहा जा सकता। निपात शुद्ध अव्यय नहीं हैक्योंकि संज्ञाओंविशेषणोंसर्वनामों आदि में जब अव्ययों का प्रयोग होता हैतब उनका अपना अर्थ होता हैपर निपातों में ऐसा नहीं होता। निपातों का प्रयोग निश्र्चित शब्दशब्द-समुदाय या पूरे वाक्य को अन्य भावार्थ प्रदान करने के लिए होता है। इसके अतिरिक्तनिपात सहायक शब्द होते हुए भी वाक्य के अंग नहीं हैं। पर वाक्य में इनके प्रयोग से उस वाक्य का सम्रग अर्थ व्यक्त होता है। साधारणतः निपात अव्यय ही है। हिन्दी में अधिकतर निपात शब्दसमूह के बाद आते हैंजिनको वे बल प्रदान करते हैं।

निपात के कार्य

निपात के निम्नलिखित कार्य होते हैं-

(1) पश्रजैसे : क्या वह जा रहा है ?

(2) अस्वीकृतिजैसे : मेरा छोटा भाई आज वहाँ नहीं जायेगा। 

(3) विस्मयादिबोधकजैसे : क्या अच्छी पुस्तक है !

(4) वाक्य में किसी शब्द पर बल देनाबच्चा भी जानता है।

निपात के प्रकार

निपात के नौ प्रकार या वर्ग हैं-

(1) स्वीकार्य निपातजैसे : हाँजीजी हाँ। 

(2) नकरार्थक निपातजैसे : नहींजी नहीं। 

(3) निषेधात्मक निपातजैसे : मत। 

(4) पश्रबोधकजैसे : क्या ? न। 

(5) विस्मयादिबोधक निपातजैसे : क्याकाशकाश कि। 

(6) बलदायक या सीमाबोधक निपातजैसे : तोहीतकपर सिर्फकेवल। 

(7) तुलनबोधक निपातजैसे : सा। 

(8) अवधारणबोधक निपातजैसे : ठीकलगभगकरीबतकरीबन। 

(9) आदरबोधक निपातजैसे : जी।

अव्यय का पद परिचय

इसमें अव्ययअव्यय का भेद और उससे सम्बन्ध रखनेवाला पदइतनी बातें लिखनी चाहिए। 

उदाहरणवह अभी आया है। 

इसमें 'अभीअव्यय है। इसका पदान्वय होगा-

अभीकालवाचक अव्यय, 'आनाक्रिया का काल सूचित करता हैअतः 'आनाक्रिया का विशेषण। 

उदाहरणअहा ! आप  गये। 

अहाहर्षबोधक अव्यय।

पद-परिचय के कुछ अन्य उदाहरण

उदाहरण (1) अच्छा लड़का कक्षा में शान्तिपूर्वक बैठता है। 

अच्छागुणवाचक विशेषणपुंलिंगएकवचनइसका विशेष्य 'लड़काहै। 

लड़काजातिवाचक संज्ञापुंलिंगएकवचनअन्यपुरुषकर्ताकारक, 'बैठता हैक्रिया का कर्ता। 

कक्षा मेंजातिवाचक संज्ञास्त्रीलिंगएकवचनअधिकरणकारक। 

शान्तिपूर्वकरीतिवाचक क्रियाविशेषण, 'बैठता हैक्रिया का विशेषण। 

बैठता हैअकर्मक क्रियाकर्तृवाच्यसामान्य वर्तमानकालपुंलिंगएकवचनअन्यपुरुषइसका कर्ता लड़का है।

उदाहरण (2) मोहन अपने भाई सोहन को छड़ी से मारता है। 

मोहनव्यक्तिवाचक संज्ञाअन्यपुरुषपुंलिंगएकवचनकर्ताकारकइसकी क्रिया है 'मारता है 

अपनेनिजवाचक सर्वनामपुंलिंगएकवचनसम्बन्धकारक, 'भाईसे सम्बन्ध रखता हैसार्वनामिक विशेषणइसका विशेष्य 'भाईहै। 

भाईजातिवाचक संज्ञापुंलिंगएकवचनकर्मकारक, 'सोहन' (कर्मका विशेषण, 'मारता हैक्रिया का कर्म। 

सोहन कोव्यक्तिवाचक संज्ञापुंलिंगएकवचनकर्मकारक, 'भाईके अर्थ को प्रकट करता है अतः 'समानाधिकरण संज्ञा 

छड़ी सेजातिवाचक संज्ञास्त्रीलिंगएकवचनकरणकारक। 

मारता हैसकर्मक क्रियाइसका कर्म 'भाई सोहन', सामान्य वर्तमानकालपुंलिंगकर्तृवाच्यअन्यपुरुषइसका कर्ता 'मोहनहै।





हिन्दी व्याकरण 

•   भाषा   •   लिपि   •   व्याकरण   •   वर्ण,वर्णमाला   •   शब्द   •   वाक्य   •   संज्ञा   •   सर्वनाम   •   क्रिया   •   काल   •   विशेषण   •   अव्यय   •   लिंग   •   उपसर्ग   •   प्रत्यय   •   तत्सम तद्भव शब्द   •    संधि 1   •  संधि 2   •   कारक   •   मुहावरे 1   •   मुहावरे 2   •   लोकोक्ति   •   समास 1   •   समास 2   •   वचन   •   अलंकार   •   विलोम   •   अनेकार्थी शब्द   •  अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 1   •   अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 2   •   पत्रलेखन   •   विराम चिह्न   •   युग्म शब्द   •   अनुच्छेद लेखन   •   कहानी लेखन   •   संवाद लेखन   •   तार लेखन   •   प्रतिवेदन लेखन   •   पल्लवन   •   संक्षेपण   •   छन्द   •   रस   •   शब्दार्थ   •   धातु   •   पदबंध   •   उपवाक्य   •   शब्दों की अशुद्धियाँ   •   समोच्चरित भिन्नार्थक शब्द   •   वाच्य   •   सारांश   •   भावार्थ   •   व्याख्या   •   टिप्पण   •   कार्यालयीय आलेखन   •   पर्यायवाची शब्द   •   श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द   •   वाक्य शुद्धि   •   पाठ बोधन   •   शब्द शक्ति   •   हिन्दी संख्याएँ   •   पारिभाषिक शब्दावली   •




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