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वर्ण, वर्णमाला (Alphabet)

 


वर्णवर्णमाला(Alphabet)

वर्ण -  वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैंजिसके खंड या टुकड़े नहीं किये जा सकते। जैसे-,ख्इत्यादि।

ये सभी वर्ण हैक्योंकि इनके खंड नहीं किये जा सकते। उदाहरण द्वारा मूल ध्वनियों को यहाँ स्पष्ट किया जा सकता है। 'रामऔर 'गयामें चार-चार मूल ध्वनियाँ हैं,जिनके खंड नहीं किये जा सकते+++ =राम+++ =गया। इन्हीं अखंड मूल ध्वनियों को वर्ण कहते हैं। हर वर्ण की अपनी लिपि होती है। लिपि को वर्ण-संकेत भी कहते हैं।

वर्णमाला -  वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं।

इसे हम ऐसे भी कह सकते हैकिसी भाषा के समस्त वर्णो के समूह को वर्णमाला कहते हैै।

वर्ण के भेद

हिंदी भाषा में वर्ण दो प्रकार के होते है। 

(1) स्वर (vowel)  (2) व्यंजन (Consonant)

(1) स्वर (vowel) :- वे वर्ण जिनका उच्चारण बिना किसी दूसरे वर्ण की सहायता के हो सकता है ,स्वर कहलाता है।

इसके उच्चारण में कंठतालु का उपयोग होता हैजीभहोठ का नहीं।

हिंदी वर्णमाला में 16 स्वर है

जैसे -          अं अः    ॡ।

स्वर के भेद

स्वर के दो भेद होते है -

(i)  मूल स्वर (ii)  संयुक्त स्वर

(i) मूल स्वर : - 

(ii) संयुक्त स्वर : -  ( +और  ( +)

मूल स्वर के भेद

मूल स्वर के तीन भेद होते है -

(i) ह्स्व स्वर (ii) दीर्घ स्वर (iii) प्लुत स्वर

(i) ह्स्व स्वर :- जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है उन्हें ह्स्व स्वर कहते है। ह्स्व स्वर चार होते है -     

(ii) दीर्घ स्वर :- स्वरों उच्चारण में अधिक समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते है 

दीर्घ स्वर सात होते है -  

दीर्घ स्वर दो शब्दों योग से बनते है 

जैसे -  = ( + ),   = ( + )  = ( + )  = ( + )  = ( + )  = ( + )  =( + )

(iii) प्लुत स्वर  :- जिस स्वर के उच्चारण में तिगुना समय लगेउसे 'प्लुतकहते हैं। इसका कोई चिह्न नहीं होता। इसके लिए तीन (का अंक लगाया जाता है। जैसेओउम। हिन्दी में साधारणतः प्लुत का प्रयोग नहीं होता। वैदिक भाषा में प्लुत स्वर का प्रयोग अधिक हुआ है। इसे 'त्रिमात्रिकस्वर भी कहते हैं।

वर्णों की मात्राएँ

व्यंजन वर्णों के उच्चारण में जिन स्वरमूलक चिह्नों का व्यवहार होता हैउन्हें 'मात्राएँकहते हैं। 

दूसरे शब्दो मेंस्वरों के व्यंजन में मिलने के इन रूपों को भी 'मात्राकहते हैंक्योंकि मात्राएँ तो स्वरों की होती हैं।

ये मात्राएँ दस हैजैसे    इत्यादि। ये मात्राएँ केवल व्यंजनों में लगती हैंजैसेकाकिकीकुकूकृकेकैकोकौ इत्यादि। स्वर वर्णों की ही हस्व-दीर्घ (छंद में लघु-गुरुमात्राएँ होती हैंजो व्यंजनों में लगने पर उनकी मात्राएँ हो जाती हैं। हाँव्यंजनों में लगने पर स्वर उपयुक्त दस रूपों के हो जाते हैं।

अनुनासिकनिरनुनासिकअनुस्वार और विसर्ग

अनुनासिकनिरनुनासिकअनुस्वार और विसर्गहिन्दी में स्वरों का उच्चारण अनुनासिक और निरनुनासिक होता हैं। अनुस्वार और विर्सग व्यंजन हैंजो स्वर के बादस्वर से स्वतंत्र आते हैं। इनके संकेतचिह्न इस प्रकार हैं।

अनुनासिक ()   ऐसे स्वरों का उच्चारण नाक और मुँह से होता है और उच्चारण में लघुता रहती है   जैसे -  गाँवदाँतआँगनसाँचा इत्यादि 

अनुस्वार ( ) -  यह स्वर के बाद आनेवाला व्यंजन हैजिसकी ध्वनि नाक से निकलती है   जैसे -  अंगूरअंगदकंकन 

निरनुनासिक -  केवल मुँह से बोले जानेवाला सस्वर वर्णों को निरनुनासिक कहते हैं   जैसे -  इधरउधरआपअपनाघर इत्यादि 

विसर्ग ) -  अनुस्वार की तरह विसर्ग भी स्वर के बाद आता है   यह व्यंजन है और इसका उच्चारण 'की तरह होता है। संस्कृत में इसका काफी व्यवहार है। हिन्दी में अब इसका अभाव होता जा रहा हैकिन्तु तत्सम शब्दों के प्रयोग में इसका आज भी उपयोग होता है।  जैसेमनःकामनापयःपानअतःस्वतःदुःख  इत्यादि 

टिप्पणीअनुस्वार और विसर्ग  तो स्वर हैं व्यंजनकिन्तु ये स्वरों के सहारे चलते हैं। स्वर और व्यंजन दोनों में इनका उपयोग होता है। जैसेअंगदरंग। इस सम्बन्ध में आचार्य किशोरीदास वाजपेयी का कथन है कि ''ये स्वर नहीं हैं और व्यंजनों की तरह ये स्वरों के पूर्व नहीं पश्र्चात आते हैं, ''इसलिए व्यंजन नहीं। इसलिए इन दोनों ध्वनियों को 'अयोगवाहकहते हैं।'' अयोगवाह का अर्थ हैयोग  होने पर भी जो साथ रहे।

(2) व्यंजन (Consonant) :-  जिन वर्णो को बोलने के लिए स्वर की सहायता लेनी पड़ती है उन्हें व्यंजन कहते है  

दूसरे शब्दो में-व्यंजन उन वर्णों को कहते हैंजिनके उच्चारण में स्वर वर्णों की सहायता ली जाती है। जैसे इत्यादि।

'से विसर्ग ( : ) तक सभी वर्ण व्यंजन हैं। प्रत्येक व्यंजन के उच्चारण में 'की ध्वनि छिपी रहती है। 'के बिना व्यंजन का उच्चारण सम्भव नहीं। जैसेख्+=प्+ =प। व्यंजन वह ध्वनि हैजिसके उच्चारण में भीतर से आती हुई वायु मुख में कहीं--कहींकिसी--किसी रूप मेंबाधित होती है। स्वरवर्ण स्वतंत्र और व्यंजनवर्ण स्वर पर आश्रित है। हिन्दी में व्यंजनवर्णो की संख्या ३३ है।

व्यंजनों के प्रकार -

व्यंजनों चार प्रकार के होते है-

स्पर्श व्यंजन       2 अंतः स्थ व्यंजन 

उष्म व्यंजन               4 संयुक्त व्यंजन

(1) स्पर्श व्यंजन :- स्पर्श का अर्थ होता है -छूना। जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय जीभ मुँह की किसी भाग जैसे -कण्ठ,तालु ,मूर्धा ,दाँत ,अथवा होठ का स्पर्श करती है उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते है।

दूसरे शब्दो मेंये कण्ठतालुमूर्द्धादन्त और ओष्ठ स्थानों के स्पर्श से बोले जाते हैं। इसी से इन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं। इन्हें हम 'वर्गीय व्यंजनभी कहते है;

क्योंकि ये उच्चारण-स्थान की अलग-अलग एकता लिए हुए वर्गों में विभक्त हैं।

ये 25 व्यंजन होते है

(1) कवर्ग      ये कण्ठ का स्पर्श करते है 

(2) चवर्ग      ये तालु का स्पर्श करते है 

(3) टवर्ग      (ड़ढ़ये मूर्धा का स्पर्श करते है I

(4) तवर्ग      ये दाँतो का स्पर्श करते है I

(5) पवर्ग      ये होठों का स्पर्श करते है I

(2) अंतः स्थ व्यंजन :- अंतः का अर्थ होता है -भीतर। उच्चारण के समय जो व्यंजन मुँह के भीतर ही रहे उन्हें अंतः स्थ व्यंजन कहते है। 

ये व्यंजन चार होते है -  , व। इनका उच्चारण जीभतालुदाँत और ओठों के परस्पर सटाने से होता हैकिन्तु कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं होता। अतः ये चारों अन्तःस्थ व्यंजन 'अर्द्धस्वरकहलाते हैं।

(3) उष्म व्यंजन :- उष्म का अर्थ होता है -गर्म। जिन वर्णो के उच्चारण के समय हवा मुँह के विभिन्न भागों टकराये और साँस में गर्मी पैदा कर दे उन्हें उष्म व्यंजनकहते है। 

उष्म व्यंजनों का उच्चारण एक प्रकार की रगड़ या घर्षण से उत्पत्र उष्म वायु से होता हैं। ये भी चार व्यंजन होते है -ह।

(4 ) संयुक्त व्यंजन :- ये दो व्यंजनों से मिलकर बनते है। ये निम्नलिखित तीन होते है।-

क्ष = + +              त्र= + +           ज्ञ= + +

अल्पप्राण और महाप्राण

अल्पप्राण और महाप्राणउच्चारण में वायुप्रक्षेप की दृष्टि से व्यंजनों के दो भेद हैं (1) अल्पप्राण (2) महाप्राण

(1) अल्पप्राण :- जिनके उच्चारण में श्वास पुरव से अल्प मात्रा में निकले और जिनमें 'हकार'-जैसी ध्वनि नहीं होतीउन्हें अल्पप्राण व्यंजन कहते हैं।

प्रत्येक वर्ग का पहलातीसरा और पाँचवाँ वर्ण अल्पप्राण व्यंजन हैं। जैसे-, अन्तःस्थ ( ) भी अल्पप्राण ही हैं।

(2) महाप्राण :- महाप्राण व्यंजनों के उच्चारण में 'हकार'-जैसी ध्वनि विशेषरूप से रहती है और श्वास अधिक मात्रा में निकलती हैं। प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण तथा समस्त ऊष्म वर्ण महाप्राण हैं। 

जैसे और ह। संक्षेप में अल्पप्राण वर्णों की अपेक्षा महाप्राणों में प्राणवायु का उपयोग अधिक श्रमपूर्वक करना पड़ता हैं।

घोष और अघोष व्यंजन

(1) घोष व्यंजन :- नाद की दृष्टि से जिन व्यंजनवर्णों के उच्चारण में स्वरतन्तियाँ झंकृत होती हैंवे घोष कहलाते हैं।

(2) अघोष व्यंजन :- नाद की दृष्टि से जिन व्यंजनवर्णों के उच्चारण में स्वरतन्तियाँ झंकृत नहीं होती हैंवे अघोष कहलाते हैं।

'घोषमें केवल नाद का उपयोग होता हैंजबकि 'अघोषमें केवल श्र्वास का। उदाहरण के लिएअघोष वर्णस। 

घोष वर्णप्रत्येक वर्ग का तीसराचौथा और पाँचवाँ वर्णसारे स्वरवर्ण और ह।

हल्

हल् - व्यंजनों के नीचे जब एक तिरछी रेखा लगाई जायतब उसे हल् कहते हैं। 

'हल्लगाने का अर्थ है कि व्यंजन में स्वरवर्ण का बिलकुल अभाव है या व्यंजन आधा हैं।

जैसे- 'व्यंजनवर्ण हैंइसमें 'स्वरवर्ण की ध्वनि छिपी हैं।

यदि हम इस ध्वनि को बिलकुल अलग कर देना चाहेंतो 'में हलन्त या हल् चिह्न लगाना आवश्यक होगा। ऐसी स्थिति में इसके रूप इस प्रकार होंगेक्ख्ग्च् 

हिन्दी के नये वर्ण:हिन्दी वर्णमाला में पाँच नये व्यंजनक्षत्रज्ञ और जोड़े गये हैं। किन्तुइनमें प्रथम तीन स्वतंत्र  होकर संयुक्त व्यंजन हैंजिनका खण्ड किया जा सकता हैं। जैसेक्+ =क्षत्+=त्रज्+=ज्ञ।

अतः क्षत्र और ज्ञ की गिनती स्वतंत्र वर्णों में नहीं होती।  और  के नीचे बिन्दु लगाकर दो नये अक्षर  और  बनाये गये हैं। ये संयुक्त व्यंजन हैं।

यहाँ - में 'की ध्वनि मिली हैं। इनका उच्चारण साधारणतया मूर्द्धा से होता हैं। किन्तु कभी-कभी जीभ का अगला भाग उलटकर मूर्द्धा में लगाने से भी वे उच्चरित होते हैं।

हिन्दी में अरबी-फारसी की ध्वनियों को भी अपनाने की चेष्टा हैं। व्यंजनों के नीचे बिन्दु लगाकर इन नयी विदेशी ध्वनियों को बनाये रखने की चेष्टा की गयी हैं। जैसेकलमखैरजरूरत। किन्तु हिन्दी के विद्वानों (पं० किशोरीदास वाजपेयीपराड़करजीटण्डनजी), काशी नगरी प्रचारिणी सभा और हिन्दी साहित्य सम्मेलन को यह स्वीकार नहीं हैं। इनका कहना है कि फारसी-अरबी से आये शब्दों के नीचे बिन्दी लगाये बिना इन शब्दों को अपनी भाषा की प्रकृति के अनुरूप लिखा जाना चाहिए। बँगला और मराठी में भी ऐसा ही होता हैं।

वर्णों का उच्चारण

कोई भी वर्ण मुँह के भित्र - भित्र भागों से बोला जाता हैं   इन्हें उच्चारण स्थान  कहते हैं 

मुख के छह भाग हैं - कण्ठतालुमूर्द्धादाँतओठ और  नाक  

 हिन्दी के सभी वर्ण इन्हीं से अनुशासित और उच्चरित होते हैं। चूँकि उच्चारणस्थान भित्र हैंइसलिए वर्णों की निम्नलिखित श्रेणियाँ बन गई हैं -

कण्ठ्य -  कण्ठ और निचली जीभ के स्पर्श से बोले जानेवाले वर्ण कवर्ग और विसर्ग  

तालव्य -  तालु और जीभ के स्पर्श से बोले जानेवाले वर्ण -  चवर्ग और   

मूर्द्धन्य -  मूर्द्धा और जीभ के स्पर्शवाले वर्ण -  टवर्ग  

दन्त्य  दाँत और जीभ के स्पर्श से बोले जानेवाले वर्ण -  तवर्ग 

ओष्ठ्य -  दोनों ओठों के स्पर्श से बोले जानेवाले वर्ण  पवर्ग  

कण्ठतालव्य -  कण्ठ और तालु में जीभ के स्पर्श से बोले जानेवाले वर्ण  ,  

कण्ठोष्ठय  कण्ठ द्वारा जीभ और ओठों के कुछ स्पर्श से बोले जानेवाले वर्ण -   और   

दन्तोष्ठय -  दाँत से जीभ और ओठों के कुछ योग से बोला जानेवाला वर्ण -   

स्वर वर्णो का उच्चारण

'का उच्चारणयह कण्ठ्य ध्वनि हैं। इसमें व्यंजन मिला रहता हैं। जैसेक्+=क। जब यह किसी व्यंजन में नहीं रहतातब उस व्यंजन के नीचे हल् का चिह्न लगा दिया जाता हैं।

हिन्दी के प्रत्येक शब्द के अन्तिम 'लगे वर्ण का उच्चारण हलन्त-सा होता हैं।  जैसेनमक्रात्दिन्मन्रूप्पुस्तक्किस्मत् इत्यादि 

इसके अतिरिक्तयदि अकारान्त शब्द का अन्तिम वर्ण संयुक्त होतो अन्त्य 'का उच्चारण पूरा होता हैं। जैसेसत्यब्रह्मखण्डधर्म इत्यादि।

इतना ही नहींयदि  या  के बाद 'आएतो अन्त्य 'का उच्चारण पूरा होता हैं। जैसेप्रियआत्मीयराजसूय आदि।

'और 'का उच्चारण-'का उच्चारण कण्ठ और तालु से और 'का उच्चारण कण्ठ और ओठ के स्पर्श से होता हैं। संस्कृत की अपेक्षा हिन्दी में इनका उच्चारण भित्र होता हैं। जहाँ संस्कृत में 'का उच्चारण 'अइऔर 'का उच्चारण 'अउकी तरह होता हैंवहाँ हिन्दी में इनका उच्चारण क्रमशः 'अयऔर 'अवके समान होता हैं। अतएवइन दो स्वरों की ध्वनियाँ संस्कृत से भित्र हैं   जैसे-

संस्कृत में       हिन्दी में

श्अइलशौल (अइ) ऐसाअयसा (अय)

क्अउतुककौतुक (अउ) कौन-क्अवन (अव)

व्यंजनों का उच्चारण

'और 'का उच्चारण-'का उच्चारणस्थान दन्तोष्ठ हैंअर्थात दाँत और ओठ के संयोग से 'का उच्चारण होता है और 'का उच्चारण दो ओठों के मेल से होता हैं। हिन्दी में इनके उच्चारण और लिखावट पर पूरा ध्यान नहीं दिया जाता। नतीजा यह होता हैं कि लिखने और बोलने में भद्दी भूलें हो जाया करती हैं। 'वेदको 'बेदऔर 'वायुको 'बायुकहना भद्दा लगता हैं। संस्कृत में 'का प्रयोग बहुत कम होता हैंहिन्दी में बहुत अधिक। यही कारण है कि संस्कृत के तत्सम शब्दों में प्रयुक्त 'वर्ण को हिन्दी में 'लिख दिया जाता हैं। बात यह है कि हिन्दीभाषी बोलचाल में भी 'और 'का उच्चारण एक ही तरह करते हैं। इसलिए लिखने में भूल हो जाया करती हैं। इसके फलस्वरूप शब्दों का अशुद्ध प्रयोग हो जाता हैं। इससे अर्थ का अनर्थ भी होता हैं। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं -

(i) वासरहने का स्थाननिवास। बाससुगन्धगुजर।

(ii)  वंशीमुरली। बंशीमछली फँसाने का यन्त्र। 

(iii)  वेगगति। बेगथैला (अँगरेजी), कपड़ा (अरबी), तुर्की की एक पदवी। 

(iv)  वादमत। बादउपरान्तपश्रात। 

(v)  वाह्यवहन करने (ढोययोग्य। बाह्यबाहरी।

सामान्यतः हिन्दी की प्रवृत्ति 'लिखने की ओर हैं। यही कारण है कि हिन्दी शब्दकोशों में एक ही शब्द के दोनों रूप दिये गये हैं। बँगला में तो एक ही '' (है, 'नहीं। लेकिनहिन्दी में यह स्थिति नहीं हैं। यहाँ तो 'वहनऔर 'बहनका अन्तर बतलाने के लिए 'और 'के अस्तित्व को बनाये रखने की आवश्यकता हैं।

'और 'का उच्चारण-हिन्दी वर्णमाला के ये दो नये वर्ण हैंजिनका संस्कृत में अभाव हैं। हिन्दी में 'और 'के नीचे बिन्दु लगाने से इनकी रचना हुई हैं। वास्तव में ये वैदिक वर्णों  और क्  के विकसित रूप हैं। इनका प्रयोग शब्द के मध्य या अन्त में होता हैं। इनका उच्चारण करते समय जीभ झटके से ऊपर जाती हैइन्हें उश्रिप्प (ऊपर फेंका हुआव्यंजन कहते हैं।

जैसेसड़कहाड़गाड़ीपकड़नाचढ़ानागढ़।

-- का उच्चारण-ये तीनों उष्म व्यंजन हैंक्योंकि इन्हें बोलने से साँस की ऊष्मा चलती हैं। ये संघर्षी व्यंजन हैं।

'के उच्चारण में जिह्ना तालु को स्पर्श करती है और हवा दोनों बगलों में स्पर्श करती हुई निकल जाती हैपर 'के उच्चारण में जिह्ना मूर्द्धा को स्पर्श करती हैं। अतएव 'तालव्य वर्ण है और 'मूर्धन्य वर्ण। हिन्दी में अब 'का उच्चारण 'के समान होता हैं। 'वर्ण उच्चारण में नहीं हैपर लेखन में हैं। सामान्य रूप से 'का प्रयोग तत्सम शब्दों में होता हैजैसेअनुष्ठानविषादनिष्ठाविषमकषाय इत्यादि।

'और 'के उच्चारण में भेद स्पष्ट हैं। जहाँ 'के उच्चारण में जिह्ना तालु को स्पर्श करती हैवहाँ 'के उच्चारण में जिह्ना दाँत को स्पर्श करती है। 'वर्ण सामान्यतया संस्कृतफारसीअरबी और अँगरेजी के शब्दों में पाया जाता हैजैसेपशुअंशशराबशीशालाशस्टेशनकमीशन इत्यादि। हिन्दी की बोलियों में  का स्थान 'ने ले लिया है। 'और 'के अशुद्ध उच्चारण से गलत शब्द बन जाते है और उनका अर्थ ही बदल जाता है। अर्थ और उच्चारण के अन्तर को दिखलानेवाले कुछ उदाहरण इस प्रकार है-

अंश (भाग)- अंस (कन्धा शकल (खण्ड)- सकल (सारा शर (बाण)- सर (तालाब शंकर (महादेव)- संकर (मिश्रित श्र्व (कुत्ता)- स्व (अपना शान्त (धैर्ययुक्त)- सान्त (अन्तसहित)

'और 'का उच्चारण-इसका उच्चारण शब्द के आरम्भ मेंद्वित्व में और हस्व स्वर के बाद अनुनासिक व्यंजन के संयोग से होता है।

जैसेडाकाडमरूढाकाढकनाढोलशब्द के आरम्भ में। 

गड्ढाखड्ढाद्वित्व में। 

डंडपिंडचंडूमंडपहस्व स्वर के पश्रातअनुनासिक व्यंजन के संयोग पर।

 



हिन्दी व्याकरण 

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