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लोकोक्तियाँ (proverbs)

 


लोकोक्तियाँ (proverbs)

किसी विशेष स्थान पर प्रसिद्ध हो जाने वाले कथन को 'लोकोक्तिकहते हैं।

दूसरे शब्दों मेंजब कोई पूरा कथन किसी प्रसंग विशेष में उद्धत किया जाता है तो लोकोक्ति कहलाता है। इसी को कहावत कहते है।

उदाहरण- 'उस दिन बात-ही-बात में राम ने कहाहाँमैं अकेला ही कुँआ खोद लूँगा। इन पर सबों ने हँसकर कहाव्यर्थ बकबक करते होअकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता यहाँ 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़तालोकोक्ति का प्रयोग किया गया हैजिसका अर्थ है 'एक व्यक्ति के करने से कोई कठिन काम पूरा नहीं होता

लोकोक्ति किसी घटना पर आधारित होती है। इसके प्रयोग में कोई परिवर्तन नहीं होता है। ये भाषा के सौन्दर्य में वृद्धि करती है। लोकोक्ति के पीछे कोई कहानी या घटना होती है। उससे निकली बात बाद में लोगों की जुबान पर जब चल निकलती हैतब 'लोकोक्तिहो जाती है।

मुहावरा और लोकोक्ति में अंतर

दोनों में अंतर इस प्रकार है-

(1) मुहावरा वाक्यांश होता हैजबकि लोकोक्ति एक पूरा वाक्यदूसरे शब्दों मेंमुहावरों में उद्देश्य और विधेय नहीं होताजबकि लोकोक्ति में उद्देश्य और विधेय होता है। 

(2) मुहावरा वाक्य का अंश होता हैइसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव नहीं हैउनका प्रयोग वाक्यों के अंतर्गत ही संभव है। लोकोक्ति एक पूरे वाक्य के रूप में होती हैइसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव है। 

(3) मुहावरे शब्दों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं जबकि लोकोक्तियाँ वाक्यों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं।

यहाँ कुछ लोकोक्तियाँ  उनके अर्थ तथा प्रयोग दिये जा रहे हैं-

अन्धों में काना राजा= (मूर्खो में कुछ पढ़ा-लिखा व्यक्ति)

प्रयोगमेरे गाँव में कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति तो है नहीइसलिए गाँववाले पण्डित अनोखेराम को ही सब कुछ समझते हैं। ठीक ही कहा गया हैअन्धों में काना राजा।

अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता= (अकेला आदमी लाचार होता है।)

प्रयोगमाना कि तुम बलवान ही नहींबहादुर भी होपर अकेले डकैतों का सामना नहीं कर सकते। तुमने सुना ही होगा कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता।

अधजल गगरी छलकत जायडींग हाँकना।

प्रयोगइसके दो-चार लेख क्या छप गये कि वह अपने को साहित्य-सिरमौर समझने लगा है। ठीक ही कहा गया है, 'अधजल गगरी छलकत जाय।'

आँख का अन्धा नाम नयनसुख= (गुण के विरुद्ध नाम होना।)

प्रयोगएक मियाँजी का नाम था शेरमार खाँ। वे अपने दोस्तों से गप मार रहे थे। इतने में घर के भीतर बिल्लियाँ म्याऊँ-म्याऊँ करती हुई लड़ पड़ी। सुनते ही शेरमार खाँ थर-थर काँपने लगे। यह देख एक दोस्त ठठाकर हँस पड़ा और बोला कि वाह जी शेरमार खाँआपके लिए तो यह कहावत बहुत ठीक है कि आँख का अन्धा नाम नयनमुख।

आँख के अन्धे गाँठ के पूरे= (मूर्ख धनवान)

प्रयोगवकीलों की आमदनी के क्या कहने। उन्हें आँख के अन्धे गाँठ के पूरे रोज ही मिल जाते हैं।

आग लगन्ते झोपड़ाजो निकले सो लाभनुकसान होते-होते जो कुछ बच जायवही बहुत है।

प्रयोगकिसी के घर चोरी हुई। चोर नकद और जेवर कुल उठा ले गये। बरतनों पर जब हाथ साफ करने लगेतब उनकी झनझनाहट सुनकर घर के लोग जाग उठे। देखा तो कीमती माल सब गायब। घर के मालिकों ने बरतनों पर आँखें डालकर अफसोस करते हुए कहा कि खैर हुईजो ये बरतन बच गये। आग लगन्ते झोपड़ाजो निकले सो लाभ। यदि ये भी चले गये होतेतो कल पत्तों पर ही खाना पड़ता।

आगे नाथ  पीछे पगहा= (किसी तरह की जिम्मेवारी का  होना)

प्रयोगअरेतुम चक्कर  मारोगे तो और कौन मारेगाआगे नाथ  पीछे पगहा। बसमौज किये जाओ।

आम के आम गुठलियों के दाम= (अधिक लाभ)

प्रयोगसब प्रकार की पुस्तकें 'साहित्य भवनसे खरीदें और पास होने पर आधे दामों पर बेचें। 'आम के आम गुठलियों के दामइसी को कहते हैं

ओखली में सिर दियातो मूसलों से क्या डर= (काम करने पर उतारू होना)

प्रयोगजब मैनें देशसेवा का व्रत ले लियातब जेल जाने से क्यों डरेंजब ओखली में सिर दियातब मूसलों से क्या डर।

 बैल मुझे मार= (स्वयं मुसीबत मोल लेना)

प्रयोगलोग तुम्हारी जान के पीछे पड़े हुए हैं और तुम आधी-आधी रात तक अकेले बाहर घूमते रहते हो। यह तो वही बात हुई बैल मुझे मार। 

आँखों के अन्धे नाम नयनसुख= (गुण के विरुद्ध नाम होना)

प्रयोगउसका नाम तो करोड़ीमल है परन्तु वह पैसे-पैसे के लिए मारा-मारा फिरता है। इसे कहते हैआँखों के अन्धे नाम नयनसुख।

अन्धा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपने को दे= (अधिकार का नाजायज लाभ अपनों को देना)

अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता हैअपने स्थान पर निर्बल भी स्वयं को सबल समझता है।

अन्धा क्या चाहे दो आँखअपनी मनपसन्द वस्तु को पा लेना।

अशर्फी की लूट और कोयले पर छाप= (मूल्यवान वस्तुओं को नष्ट करना और तुच्छ को सँजोना)

अंधों के आगे रोनाअपना दीदा खोना= (निर्दयी या मूर्ख के आगे दुःखड़ा रोना बेकार होता है।)

अपनी करनी पार उतरनी= (किये का फल भोगना)

अपना ढेंढर  देखे और दूसरे की फूली निहारे= (अपना दोष  देखकर दूसरों का दोष देखना)

अपनी-अपनी डफलीअपना-अपना राग=(परस्पर संगठन या मेल  रखना)

आप डूबे जग डूबा= (जो स्वयं बुरा होता हैदूसरों को भी बुरा समझता है।)

आग लगाकर जमालो दूर खड़ी= (झगड़ा लगाकर अलग हो जाना)

आगे कुआँपीछे पगहा= (अपना कोई  होनाघर का अकेला होना)

आँख का अंधा नाम नयनमुख= (गुण के विरुद्ध नाम)

आधा तीतर आधा बटेर= (बेमेल स्थिति)

आप भला तो जग भला= (स्वयं अच्छे तो संसार अच्छा)

आये थे हरि-भजन को ओटन लगे कपास= (करने को तो कुछ आये और करने लगे कुछ और)

ओछे की प्रीत बालू की भीत=(नीचों का प्रेम क्षणिक)

ओस चाटने से प्यास नहीं बूझती= (अधिक कंजूसी से काम नहीं चलता)

ऊँची दूकान फीके पकवान=(केवल ब्राह्य प्रदर्शन)

प्रयोगजग्गू तेली शुद्ध सरसों तेल का विज्ञापन करता हैलेकिन उसकी दूकान पर बिकता है रेपसीड-मिला सरसों तेल। ठीक है ऊँची दूकान फीके पकवान।

उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे= (अपराधी ही पकड़नेवाले को डाँट बताये)

उद्योगिन्न पुरुषसिंहनुपैति लक्ष्मी= (उद्योगी को ही धन मिलता है।)

ऊपर-ऊपर बाबाजीभीतर दगाबाजी= (बाहर से अच्छाभीतर से बुरा)

ऊँचे चढ़ के देखातो घर-घर एकै लेखा= (सभी एक समान)

ऊँट किस करवट बैठता है= (किसकी जीत होती है।)

ऊँट के मुँह में जीरा= (जरूरत से बहुत कम)

ऊँट बहे और गदहा पूछे कितना पानी= (जहाँ बड़ों का ठिकाना नहींवहाँ छोटों का क्या कहना)

ऊधो का लेना  माधो का देना=(लटपट से अलग रहना)

ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया= (ईश्वर की बातें विचित्र हैं।)

प्रयोगकई बेचारे फुटपाथ पर ही रातें गुजारते हैं और कई भव्य बंगलों में आनन्द करते हैं। सच है ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया।

इतनी-सी जानगज भर की जबान= (छोटा होना पर बढ़-बढ़कर बोलना)

ईंट का जवाब पत्थर= (दुष्ट के साथ दुष्टता करना)

इस हाथ देउस हाथ ले= (कर्मो का फल शीघ्र पाना)

ईश्वर की मायाकहीं धूप कहीं छाया= (कहीं सुखकहीं दुःख)

एक पन्थ दो काज= (एक काम से दूसरा काम हो जाना)

प्रयोगदिल्ली जाने से एक पन्थ दो काज होंगे। कवि-सम्मेलन में कविता-पाठ भी करेंगे और साथ ही वहाँ की ऐतिहासिक इमारतों को भी देखेंगे।

एक और एक ग्यारहएकता में शक्ति होती है।

एक हाथ से ताली नहीं बजतीझगड़ा एक ओर से नहीं होता।

एक तो करेला आप तीता दूजे नीम चढ़ा= (बुरे का और बुरे से संग होना)

एक अनार सौ बीमार= (एक वस्तु को सभी चाहनेवाले)

एक तो चोरी दूसरे सीनाज़ोरी= (दोष करके  मानना)

एक म्यान में दो तलवार= (एक स्थान पर दो उग्र विचार वाले)

कहाँ राजा भोज कहाँ गाँगू तेली= (उच्च और साधारण की तुलना कैसी)

प्रयोगतुम सेठ करोड़ीमल के बेटे हो। मैं एक मजदूर का बेटा। तुम्हारा हमारा और मेरा मेल कैसा ? कहाँ राजा भोज कहाँ गाँगू तेली।

कंगाली में आटा गीलापरेशानी पर परेशानी आना।

कबीरदास की उलटी बानीबरसे कंबल भींगे पानी= (प्रकृतीविरुद्ध काम)

कहे खेत कीसुने खलिहान की= (हुक्म कुछ और करना कुछ और)

कहीं का ईट कहीं का रोड़ाभानुमति ने कुनबा जोड़ा= (इधर-उधर से सामान जुटाकर काम करना)

काला अक्षर भैंस बराबर=(निरा अनपढ़)

काबुल में क्या गदहे नहीं होते= (अच्छे बुरे सभी जगह हैं।)

का वर्षा जब कृषि सुखाने= (मौका बीत जाने पर कार्य करना व्यर्थ है।)

काठ की हाँड़ी दूसरी बार नहीं चढ़ती= (कपट का फल अच्छा नहीं होता)

किसी का घर जलेकोई तापे= (दूसरे का दुःख में देखकर अपने को सुखी मानना)

खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता हैएक का प्रभाव दूसरे पर अवश्य पड़ता है।

खरी मजूरी चोखा काम= (अच्छे मुआवजे में ही अच्छा फल प्राप्त होना)

खोदा पहाड़ निकली चुहिया= (कठिन परिश्रमथोड़ा लाभ)

खेत खाये गदहामार खाये जोलहा= (अपराध करे कोईदण्ड मिले किसी और को)

गाँव का जोगी जोगड़ाआन गाँव का सिद्ध= (बाहर के व्यक्तियों का सम्मानपर अपने यहाँ के व्यक्तियों की कद्र नहीं)

गुड़ खाय गुलगुले से परहेज= (बनावटी परहेज)

गोद में छोरा नगर में ढिंढोरा= (पास की वस्तु का दूर जाकर ढूँढना)

गाछे कटहलओठे तेल= (काम होने के पहले ही फल पाने की इच्छा)

गरजेसो बरसे नहीं= (बकवादी कुछ नहीं करता)

गुड़ गुड़चेला चीनी= (गुरु से शिष्य का ज्यादा काबिल हो जाना)

घर का जोगी जोगड़ाआन गाँव का सिद्ध= (निकट का गुणी व्यक्ति कम सम्मान पाता हैपर दूर का ज्यादा)

प्रयोगजग्गू को लोग जगुआ कहकर पुकारते थे। घर त्यागकर सिद्ध पुरुष की संगति में रहकर उसने सिद्धि प्राप्त कर ली और उसका नाम हो गयास्वामी जगदानन्द। गाँव लौटातो किसी ने उसके गुणों की ओर ध्यान नहीं दिया। ठीक ही कहा गया है: 'घर का जोगी जोगड़ाआन गाँव का सिद्ध।'

घड़ी में घर जलेनौ घड़ी भद्रा= (हानि के समय सुअवसर-कुअवसर पर ध्यान  देना)

घर पर फूस नहींनाम धनपत= (गुण कुछ नहींपर गुणी कहलाना)

घर का भेदी लंका ढाए= (आपस की फूट से हानि होती है।)

घर की मुर्गी दाल बराबर= (घर की वस्तु का कोई आदर नहीं करना)

घर में दिया जलाकर मसजिद में जलाना= (दूसरे को सुधारने के पहले अपने को सुधारना)

घी का लड्डू टेढ़ा भला = (लाभदायक वस्तु किसी तरह की क्यों  हो।)

चिराग तले अँधेरा= (अपनी बुराई नहीं दीखती)

प्रयोगमेरे समधी सुरेशप्रसादजी तो तिलक-दहेज  लेने का उपदेश देते फिरते हैपर अपने बेटे के ब्याह में दहेज के लिए ठाने हुए हैं। उनके लिए यही कहावत लागू है कि 'चिराग तले अँधेरा।'

चोर की दाढ़ी में तिनकाअपराधी स्वयं ही पकड़ा जाता है।

चूहे घर में दण्ड पेलते हैं= (आभाव-ही-आभाव)

चमड़ी जायपर दमड़ी  जाय= (महा कंजूस)

जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ= (परिश्रम का फल अवश्य मिलता है)

प्रयोगएक लड़काजो बड़ा आलसी थाबार-बार फेल करता था और दूसराजो परिश्रमी थापहली बार परीक्षा में उतीर्ण हो गया। जब आलसी ने उससे पूछा कि भाईतुम कैसे एक ही बार में पास कर गयेतब उसने जवाब दिया कि 'जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ'

जान बची तो लाखों पायेजान बचने से बड़ा कोई लाभ नहीं है।

ठठेरे-ठठेरे बदलौअल= (चालाक को चालक से काम पड़ना)

ताड़ से गिरा तो खजूर पर अटका= (एक खतरे में से निकलकर दूसरे खतरे में पड़ना)

तीन कनौजियातेरह चूल्हा= (जितने आदमी उतने विचार)

तेली का तेल जले और मशालची का सिर दुखे (छाती फाटे)= खर्च किसी का हो और बुरा किसी और को मालूम हो)

तन पर नहीं लत्ता पान खाय अलबत्ता= (शेखी बघारना)

तीन लोक से मथुरा न्यारी= (निराला ढंग)

तुम डाल-डाल तो हम पात-पात= (किसी की चाल को खूब समझते हुए चलना)

थोथा चना बाजे घनाकम जानकार में घमण्ड अधिक होता है।

थूक कर चाटना ठीक नहीं= (देकर लेना ठीक नहींवचन-भंग करनाअनुचित।)

दमड़ी की हाँड़ी गयीकुत्ते की जात पहचानी गयी= (मामूली वस्तु में दूसरे की पहचान।)

दमड़ी की बुलबुलनौ टका दलाली= ( काम साधारणखर्च अधिक)

दाल-भात मेंमूसलचन्द= (बेकार दखल देना)

दुधारू गाय की दो लात भी भली= (जिससे लाभ होता होउसकी बातें भी सह लेनी चाहिए)

दूध का जला मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीता है= (एक बार धोखा खा जाने पर सावधान हो जाना)

दूर का ढोल सुहावना= (दूर से कोई चीज अच्छी लगती है।)

देशी मुर्गीविलायती बोल= (बेमेल काम करना)

दूध का दूध पानी का पानीसही निर्णय।

दूध का जला छाछ को फूंक मारकर पीता हैधोखा खाकर आदमी सतर्क हो जाता है।

दीवारों के भी कान होते हैंगुप्त बात छिपी नहीं रहती।

धोबी का कुत्ता  घर का  घाट का= (निकम्माव्यर्थ इधर-उधर डालनेवाला)

नाच  जाने आँगन टेढ़= (काम  जानना और बहाना बनाना)

प्रयोगसुधा से गाने के लिए कहातो उसने कहासाज ही ठीक नहींगाऊँ क्या ?कहा है: 'नाच  जाने आँगन टेढ़।'

 रहेगा बाँस  बजेगी बाँसुरी= ( कारण होगा कार्य होगा)

प्रयोगसेठ माणिकचन्द के घर रोज लड़ाई-झगड़ा हुआ करता था। इस झगड़े की जड़ में था एक नौकर। वही इधर की बात उधर किया करता था। यह बात सेठ को मालूम हो गयी। उन्होंने उसे निकाल दिया। बहुतों ने उसकी ओर से सिफारिश की तो सेठ ने कहा- 'नहींवह झगड़ा लगाता है। ' रहेगा बाँस  बजेगी बाँसुरी।'

नक्कारखाने में तूती की आवाज= (सुनवाई  होना)

 नौ मन तेल होगा राधा नाचेगी= ( बड़ा प्रबंध होगा  काम होगा)

 देने के नौ बहाने= ( देने के बहुत-से बहाने)

नदी में रहकर मगर से वैर=(जिसके अधिकार में रहनाउसी से वैर करना)

नौ की लकड़ीनब्बे खर्चकाम साधारणखर्च अधिक)

नौ नगद तेरह उधार= (अधिक उधार की अपेक्षा थोड़ा लाभ अच्छा)

नीम हकीम खतरे जान= (अयोग्य से हानि)

नाम बड़ेपर दर्शन थोड़े= (गुण से अधिक बड़ाई)

नाच कूदे तोड़े तानताको दुनिया राखे मानआडम्बर दिखानेवाला मान पाता है।)

पढ़े फारसी बेचे तेल देखो यह किस्मत (या कुदरतका खेल= (भाग्यहीन होना)

पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं= (पराधीनता में सुख नहीं)

पहले भीतर तब देवता-पितर= (पेट-पूजा सबसे प्रधान)

पूछी  आछीमैं दुलहिन की चाची= (जबरदस्ती किसी के सर पड़ना)

पराये धन पर लक्ष्मीनारायण= (दूसरे का धन पाकर अधिकार जमाना)

पानी पीकर जात पूछना= (कोई काम कर चुकने के बाद उसके औचित्य पर विचार करना)

पंच परमेश्वर= (पाँच पंचो की राय)

पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतींसभी व्यक्ति एक-से नहीं होते।

बिल्ली के भाग्य से छींका टूटनाअचानक मनचाहा कार्य हो जाना।

बूड़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल= (श्रेष्ठ वंश में बुरे का पैदा होना)

बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद= (मूर्ख गुण की कद्र करना नहीं जानता)

बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा= (जिसको दुःख नहीं हुआ है वह दूसरे के दुःख को समझ नहीं सकता)

बोये पेड़ बबूल के आम कहाँ से होय= (जैसी करनीवैसी भरनी)

बैल का बैल गया नौ हाथ का पगहा भी गया= (बहुत बड़ा घाटा)

बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी= (भय की जगह पर कब तक रक्षा होगी)

बेकार से बेगार भली= (चुपचाप बैठे रहने की अपेक्षा कुछ काम करना)

बड़े मियाँ तो बड़े मियाँछोटे मियाँ सुभान अल्लाह= (बड़ा तो जैसा हैछोटा उससे बढ़कर है)

भागते चोर की लंगोटी ही सही= (सारा जाता देखकर थोड़े में ही सन्तोष करना)

प्रयोगसेठ करोड़ीमल पर मेरे दस हजार रुपये थे। दिवाला निकलने के कारण वह केवल दो हजार रु० ही दे रहा है। मैंने सोचाचलो भागते चोर की लंगोटी ही सही।

भइ गति साँप-छछूँदर केरी= (दुविधा में पड़ना)

भैंस के आगे बीन बजावेभैंस रही पगुराय= (मूर्ख को गुण सिखाना व्यर्थ है।)

भागते भूत की लँगोटी ही सही= (जाते हुए माल में से जो मिल जाय वही बहुत है।)

मुँह में राम बगल में छुरी= (कपटपूर्ण आचरण)

मियाँ की दौड़ मस्जिद तक= (किसी के कार्यक्षेत्र या विचार शक्ति का सिमित होना)

मन चंगा तो कठौती में गंगा= (हृदय पवित्र तो सब कुछ ठीक)

मान  मान मैं तेरा मेहामन= (जबरदस्ती किसी के गले पड़ना)

मेढक को भी जुकाम= (ओछे का इतराना)

मार-मार कर हकीम बनाना= (जबरदस्ती आगे बढ़ाना)

माले मुफ्त दिले बेरहम= (मुफ्त मिले पैसे को खर्च करने में ममता  होना)

मियाँ-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी= (जब दो व्यक्ति परस्पर किसी बात पर राजी हो तो दूसरे को इसमें क्या)

मोहरों की लूटकोयले पर छाप= (मूल्यवान वस्तुओं को छोड़कर तुच्छ वस्तुओं पर ध्यान देना)

मानो तो देवनहीं तो पत्थर= (विश्वास ही फलदायक)

मँगनी के बैल के दाँत नहीं देखे जाते= (मुप्त मिली चीज पर तर्क व्यर्थ)

रस्सी जल गयी पर ऐंठन  गयी= (बुरी हालत में पड़कर भी अभियान  त्यागना)

रोग का घर खाँसीझगड़े घर हाँसी= (अधिक मजाक बुरा)

लश्कर में ऊँट बदनाम= (दोष किसी काबदनामी किसी की)

लूट में चरखा नफा= (मुफ्त में जो हाथ लगेवही अच्छा)

लेना-देना साढ़े बाईस= (सिर्फ मोल-तोल करना)

साँप मरे  लाठी टूटेकाम भी बन जाये और हानि भी  हो।

सब धन बाईस पसेरी= (अच्छे-बुरे सबको एक समझना)

सत्तर चूहे खाके बिल्ली चली हज को= (जन्म भर बुरा करके अन्त में धर्मात्मा बनना)

सीधी ऊँगली से घी नहीं निकलता= (सिधाई से काम नहीं होता)

सारी रामायण सुन गयेसीता किसकी जोय (जोरू)= (सारी बात सुन जाने पर साधारण सी बात का भी ज्ञान  होना)

होनहार बिरवान के होत चीकने पात= (होनहार के लक्षण पहले से ही दिखायी पड़ने लगते है।)

प्रयोगवह लड़का जैसा सुन्दर हैवैसा ही सुशीलऔर जैसा बुद्धिमान हैवैसा ही चंचल। अभी बारह वर्ष भी पूरे नहीं हुएपर भाषा और गणित में उसकी अच्छी पैठ है। अभी देखने पर स्पष्ट मालूम होता है कि समय पर वह सुप्रसिद्ध विद्वान होगा। कहावत भी है, 'होनहार बिरवान के होत चीकने पात'

हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और= (कहना कुछ और करना कुछ और)

प्रयोगआजकल के नेताओं का विश्वास नहीं। इनके दाँत तो दिखाने के और होते हैं और खाने के और होते हैं।

हाथ कंगन को आरसी क्या= (प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण क्या)

हाथी चले बाजारकुत्ता भूँके हजार= (उचित कार्य करने में दूसरों की निन्दा की परवाह नहीं करनी चाहिए)

हाथी के दाँत दिखाने के औरखाने के और= (बोलना कुछकरना कुछ और)

हँसुए के ब्याह में खुरपे का गीत= (बेमौका)

हंसा थे सो उड़ गयेकागा भये दीवान= (नीच का सम्मान)






हिन्दी व्याकरण 

•   भाषा   •   लिपि   •   व्याकरण   •   वर्ण,वर्णमाला   •   शब्द   •   वाक्य   •   संज्ञा   •   सर्वनाम   •   क्रिया   •   काल   •   विशेषण   •   अव्यय   •   लिंग   •   उपसर्ग   •   प्रत्यय   •   तत्सम तद्भव शब्द   •    संधि 1   •  संधि 2   •   कारक   •   मुहावरे 1   •   मुहावरे 2   •   लोकोक्ति   •   समास 1   •   समास 2   •   वचन   •   अलंकार   •   विलोम   •   अनेकार्थी शब्द   •  अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 1   •   अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 2   •   पत्रलेखन   •   विराम चिह्न   •   युग्म शब्द   •   अनुच्छेद लेखन   •   कहानी लेखन   •   संवाद लेखन   •   तार लेखन   •   प्रतिवेदन लेखन   •   पल्लवन   •   संक्षेपण   •   छन्द   •   रस   •   शब्दार्थ   •   धातु   •   पदबंध   •   उपवाक्य   •   शब्दों की अशुद्धियाँ   •   समोच्चरित भिन्नार्थक शब्द   •   वाच्य   •   सारांश   •   भावार्थ   •   व्याख्या   •   टिप्पण   •   कार्यालयीय आलेखन   •   पर्यायवाची शब्द   •   श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द   •   वाक्य शुद्धि   •   पाठ बोधन   •   शब्द शक्ति   •   हिन्दी संख्याएँ   •   पारिभाषिक शब्दावली   •



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