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संक्षेपण (Sankshepan)

 


संक्षेपण (Sankshepan)

किसी विस्तृत विवरणसविस्तार व्याख्यावक्तव्यपत्रव्यवहार या लेख के तथ्यों और निर्देशों के ऐसे संयोजन को 'संक्षेपणकहते हैजिसमें अप्रासंगिकअसम्बद्धपुनरावृत्तअनावश्यक बातों का त्याग और सभी अनिवार्यउपयोगी तथा मूल तथ्यों का प्रवाहपूर्ण संक्षिप्त संकलन हो।

इस परिभाषा के अनुसारसंक्षेपण एक स्वतःपूर्ण रचना है। उसे पढ़ लेने के बाद मूल सन्दर्भ को पढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती। सामान्यतः संक्षेपण में लम्बे-चौड़े विवरणपत्राचार आदि की सारी बातों को अत्यन्त संक्षिप्त और क्रमबद्ध रूप में रखा जाता है।

इसमें हम कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक विचारों भावों और तथ्यों को प्रस्तुत करते है। वस्तुतःसंक्षेपण किसी बड़े ग्रन्थ का संक्षिप्त संस्करण बड़ी मूर्ति का लघु अंकन और बड़े चित्र का छोटा चित्रण है। इसमें मूल की कोई भी आवश्यक बात छूटने नहीं पाती। अनावश्यक बातें छाँटकर निकाल दी जाती है और मूल बातें रख ली जाती हैं। यह काम सरल नहीं। इसके लिए निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता है।

संक्षेपण के गुण

संक्षेपण एक प्रकार का मानसिक प्रशिक्षण हैमानसिक व्यायाम भी। उत्कृष्ट संक्षेपण के निम्नलिखित गुण है-

(1) पूर्णतासंक्षेपण स्वतः पूर्ण होना चाहिए। संक्षेपण करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसमें कहीं कोई महत्त्वपूर्ण बात छूट तो नहीं गयी। आवश्यक और अनावश्यक अंशों का चुनाव खूब सोच-समझकर करना चाहिए। यह अभ्यास से ही सम्भव है। संक्षेपण में उतनी ही बातें लिखी जायँजो मूल अवतरण या सन्दर्भ में हों तो अपनी ओर से कहीं बढ़ाई जाय और  घटाई जाय तथा  मुख्य बात कम की जाय। मूल में जिस विषय या विचार पर जितना जोर दिया गया हैउसे उसी अनुपात मेंसंक्षिप्त रूप में लिखा जाना चाहिए। ऐसा  हो कि कुछ विस्तार से लिख दिया जाय और कुछ कम। संक्षेपण व्याख्याआशयभावार्थसारांश इत्यादि से बिलकुल भित्र है।

(2) संक्षिप्ततासंक्षिप्तता संक्षेपण का एक प्रधान गुण है। यद्यपि इसके आकार का निर्धारण और नियमन सम्भव नहींतथापि संक्षेपण को सामान्यतया मूल का तृतीयांश होना चाहिए। इसमें व्यर्थ विशेषणदृष्टान्तउद्धरणव्याख्या और वर्णन नहीं होने चाहिए। लम्बे-लम्बे शब्दों और वाक्यों के स्थान पर सामासिक चिह्न लगाकर उन्हें छोटा बनाना चाहिए। यदि शब्दसंख्या निर्धारित होतो संक्षेपण उसी सीमा में होना चाहिए। किन्तुइस बात का ध्यान अवश्य रखा जाय कि मूल की कोई भी आवश्यक बात छूटने  पाय।

(3) स्पष्टतासंक्षेपण की अर्थव्यंजना स्पष्ट होनी चाहिए। मूल अवतरण का संक्षेपण ऐसा लिखा जायजिसके पढ़ने से मूल सन्दर्भ का अर्थ पूर्णता और सरलता से स्पष्ट हो जाय। ऐसा  हो कि संक्षेपण का अर्थ स्पष्ट करने के लिए मूल सन्दर्भ को ही पढ़ना पड़े। इसलिएस्पष्टता के लिए पूरी सावधानी रखने की जरूरत होगी। संक्षेपक (precis writer) को यह बात याद रखनी चाहिए कि संक्षेपण के पाठक के सामने मूल सन्दर्भ नहीं रहता। इसलिए उसमें (संक्षेपण मेंजो कुछ लिखा जायवह बिलकुल स्पष्ट हो।

(4) भाषा की सरलतासंक्षेपण के लिए यह बहुत जरूरी है कि उसकी भाषा सरल और परिष्कृत हो। क्लिष्ट और समासबहुल भाषा का प्रयोग नहीं होना चाहिए। भाषा को किसी भी हालत में अलंकृत नहीं होना चाहिए। जो कुछ लिखा जायवह साफ-साफ होउसमें किसी तरह का चमत्कार या घुमाव-फिराव लाने की कोशिश  की जाय। इसलिएसंक्षेपण की भाषा सुस्पष्ट और आडम्बरहीन होनी चाहिए। तभी उसमें सरलता  सकेगी।

(5) शुद्धतासंक्षेपण में भाव और भाषा की शुद्धता होनी चाहिए। शुद्धता से हमारा मतलब यह है कि संक्षेपण में वे ही तथ्य तथा विषय लिखे जायँजो मूल सन्दर्भ में हो। कोई भी बात अशुद्धअस्पष्ट या ऐसी  होंजिसके अलग-अलग अर्थ लगाये जा सकें। इसमें मूल के आशय को विकृत या परिवर्तित करने का अधिकार नहीं होता और  अपनी ओर से किसी तरह की टीका-टिप्पणी होना चाहिए। भाषा व्याकरणोचित होनी चाहिएटेलीग्राफिक नहीं।

(6) प्रवाह और क्रमबद्धतासंक्षेपण में भाव और भाषा का प्रवाह एक आवश्यक गुण है। भाव क्रमबद्ध हों और भाषा प्रवाहपूर्ण। क्रम और प्रवाह के सन्तुलन से ही संक्षेपण का स्वरूप निखरता है। वाक्य सुसम्बद्ध और गठित हों प्रवाह बनाये रखने के लिए वाक्यरचना में जहाँ-तहाँ 'अतः', 'अतएव', 'तथापिजैसे शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है। एक भाव दूसरे भाव से सम्बद्ध हो। उनमे तार्किक क्रमबद्धता (logical sequence) रहनी चाहिए। 

सारांश यह कि संक्षेपण में तीन गुणों का होना बहुत जरूरी है-

(i) संक्षिप्तता (brevity), (ii) स्पष्टता (clearness), और (iii) क्रमबद्धता (coherence) 

संक्षेपण के नियम

यधपि संक्षेपण के निश्र्चित नियम नहीं बनाये जा सकतेतथापि अभ्यास के लिए कुछ सामान्य नियमों का उल्लेख किया जा सकता है। वे इस प्रकार है-

संक्षेपण के विषयगत नियम

(1) मूल सन्दर्भ को ध्यानपूर्वक पढ़ें। जब तक उसका सम्पूर्ण भावार्थ (substance) स्पष्ट  हो जायतब तक संक्षेपण लिखना आरम्भ नहीं करना चाहिए। इसके लिए यह आवश्यक है कि मूल अवतरण कम-से-कम तीन बार पढ़ा जाय।

(2) मूल के भावार्थ को समझ लेने के बाद आवश्यक शब्दोंवाक्यों अथवा वाक्यखण्डों को रेखांकित करेंजिनका मूल विषय से सीधा सम्बन्ध हो अथवा जिनका भावों या विचारों की अन्विति में विशेष महत्त्व हो। इस प्रकारकोई भी तथ्य छूटने  पायेगा।

(3) संक्षेपण मूल सन्दर्भ का संक्षिप्त रूप हैइसलिए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इसमें अपनी ओर से किसी तरह की टीका-टिप्पणी अथवा आलोचना-प्रत्यालोचना  हो। संक्षेपण के लेखक को  तो किसी मतवाद के खण्डन का अधिकार है और  अपनी ओर से मौलिक या स्वतन्त्र विचारों को जोड़ने की छूट है। उसे तो मूल के भावों अथवा विचारों के अधीन रहना है और उन्हें ही संक्षेप में लिखना है।

(4) संक्षेपण को अन्तिम रूप देने के पहले रेखांकित वाक्यों के आधार पर उसकी रुपरेखा तैयार करनी चाहिएफिर उसमें उचित और आवश्यक संशोधन (जोड़-घटावकरना चाहिए। यहाँ एक बात ध्यान रखने की यह है कि मूल सन्दर्भ के विचारों की क्रमव्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन किया जा सकता है। यह कोई आवश्यक नहीं है कि जिस क्रम में मूल लिखा गया हैउसी क्रम में संक्षेपण भी लिखा जाय। लेकिन यह अत्यन्त आवश्यक है कि उसमें विचारों का तारतम्य बना रहे। ऐसा मालूम हो कि एक वाक्य का दूसरे वाक्य से सीधा सम्बन्ध बना हुआ है।

(5) उक्त रुपरेखा को अन्तिम रूप देने के पहले उसे एक-दो बार ध्यान से पढ़ना चाहिएताकि कोई भी आवश्यक विचार छूटने  पाय। जहाँ तक हो सकेवह अत्यन्त संक्षिप्त हो। यदि शब्दसंख्या पहले से निर्धारित होतो यह प्रयत्न करना चाहिए कि संक्षेपण में उस निर्देश का पालन किया जाय। सामान्यतया उसे मूल सन्दर्भ का एक-तिहाई होना चाहिए।

(6) अन्त मेंसंक्षेपण को व्याकरण के सामान्य नियमों के अनुसार एक क्रम में लिखना चाहिए।

(7) उपर्युक्त सारी क्रियाओं के बाद संक्षेपण के भावों और विचारों के अनुकूल एक संक्षिप्त शीर्षक दे देना चाहिए। शीर्षक ऐसा होजो सभी तथ्यों को समेटने की क्षमता रखे। शीर्षक लघु और कम-से-कम शब्दोंवाला होना चाहिए।

संक्षेपण के शैलीगत नियम

(1) संक्षेपण में विशेषणों और क्रियाविशेषणों के लिए स्थान नहीं है। इन्हें निकाल देना चाहिए। संक्षेपण की शैली अलंकृत नहीं होना चाहिएउसे हर हालत में आडम्बरहीन होना चाहिए।

(2) संक्षेपण में मूल के उन्हीं शब्दों को रखना चाहिएजो अर्थव्यंजना में सहायक हों। जहाँ तक सम्भव होमूल के शब्दों के बदले दूसरे शब्दों का प्रयोग करना चाहिएलेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि मूल के भावों और विचारों में अर्थ का उलट-फेर  होने पाय।

(3) संक्षेपण में मूल अवतरण के वाक्यखण्डों के लिए एक-एक शब्द का प्रयोग होना चाहिएजो मूल के भावोत्कर्ष में अधिक-से-अधिक सहायक सिद्ध हों।

कुछ उदाहरण इस प्रकार है-

वाक्यखण्ड                          एक शब्द

एक से अधिक पति रखने की प्रथा           बहुपतित्व

जिसका मन अपने काम में नहीं लगता       अन्यमनस्क

जहाँ नदियों का मिलन हो                संगम

किसी विषय का विशेष ज्ञान रखनेवाला      विशेषज्ञ

कष्ट से होनेवाला काम                  कष्टसाध्य

जहाँ मुहावरों और कहावतों का प्रयोग हुआ होंवहाँ उनके अर्थ को कम-से-कम शब्दों में लिखना चाहिए। मुहावरे के लिए मुहावरा रखना ठीक  होगा।

(4) संक्षेपण की शैली अलंकृत नहीं होनी चाहिएइसलिए उपमा (simile), उत्प्रेक्षा (metaphor) या अन्य अलंकारों का प्रयोग नहीं होना चाहिएअप्रासंगिक बातोंउद्धरणों और विचारों की पुनरावृत्ति भी हटा देनी चाहिए। संक्षेपण की भाषाशैली स्पष्ट और सरल होनी चाहिएताकि पढ़ते ही उसका मर्म समझ में  जाय।

(5) संक्षेपण की भाषाशैली व्याकरण के नियमों से नियंत्रित होनी चाहिएवह टेलिग्राफिक  हो।

(6) संक्षेपण में परोक्ष कथन (indirect narration) सर्वत्र अन्यपुरुष में होना चाहिए। जिस तरह किसी समाचारपत्र का संवाददाता अपने वाक्यों की रचना में परोक्ष कथन का प्रयोग करता हैउसी तरह संक्षेपण में उसका व्यवहार होना चाहिए। संवादों के संक्षेपण में इसका उपयोग सर्वथा अनिवार्य है। ऐसा करते समय एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि हिन्दी में जब वाक्यों को परोक्ष ढंग से लिखना होता हैतब सर्वनामक्रिया या काल को बदलने की जरूरत नहीं होतीकेवल कि जोड़ देने से काम चल जाता है। लेकिन अँगरेजी में ऐसा नहीं होता। 

एक उदाहरण इस प्रकार है-

प्रत्यक्ष वाक्य (Direct narration)- राम ने कहा-'मैं जाता हूँ।'

परोक्ष वाक्य (Indirect narration)- राम ने कहा कि मैं जाता हूँ।

(7) संक्षेपण की वाक्यरचना में लम्बे-लम्बे वाक्यों और वाक्यखण्डों का व्यवहार नहीं होना चाहिएक्योंकि उसे हर हालत में सरल और स्पष्ट होना चाहिएताकि एक ही पाठ में मूल के सारे भाव समझ में  जायँ। अतः संक्षेपण में शब्द इकहरेवाक्य छोटेभाव सरल और शैली आडम्बरहीन होनी चाहिए।

(8) संक्षेपण में शब्दों के प्रयोग में संयम से काम लेना चाहिए। कोई भी शब्द बेकार और बेजान  हो। उन्हीं शब्दों का प्रयोग करना चाहिएजिनका प्रासंगिक महत्त्व है। मूल के उन्हीं शब्दों का प्रयोग करना चाहिएजो भावव्यंजना और प्रसंगों के अनुकूल सार्थक हैजिनके बिना काम नहीं चल सकता। शब्दों को दुहराने की कोई आवश्यकता नहीं। अप्रचलित शब्दों के स्थान पर प्रचलित और सरल शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।

(9) संक्षेपण की भाषाशैली में साहित्यक चमत्कार और काव्यात्मक लालित्य लाने का प्रयत्न व्यर्थ है। इसलिएयहाँ  तो भाषा को सजाने-सँवारने की आवश्यकता है और  उसके भावों को ललित-कलित बनाने की। जो कुछ लिखा जायवह साफ होस्पष्ट हो। कल्पना के पंख लगाकर उड़ना यहाँ नहीं हो सकता। संक्षेपण की कला तलवार की धार पर चलने की कला है। इसके लिए कुशाग्र बुद्धिगहरी पैठ और तीव्र मनोयोग की आवश्यकता है। यह काम अभ्यास से ही सम्भव है। अतएव आवश्यक है कि संक्षेपण के लेखक की दृष्टि हर तरह वस्तुवादी होभावुक नहीं।

(10) संक्षेपण से समानार्थी शब्दों को हटा देना चाहिए। ये एक ही भाव या विचार को बार-बार दुहराते हैं। इसे पुनरुक्तिदोष कहते हैं। अँगरेजी में इसे Verbosity कहते हैं। उदाहरणार्थ- 'आजादी स्वतन्त्रतास्वाधीनतास्वच्छन्दता और मुक्ति को कहते हैं यहाँ 'आजादीके लिए अनेक समानार्थी शब्दों का प्रयोग हुआ है। भाषण में प्रभाव जताने के लिए ही वक्ता इस प्रकार की शैली का सहारा लेता है। संक्षेपण में ऐसे शब्दों को हटाकर इतना ही लिखना चाहिए कि 'आजादी मुक्ति का दूसरा नाम है' संक्षेपण की कला कम-से-कम शब्दों में निखरती है।

(11) पुनरुक्तिदोष शब्दों में ही नहींभावों अथवा विचारों में भी होता है। कभी-कभी एक ही वाक्य में एक ही बात को विभित्र रूपों में रख दिया जाता है। उदाहरण के लिएएक वाक्य इस प्रकार है- 'रंगमंच पर कलाकार क्रमशः एक-एक कर आये इस वाक्य में क्रमशः शब्द एक-एक कर के भाव को दुहराता है। दोनों का एक ही अर्थ हैइसलिए ऐसे शब्दों को हटा देना चाहिए। अँगरेजी में इस दोष को Tautology कहते हैं।

(12) अन्त मेंसंक्षेपण में प्रयुक्त शब्दों की संख्या लिख देनी चाहिए 

निष्कर्ष

सारांश यह कि संक्षेपण की लेखनविधि अन्वयसारांशभावार्थआशयमुख्यार्थआलेख (रुपरेखाइत्यादि से बिलकुल भित्र है। जिस सन्दर्भ का संक्षेपण लिखना होंउसे सावधानी से पढ़ लिया जाय और उसके भावार्थ तथा विषय को अच्छी तरह समझने की चेष्टा की जाय। सम्भव है कि एक बार पढ़ने से कुछ भाव स्पष्ट  हों। अतः उसे दुबारा-तिबारा पढ़ा जाय और उसके महत्त्वपूर्ण अंशों को रेखांकित किया जाय। अब इन महत्त्वपूर्ण अंशों के आधार पर एक संक्षिप्त प्रारूप (draft) तैयार किया जाय।

इसे सामान्यतया मूल सन्दर्भ की एक-तिहाई के बराबर होना चाहिए। यदि कहीं कुछ अस्पष्टता रह जायतो फिर तीसरी बार इस दृष्टि से मूल प्रारूप को पढ़ा जाय कि कहीं भूल से कोई आवश्यक बात छूट तो  गयी है। अन्तिम रूप से जब संक्षेपण तैयार हो जायतब उसका एक उपयुक्तकिन्तु छोटा-सा शीर्षक भी दे दिया जाय। अन्त मेंसमस्त संक्षेपण को इस दृष्टि से एक बार फिर पढ़ लिया जाय कि भाषा में प्रवाह कहीं विच्छित्र तो नहीं हुआ या क्रम तो भंग नहीं हुआ। यदि कहीं भाषा शिथिल हो गयी हो या कोई शब्द उपयुक्त नहीं जँचता होतो उसमें सुधार कर दिया जाय।

संक्षेपण : कुछ आवश्यक निर्देश

(1) संक्षेपण में मूल सन्दर्भ के उदाहरणदृष्टान्तउद्धरण और तुलनात्मक विचारों का समावेश नहीं होना चाहिए। 

(2) सामान्यतः इसे भूतकाल और परोक्ष कथन में लिखा जाना चाहिए। 

(3) अन्यपुरुष का प्रयोग होना चाहिए। 

(4) भाषा सरल होनी चाहिएमुहावरे और आलंकारिक नहीं। 

(5) मूल तथ्य से असम्बद्ध और अनावश्यक बातों को छाँटकर निकाल देना चाहिए। 

(6) आरम्भ अथवा प्रथम वाक्य ऐसा होजो मूल विषय को स्पष्ट कर दे। लेकिन इसका अपवाद भी हो सकता है। 

(7) यह निर्दिष्ट शब्द-संख्या में लिखा जाना चाहिए। यदि कोई निर्देश  होतो इसे कम-से-कम मूल की एक-तिहाई होना आवश्यक है। 

(8) समासप्रत्यय और कृदन्त द्वारा वाक्यांश या वाक्य एक शब्द या पद के रूप में संक्षिप्त किये जायँ।

संक्षेपण के कुछ उदाहरण

1 - ऋतुराज वसन्त के आगमन से ही शीत का भयंकर प्रकोप भाग गया। पतझड़ में पश्र्चिम-पवन ने जीर्ण-शीर्ण पत्रों को गिराकर लताकुंजोंपेड़-पौधों को स्वच्छ और निर्मल बना दिया। वृक्षों और लताओं के अंग में नूतन पत्तियों के प्रस्फुटन से यौवन की मादकता छा गयी। कनेरकरवीरमदारपाटल इत्यादि पुष्पों की सुगन्धि दिग्दिगन्त में अपनी मादकता का संचार करने लगी।  शीत की कठोरता ग्रीष्म का ताप। समशीतोष्ण वातावरण में प्रत्येक प्राणी की नस-नस में उत्फुल्लता और उमंग की लहरें उठ रही है। गेहूँ के सुनहले बालों से पवनस्पर्श के कारण रुनझुन का संगीत फूट रहा है। पतों के अधरों पर सोया हुआ संगीत मुखर हो गया है। पलाश-वन अपनी अरुणिमा में फूला नहीं समाता है। ऋतुराज वसन्त के सुशासन और सुव्यवस्था की छटा हर ओर दिखायी पड़ती हैं। कलियों के यौवन की अँगड़ाई भ्रमरों को आमन्त्रण दे रही है। अशोक के अग्निवर्ण कोमल एवं नवीन पत्ते वायु के स्पर्श से तरंगित हो रहे हैं। शीतकाल के ठिठुरे अंगों में नयी स्फूर्ति उमड़ रही है। वसन्त के आगमन के साथ ही जैसे जीर्णता और पुरातन का प्रभाव तिरोहित हो गया है। प्रकृति के कण-कण में नये जीवन का संचार हो गया है। आम्रमंजरियों की भीनी गन्ध और कोयल का पंचम आलापभ्रमरों का गुंजन और कलियों की चटकवनों और उद्यानों के अंगों में शोभा का संचारसब ऐसा लगता है जैसे जीवन में सुख ही सत्य हैआनन्द के एक क्षण का मूल्य पूरे जीवन को अर्पित करके भी नहीं चुकाया जा सकता है। प्रकृति ने वसन्त के आगमन पर अपने रूप को इतना सँवारा हैअंग-अंग को सजाया और रचा है कि उसकी शोभा का वर्णन असम्भव हैउसकी उपमा नहीं दी जा सकती।

संक्षेपण वसन्तऋतु की शोभा

वसन्तऋतु के आते ही शीत की कठोरता जाती रही। पश्र्चिम के पवन ने वृक्षों के जीर्ण-शीर्ण पत्ते गिरा दिये। वृक्षों और लताओं में नये पत्ते और रंग-बिरंगे फूल निकल आये। उनकी सुगन्धि से दिशाएँ गमक उठीं। सुनहले बालों से युक्त गेहूँ के पौधे खेतों में हवा से झूमने लगे। प्राणियों की नस-नस में उमंग की नयी चेतना छा गयी। आम की मंजरियों से सुगन्ध आने लगीकोयल कूकने लगीफूलों पर भौरें मँडराने लगे और कलियाँ खिलने लगी। प्रकृति में सर्वत्र नवजीवन का संचार हो उठा। टिप्पणीऊपर मूल सन्दर्भ में वसन्तऋतु प्रकृति की शोभा का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन हुआ हैजिसमें साहित्यिक लालित्य भरने की चेष्टा की गयी है। संक्षेपण में हमने सभी व्यर्थ शब्दों और वाक्यों को हटा दिया है और काम की बातों का उल्लेख कर दिया हैसीधी-सादी भाषा में। मूल वर्तमानकाल में लिखा गया हैपर संक्षेपण में सारी बातें भूतकाल में लिखी गयी हैं।

 











हिन्दी व्याकरण 

•   भाषा   •   लिपि   •   व्याकरण   •   वर्ण,वर्णमाला   •   शब्द   •   वाक्य   •   संज्ञा   •   सर्वनाम   •   क्रिया   •   काल   •   विशेषण   •   अव्यय   •   लिंग   •   उपसर्ग   •   प्रत्यय   •   तत्सम तद्भव शब्द   •    संधि 1   •  संधि 2   •   कारक   •   मुहावरे 1   •   मुहावरे 2   •   लोकोक्ति   •   समास 1   •   समास 2   •   वचन   •   अलंकार   •   विलोम   •   अनेकार्थी शब्द   •  अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 1   •   अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 2   •   पत्रलेखन   •   विराम चिह्न   •   युग्म शब्द   •   अनुच्छेद लेखन   •   कहानी लेखन   •   संवाद लेखन   •   तार लेखन   •   प्रतिवेदन लेखन   •   पल्लवन   •   संक्षेपण   •   छन्द   •   रस   •   शब्दार्थ   •   धातु   •   पदबंध   •   उपवाक्य   •   शब्दों की अशुद्धियाँ   •   समोच्चरित भिन्नार्थक शब्द   •   वाच्य   •   सारांश   •   भावार्थ   •   व्याख्या   •   टिप्पण   •   कार्यालयीय आलेखन   •   पर्यायवाची शब्द   •   श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द   •   वाक्य शुद्धि   •   पाठ बोधन   •   शब्द शक्ति   •   हिन्दी संख्याएँ   •   पारिभाषिक शब्दावली   •



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