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पल्लवन (Amplification)

  

पल्लवन (Amplification)

किसी सुगठित एवं गुम्फित विचार अथवा भाव के विस्तार को 'पल्लवनकहते है।

कम-से-कम शब्दों अथवा एक वाक्य में कहे अथवा लिखे गये भावों और विचारों में इतनी स्पष्टता नहीं रहती कि हर तरह के लोग उन्हें आसानी से समझ सकें। एक सधे लेखक का बड़ा गुण यह है कि वह कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक बातें लिखता है। अँगरेजी में बेकन (Bacon) और हिन्दी में पण्डित रामचन्द्र शुक्ल ऐसे ही गद्यलेखक थे। कविता में तो इस प्रकार के लेखक की गुंजाइश अधिक है। किन्तुजब 'गागर में सागर'-जैसी चेष्टा की जाती हैतब उसमें साधारण लोगों के लिए अर्थ की स्पष्टता नहीं रह जाती। ऐसी स्थिति में विचार अथवा भाव के तार-तार को अलग कर 'तारतम्यके साथ समझने के लिए एक कुशल व्याख्याता की आवश्यकता पड़ती है।

इतना ही नहींहिन्दी में ऐसी हजारों सूक्तियाँ और कहावतें प्रचलित हैजिनके अर्थ ऊपर से तो स्पष्ट नहीं हैकिन्तु उनका अर्थ-विस्तार करने पर उनके भाव पूरी तरह स्पष्ट हो जाते है। लेखन की इस क्रिया को हिन्दी में 'पल्लवनकहते है। इसे हम अँगरेजी शब्दावली में 'Miniature essay' और हिन्दी में 'लघु निबन्धकह सकते है। इसमें मूल वाक्य में आये विचारसूत्रों को सही-सही अर्थ में पकड़ने की चेष्टा की जाती है। यहाँ यह देखा जाता है कि छात्र या व्याख्याता ने किसी गम्भीर तथ्य को कितनी बारीकी से और गहराई में उतरकर समझा है और अपनी भाषा में वह उसे कितनी दूर तक सुस्पष्ट कर सका है।

पल्लवन,व्याख्या और भावार्थ

पल्लवनव्याख्या और भावार्थ के तात्त्विक अन्तर को समझ लेना चाहिए। पल्लवन और व्याख्या दोनों में सत्रिहित भाव अथवा विचार का विस्तार होता हैकिन्तु पल्लवन में जहाँ केवल निहित भाव का विस्तार होता हैवहाँ व्याख्या में प्रसंगनिर्देश के साथ आलोचना तथा टीका-टिप्पणी के लिए भी स्थान सुरक्षित है। यह छूट 'पल्लवनमें नहीं है। पल्लवन और भावार्थ दोनों में मूलभाव को स्पष्ट किया जाता है। किन्तुभावार्थ में भावविस्तार की एक सीमा होती है।

'पल्लवनके लिए ऐसा कोई बन्धन नहीं। यहाँ विभित्र अनुच्छेदों में तब तक लिखा जायेगाजब तक मूल लेखक के समस्त मनोभाव पूरी तरह स्पष्ट  हो जायँ। 'भावार्थमें मूलभाव को अनुच्छेदों में लिखना आवश्यक नहीं। वहाँ तो मूल आवरण के केन्द्रीय भाव को पकड़ने की चेष्टा की जाती है। इसके विपरीत, 'पल्लवनमें मूल और गौण दोनों प्रकार के निहित भावों एवं विचारों को ग्रहण किया जाता है। यह 'संक्षेपणका ठीक उल्टा है।

पल्लवन के कुछ सामान्य नियम

(1) पल्लवन के लिए मूल अवतरण के वाक्यसूक्तिलोकोक्ति अथवा कहावत को ध्यानपूर्वक पढ़िएताकि मूल के सम्पूर्ण भाव अच्छी तरह समझ में  जायँ। 

(2) मूल विचार अथवा भाव के नीचे दबे अन्य सहायक विचारों को समझने की चेष्टा कीजिए। 

(3) मूल और गौण विचारों को समझ लेने के बाद एक-एक कर सभी निहित विचारों को एक-एक अनुच्छेद में लिखना आरम्भ कीजिएताकि कोई भी भाव अथवा विचार छूटने  पाय। 

(4) अर्थ अथवा विचार का विस्तार करते समय उसकी पुष्टि में जहाँ-तहाँ ऊपर से कुछ उदाहरण और तथ्य भी दिये जा सकते हैं। 

(5) भाव और भाषा की अभिव्यक्ति में पूरी स्पष्टतामौलिकता और सरलता होनी चाहिए। वाक्य छोटे-छोटे और भाषा अत्यन्त सरल होनी चाहिए। अलंकृत भाषा लिखने की चेष्टा  करना ही श्रेयस्कर है। 

(6) पल्लवन के लेखन में अप्रासंगिक बातों का अनावश्यक विस्तार या उल्लेख बिलकुल नहीं होना चाहिए। 

(7) पल्लवन में लेखक को मूल तथा गौण भाव या विचार की टीका-टिप्पणी और आलोचना नहीं करनी चाहिए। इसमें मूल लेखक के मनोभावों का ही विस्तार और विश्लेषण होना चाहिए। 

(8) पल्लवन की रचना हर हालत में अन्यपुरुष में होनी चाहिए। 

(9) पल्लवन व्यासशैली की होनी चाहिएसमासशैली की नहीं। अतः इसमें बातों को विस्तार से लिखने का अभ्यास किया जाना चाहिए।

पल्लवन के कुछ उदाहरण

(1) मूल अवतरण- 'विदेशी भाषा का विद्यार्थी होना बुरा नहींपर अपनी भाषा सर्वोपरि है।महात्मा गाँधी

पल्लवन

कोई भी भाषा बुरी नहीं होतीक्योंकि सबकी अपनी-अपनी विशेषताएँ हैअपने-अपने बोलनेवाले होते है। हर भाषा यदि किसी अन्य के लिए केवल 'भाषाहैतो अपने लिए 'मातृभाषाभी होती है। किसी 'भाषाया किसी की 'मातृभाषाको बुरा मानना या समझना मनुष्यता नहींविद्याप्रेम नहींबल्कि संकीर्णता और नीचता है। फिरहर भाषा का अपना साहित्य होता है और साहित्य मानवमात्र के प्रेम की वस्तु है। संसार के कोने-कोने में अनगिनत भाषाएँ बोली और लिखी जाती है जिनकी अपनी प्रकृति और अपने उच्चारण हैं। ये सारी भाषाएँ सीखी जा सकती है। हजारों विद्यार्थी विदेशी भाषाओं या दूसरे की भाषाओं का अध्ययन करते हैताकि उनके साहित्य का ज्ञान प्राप्त किया जा सके। हर भाषा के साहित्य की अपनी विशिष्टता है। उस विशिष्टता में किसी भी देश की मानसिक विलक्षणता रहती है। इन सारी बातों की जानकारी के लिए ही विदेशी भाषाओं का अध्ययन होता है।

यह कोई बुरी बात नहीं। अनेक भाषाओं का ज्ञान आवश्यक हैक्योंकि इससे मानवीय दृष्टि व्यापक विचार उदार और अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध दृढ़ होते है। इसलिए विदेशी भाषा या दूसरी भाषा का विद्यार्थी होना बुरा नहीं है। लेकिनविदेशी भाषाओं या दूसरों की भाषाओं को पढ़ने के पहले अपनी राष्ट्रभाषा और मातृभाषा का ज्ञान नितान्त आवश्यक है। अपनी भाषा में हृदय बोलता हैइसमें माँ की ममताराष्ट्रीय सम्बन्धों का माधुर्य और अपने को जानने-पहचानने की सरलता रहती है। अपनी भाषा में अपनापन रहता है। इसके लिए हमें विशेष श्रम नहीं करना पड़ताव्यर्थ की माथापच्ची और समय की बरबादी नहीं करनी पड़ती। हिन्दी हमारी मातृभाषा है। इसलिए इसके व्यवहार में हमें जितनी सहजता और सुविधा का बोध होता हैउतनी सहजता और सुविधा का बोध विदेशी भाषाओं में नहीं होता। कारण यह है कि हिन्दी हम घर-बाहर सभी जगह बोलते हैइसी में हम अपने मन में बातें सोचते हैंकिसी विदेशी भाषा में नहीं।

इसलिए यह हर तरह की शिक्षा का माध्यम होती हैचाहे वह अन्य किसी भाषा की शिक्षा हो या कला-कारीगरों की। अगर हम कोई विदेशी भाषा सीखते हैतो अपनी मातृभाषा और राष्ट्रभाषा के माध्यम से ही। इसलिएअब हम किसी दूसरी सीखी भाषा को बोलते हैतो मातृभाषा में मन में जो हम सोचते हैवह उसी का अनुवाद होता है। इसलिए इसके बिना हम रह ही नहीं सकते। यह हमारे दैनिक जीवन के साथ घुली-मिली है। जैसे दूध में पानी घुला होता हैउसी तरह मातृभाषा में भी हमारी माँ का संस्कारउसका प्यार और मिठास है। अतः अपनी भाषा सर्वोपरि है। भाषाओं के अध्ययन में इसी का सबसे ऊँचा स्थान है। यही कारण है कि सभी सभ्य देशों में शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से दी जाती है।

विदेशी भाषा सीखी जा सकती हैपर वह अपनी नहीं हो सकती। वह मस्तिष्क की वस्तु हो सकती हैहृदय की वाणी नहीं हो सकती। उसमें माँ की ममतापिता का प्यारपड़ोसियों का स्त्रेह और हमारा मन या हमारे देश का दर्द नहीं हो सकता। आज अँगरेजी हमपर जबरदस्ती लदी है। फल यह है कि लाखों विद्यार्थी अँगरेजी में फेल हो रहे हैं। लादी गयी कोई भी विदेशी भाषा समाज और देश के स्वाभाविक विकास में बाधक होती है। फिरभाषा तो अन्य विद्याओं को जानने का एक माध्यम हैअपने भाव प्रकट करने का एक जरिया है। बचपन की जानी-समझी मातृभाषा को अपनी पढ़ाई-लिखाई या काम-कारोबार का माध्यम  बनाकर अँगरेजी को बनाने से अँगरेजी सीखने में ही हमारे दस-बारह वर्ष व्यर्थ बरबाद होते है। आज अँगरेजी को माध्यम रखने के कारण देश के हर विद्यार्थी केयानी इस देश के दस-बारह वर्ष बरबाद हो रहे हैं। क्या इस बरबादी को भी देशभक्ति में गिना जाय?

अतःयह ठीक ही कहा गया है कि विदेशी भाषा का विद्यार्थी होना बुरा नहींपर अपनी भाषा सर्वोपरि है।

(2) मूल अवतरण- 'नर और नारी जनमते और मरते हैंपरन्तु राष्ट्र सदा अमर रहता है।जवाहरलाल नेहरू

पल्लवन

संसार में असंख्य नर-नारियों का जन्म प्रतिक्षण होता रहता है और हर क्षण उनकी मृत्यु भी होती है। मनुष्य के साथ जीना-मरना सदा लगा रहता है। जन्म के साथ मृत्यु का सम्बन्ध अवश्यम्भावी है। जन्म होता हैतो मृत्यु भी होगीयह निश्र्चित है। यह एक ऐसा सत्य है जिसके सम्बन्ध में किसी तरह का भ्रम हो ही नहीं सकता। किन्तु राष्ट्र अमर हैइसकी आत्मा अमर है। यह मनुष्य की तरह जीता-मरता नहीं है। राष्ट्र की शक्ति उसके नागरिकउसकी संस्कृतिउसका साहित्यउसकी परम्परा और उसकी ऐताहासिक चेतना में है। नागरिकों की सबल एकता से राष्ट्र मजबूत होता हैउसकी आत्मा सशक्त और दीर्घजीवी होती है। जब तक राष्ट्र की आन्तरिक एकता सुदृढ़ रहती हैउसपर कोई भी बाहरी शक्ति ऊँगली उठाने की हिम्मत नहीं करतीउसका अमरत्व बना रहता हैउसका पतन नहीं होता। लेकिन जब उसकी आन्तरिक शक्ति गृहकलह में पड़कर विश्रृंखल होने लगती हैतब उसका ह्रास अवश्यम्भावी हो जाता है।

किन्तु यह 'ह्रासह्रास ही है, 'राष्ट्रका नाश नहीं। राष्ट्र के साथ उसकी संस्कृतिसाहित्यपरम्पराकलाऐताहासिक चेतना-जैसे जो अमर तत्त्व हैवे किसी भी पतन के समय अपने नागरिकों को पुनः सचेत और प्रकृतिस्थ करते है और तब पहले से अधिक तीव्रता से वे नागरिक ही अपनी विश्रृंखलता को समाप्त कर एक हो जाते हैराष्ट्रमय हो जाते है। मनुष्य मरता हैमगर उसकी परम्परा कभी नहीं मरतीव्यक्ति मरता हैमगर राष्ट्र नहीं मरता। राष्ट्र की परम्परा और इतिहास-चेतना ही प्रधान होती है। इतिहास में ऐसा भी हुआ है कि किसी राष्ट्रीय जाति को किसी भौगोलिक सीमाअर्थात देश से आक्रमणकारियों ने उखाड़ दिया। मगर अपनी परम्परा और ऐतिहासिक चेतना को लिये वह राष्ट्रीय जाति किसी ऐतिहासिक अवसर का लाभ उठाकर पुनः राष्ट्रमय हो ही जाती है। इस आधार पर कहा जायतो जातिकौम और राष्ट्र एक ही अर्थ प्रकट करनेवाले शब्द हैं। इन शब्दों का ऐतिहासिक अर्थ हैसाम्प्रदायिक नहींक्योंकि इन शब्दों के पीछे एक-जैसे सांस्कृतिकभौगोलिकऐतिहासिक एकत्व का बोध है।

इसी प्रकार कश्मीर से कन्याकुमारी और कामरूप से कच्छ तक फैले भारतीय राष्ट्र में नदीपर्वतवृक्षलताक्षेत्र इत्यादि के साथ जुड़ा आत्मीयता का सम्बन्ध केवल भौगोलिक ही नहींबल्कि वंशपरम्पराओं का भी है। फिर ये वंशपरम्पराएँ एक-सी साहित्यिकसांस्कृतिकआध्यात्मिकनैतिक और ऐतिहासिक विरासतों से एक-दूसरे से बंधी है। आज भारत के किसी एक कोने का निवासी मूलतः किसी अन्य छोर का वंशज हैकिसी एक कोने की भाषा बोलनेवाला मूलतः किसी दूसरे ही छोर की जनमी भाषा बोलता हैसारे तीर्थसारी नदियाँसारे धाम और सारे यात्रापथ एक-दूसरे के ऐतिहासिक मिलन के साक्षी हैसारे वंशों की रगों में एक ही पारम्परिक रक्त का संचार है। यही कारण है कि भारत एक राष्ट्र है। साम्प्रदायिक चिढ़ या स्वार्थ के कारण अपनी ही राष्ट्रीयता से इनकार करनेवाले कुछ लोगों द्वारा बनाया गया पाकिस्तान भी भारत राष्ट्र का ही एक अंश है।

किन्तु वह मात्र राजनीतिक कारण से अलग है। राष्ट्रीयता का कोई राजनीतिक कारण नहीं होताबल्कि सांस्कृतिक कारण ही होता है। समस्त का कोई राजनीतिक कारण नहीं होताबल्कि सांस्कृतिक कारण ही होता है। समस्त सांस्कृतिकऐतिहासिक और न्यायिक कारणों से पाकिस्तान के लोग भारत राष्ट्र की ही सन्तान हैं। रक्त सेभाषा सेखान-पानआचार-व्यवहार या नस्ल से पाकिस्तान के लोग भी वही है जो भारत के लोग हैं। किसी के धर्मपरिवर्तन से ही नस्ल का परिवर्तन या राष्ट्र का परिवर्तन नहीं होता। यदि ऐसा होता तो मलय राष्ट्र में मलय नस्ल या मलय जाति का क्या अर्थ होतामलय राष्ट्र में बहुसंख्यक मुसलमान होने पर भी वे अरबी क्यों नहीं हैमलयी और ठेठ मलयी परम्परा के ही क्यों है ? व्यक्ति के मरने से राष्ट्र नहीं मरता। व्यक्ति के धर्मपरिवर्तन से राष्ट्रीयता के परिवर्तन की साम्प्रदायिक नारेबाजी तो और भी बड़ी मूर्खता है। अतः नर-नारी के जनमते-मरने पर भी राष्ट्र अमर हैबल्कि राष्ट्र की जो संस्कृति और राष्ट्रीयता हैवह सारे राष्ट्र के नागरिकों के धर्मपरिवर्तन तक कर लेने पर वही रहती हैबदलती नहीं।

 






हिन्दी व्याकरण 

•   भाषा   •   लिपि   •   व्याकरण   •   वर्ण,वर्णमाला   •   शब्द   •   वाक्य   •   संज्ञा   •   सर्वनाम   •   क्रिया   •   काल   •   विशेषण   •   अव्यय   •   लिंग   •   उपसर्ग   •   प्रत्यय   •   तत्सम तद्भव शब्द   •    संधि 1   •  संधि 2   •   कारक   •   मुहावरे 1   •   मुहावरे 2   •   लोकोक्ति   •   समास 1   •   समास 2   •   वचन   •   अलंकार   •   विलोम   •   अनेकार्थी शब्द   •  अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 1   •   अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 2   •   पत्रलेखन   •   विराम चिह्न   •   युग्म शब्द   •   अनुच्छेद लेखन   •   कहानी लेखन   •   संवाद लेखन   •   तार लेखन   •   प्रतिवेदन लेखन   •   पल्लवन   •   संक्षेपण   •   छन्द   •   रस   •   शब्दार्थ   •   धातु   •   पदबंध   •   उपवाक्य   •   शब्दों की अशुद्धियाँ   •   समोच्चरित भिन्नार्थक शब्द   •   वाच्य   •   सारांश   •   भावार्थ   •   व्याख्या   •   टिप्पण   •   कार्यालयीय आलेखन   •   पर्यायवाची शब्द   •   श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द   •   वाक्य शुद्धि   •   पाठ बोधन   •   शब्द शक्ति   •   हिन्दी संख्याएँ   •   पारिभाषिक शब्दावली   •



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