प्रतिवेदन (Report)
भूत अथवा वर्तमान की विशेष घटना, प्रसंग या विषय के प्रमुख कार्यो के क्रमबद्ध और संक्षिप्त विवरण को 'प्रतिवेदन' कहते हैं।
इससे किसी कार्य की स्थिति और प्रगति की सूचना मिलती है। इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(1) प्रतिवेदन में किसी घटना या प्रसंग की मुख्य-मुख्य बातें लिखी जाती हैं।
(2) प्रतिवेदन में बातें एक क्रम में लिखी जाती हैं। सारी बातें सिलसिलेवार लिखी होती हैं।
(3) प्रतिवेदन संक्षेप में लिखा जाता है। बातें विस्तार में नहीं, संक्षेप में लिखी जाती हैं।
(4) प्रतिवेदन ऐसा हो, जिसकी सारी बातें सरल और स्पष्ट हों; उनको समझने में सिरदर्द न हो। उनका एक ही अर्थ और निष्कर्ष हो। स्पष्टता एक अच्छे प्रतिवेदन की बड़ी विशेषता होती है।
(5) प्रतिवेदन सच्ची बातों का विवरण होता है। इसमें पक्षपात, कल्पना और भावना के लिए स्थान नहीं है।
(6) प्रतिवेदन में लेखक या प्रतिवेदक की प्रतिक्रिया या धारणा व्यक्त नहीं की जाती। उसमें ऐसी कोई बात न कही जाय, जिससे भम्र पैदा हो।
(7) प्रतिवेदन की भाषा साहित्यिक नहीं होती। यह सरल और रोचक होती है।
(8) प्रतिवेदन किसी घटना या विषय की साफ और सजीव तस्वीर सुनने या पढ़नेवाले के मन पर खींच देता है।
प्रतिवेदन का उद्देश्य - प्रतिवेदन का उद्देश्य बीते हुए समय के विशेष अनुभवों का संक्षिप्त संग्रह करना है ताकि आगे किसी तरह की भूल या भम्र न होने पाये। प्रतिवेदन में उसी कठोर सत्य की चर्चा रहती है, जिसका अच्छा या बुरा अनुभव हुआ है। प्रतिवेदन का दूसरा लक्ष्य भूतकाल को वर्तमान से जोड़ना भी है।
भूत की भूल से लाभ उठाकर वर्तमान को सुधारना उसका मुख्य प्रयोजन है। किंतु, प्रतिवेदन डायरी या दैंनंदिनी नहीं है। प्रतिवेदन में यथार्थ की तस्वीर रहती है और डायरी में यथार्थ के साथ लेखक की भावना, कल्पना और प्रतिक्रिया भी व्यक्त होती है। दोनों में यह स्पष्ट भेद है।
प्रतिवेदन के प्रकार
मनुष्य की जीवन बहुरंगी है। उसमें अनेक घटनाएँ नित्य घटती रहती हैं और अच्छे-बुरे कार्य होते रहते हैं। प्रतिवेदन में सभी प्रकार के प्रसंगों और कार्यो को स्थान दिया जाता है। सरकारी या गैरसरकारी कर्मचारी समय-समय किसी कार्य या घटना का प्रतिवेदन अपने से बड़े अफसर को देते रहते हैं। समाचारपत्रों के संवाददाता भी प्रधान संपादक को प्रतिवेदन लिखकर भेजते हैं।
स्कूल के प्रधानाध्यापक भी शिक्षा पदाधिकारियों को अपने स्कूल के संबंध में प्रतिवेदन लिखकर भेजते हैं गाँव का मुखिया भी अपने गाँव का प्रतिवेदन सरकार को भेजता है। किसी संस्था का मंत्री भी उसका वार्षिक या अर्द्धवार्षिक प्रतिवेदन सभा में सुनाता है। इस प्रकार, स्पष्ट है कि सामाजिक और सरकारी जीवन में प्रतिवेदन का महत्त्व और मूल्य दिन-दिन बढ़ता जा रहा है।
प्रतिवेदन के तीन प्रकार हैं-
(1) व्यक्तिगत प्रतिवेदन (2) संगठनात्मक प्रतिवेदन (3) विवरणात्मक प्रतिवेदन
(1) व्यक्तिगत प्रतिवेदन - इस प्रकार के प्रतिवेदन में व्यक्ति अपने जीवन के किसी संबंध में अथवा विद्यार्थी-जीवन पर प्रतिवेदन लिख सकता है। इसमें व्यक्तिगत बातों का उल्लेख अधिक रहता है। यह प्रतिवेदन कभी-कभी डायरी का भी रूप ले लेता है। यह प्रतिवेदन का आदर्श रूप नहीं है।
एक उदाहरण इस प्रकार है-
7-10-2000
सुबह पाँच बजे उठा। क्रिया-कर्म कर 6 बजे पढ़ने बैठा। अचानक सिर में दर्द हुआ। बिस्तर पर लेट गया। आँखें बंद कर लीं। नींद आ गयी। एक घंटे बाद जगा, पर दर्द बना रहा। डॉक्टर के पास गया। दवा लेकर घर लौटा। दवा खाकर फिर लेट गया। दर्द दूर हो गया। दस बजे भोजन किया और स्कूल के लिए चल पड़ा। 12 बजे दोपहर में सिरदर्द शुरू हुआ, छुट्टी लेकर घर लौट आया। सारा दिन इसी प्रकार कटा।
(2) संगठनात्मक प्रतिवेदन - इस प्रकार के प्रतिवेदन में किसी संस्था, सभा, बैठक इत्यादि का विवरण दिया जाता है। यहाँ प्रतिवेदक अपने बारे में कुछ न कहकर सारी बातें संगठन या संस्था के संबंध में लिखता है।
यह प्रतिवेदन मासिक, त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक और वार्षिक भी हो सकता है। एक स्कूल में वार्षिकोत्सव मनाया गया। इस अवसर पर प्रधानाध्यापक ने निम्नलिखित प्रतिवेदन पढ़कर सुनाया-
स्कूल का वार्षिकोत्सव: प्रतिवेदन
हमारा स्कूल सन् 1930 में स्थापित हुआ था। इस नगर में यह पिछले 62 वर्षो से शिक्षा का प्रचार करता रहा है। आरंभ में जहाँ 5 शिक्षक और 50 छात्र थे, वहाँ आज शिक्षकों की संख्या 30 और छात्रों की संख्या 700 तक पहुँच गयी है। यहाँ कला, वाणिज्य और विज्ञान की शिक्षा दी जाती है। शिक्षकों को समय पर वेतन मिलता है। ये सभी बड़ी निष्ठा से काम करते हैं स्कूल में सह-शिक्षा की भी व्यवस्था है। लड़कियों की संख्या 250 है। इस वर्ष से सिलाई और कताई-बुनाई की शिक्षा की भी व्यवस्था की गयी है। छात्र इसके महत्त्व से घरेलू उद्योग-धंधों में रुचि ले रहे हैं। इस वर्ष प्रवेशिका परीक्षा में तीस छात्र प्रथम श्रेणी में, बारह द्वितीय श्रेणी में और तीन तृतीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुए। इस विवरण से स्पष्ट है कि यह स्कूल हर दिशा में विकास कर रहा है। शिक्षा-विभाग के निरीक्षक ने भी इसकी सराहना की है।
दिनांक 20. 12. 2005
विजयपाल सिंह
प्रधानाध्यापक
हरिदास हाई स्कूल
(3) विवरणात्मक प्रतिवेदन - इस प्रकार के प्रतिवेदन में किसी मेले, यात्रा, पिकनिक, सभा, रैली इत्यादि का विवरण तैयार किया जाता है। प्रतिवेदक को यहाँ बड़ी ईमानदारी से विषय का यथार्थ विवरण देना पड़ता है। इस प्रकार के प्रतिवेदन का एक उदाहरण इस प्रकार है-
मेला : प्रतिवेदन
भारत का सबसे बड़ा मेला सोनपुर में हर साल लगता है ; इसे 'हरिहरक्षेत्र का मेला' कहते हैं। यह कार्तिक की पूर्णिमा के दो-तीन दिन पहले से पंद्रह-बीस दिनों तक गंडक और गंगा के संगम पर लगता है। पूर्णिमा के दिन यात्रियों की भारी भीड़ हरिहरनाथ के दर्शन के लिए होती है। इस वर्ष भी मंदिर के सामने दर्शनार्थियों की एक लंबी कतार थी। भीड़ इतनी अधिक थी कि एक लड़का कुचलकर मर गया। फिर भी, भीड़ अपनी जगह से हटी नहीं। हरिहरनाथ के दर्शन कर लोग सजी-सजायी दूकानों की ओर बढ़े। उनकी सजावट मनमोहक थी। देशभर के व्यापारी आये थे। आसपास के मकानों का किराया अधिक था। अलग-अलग स्थानों पर दूकानें लगायी गयी थीं। पशु-पक्षियों का जमाव एक स्थान पर था। हाथी, घोड़े, गाय, बैल इत्यादि की खरीदारी हुई। दूसरे स्थान पर साधु-संन्यासी अपनी-अपनी कुटी में धुनी रमाये थे। तीसरे स्थान पर सरकसवाले तरह-तरह के खेल-तमाशे दिखा रहे थे। रात में बिजली की रोशनी में सारा मेला जगमगा रहा था। सारा दृश्य मनमोहक था। पूर्णिमा के दूसरे दिन मैं घर लौट आया।
दिनांक 20-11-2000
सुरेश गौतम
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