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विराम चिह (Punctuation Mark)

 


विराम चिह (Punctuation Mark)

भित्र-भित्र प्रकार के भावों और विचारों को स्पष्ट करने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग वाक्य के बीच या अंत में किया जाता हैउन्हें 'विराम चिह्नकहते है। 

दूसरे शब्दों मेंविराम का अर्थ है - 'रुकनाया 'ठहरना वाक्य को लिखते अथवा बोलते समय बीच में कहीं थोड़ा-बहुत रुकना पड़ता है जिससे भाषा स्पष्टअर्थवान एवं भावपूर्ण हो जाती है। लिखित भाषा में इस ठहराव को दिखाने के लिए कुछ विशेष प्रकार के चिह्नों का प्रयोग करते हैं। इन्हें ही विराम-चिह्न कहा जाता है।

सरल शब्दों मेंअपने भावों का अर्थ स्पष्ट करने के लिए या एक विचार और उसके प्रसंगों को प्रकट करने के लिए हम रुकते हैं। इसी को विराम कहते है।

इन्हीं विरामों को प्रकट करने के लिए हम जिन चिह्नों का प्रयोग करते हैउन्हें 'विराम चिह्नकहते है।

यदि विराम-चिह्न का प्रयोग  किया जाए तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है। 

जैसे - (1) रोको मत जाने दो।  (2) रोकोमत जाने दो।   (3) रोको मतजाने दो।

उपर्युक्त उदाहरणों में पहले वाक्य में अर्थ स्पष्ट नहीं होताजबकि दूसरे और तीसरे वाक्य में अर्थ तो स्पष्ट हो जाता है लेकिन एक-दूसरे का उल्टा अर्थ मिलता है जबकि तीनो वाक्यों में वही शब्द है। दूसरे वाक्य में 'रोकोके बाद अल्पविराम लगाने से रोकने के लिए कहा गया है जबकि तीसरे वाक्य में 'रोको मतके बाद अल्पविराम लगाने से किसी को  रोक कर जाने के लिए कहा गया हैं। इस प्रकार विराम-चिह्न लगाने से दूसरे और तीसरे वाक्य को पढ़ने में तथा अर्थ स्पष्ट करने में जितनी सुविधा होती है उतनी पहले वाक्य में नहीं होती। 

अतएव विराम-चिह्नों के विषय में पूरा ज्ञान होना आवश्यक है।

विराम चिह्न की आवश्यकता -

'विरामका शाब्दिक अर्थ होता हैठहराव। जीवन की दौड़ में मनुष्य को कहीं--कहीं रुकना या ठहरना भी पड़ता है। विराम की आवश्यकता हर व्यक्ति को होती है। जब हम करते-करते थक जाते हैतब मन आराम करना चाहता है। यह आराम विराम का ही दूसरा नाम है। पहले विराम होता हैफिर आराम। स्पष्ट है कि साधारण जीवन में भी विराम की आवश्यकता है।

लेखन मनुष्य के जीवन की एक विशेष मानसिक अवस्था है। लिखते समय लेखक यों ही नहीं दौड़ताबल्कि कहीं थोड़ी देर के लिए रुकता हैठहरता है और पूरा (पूर्णविराम लेता है। ऐसा इसलिए होता है कि हमारी मानसिक दशा की गति सदा एक-जैसी नहीं होती। यही कारण है कि लेखनकार्य में भी विरामचिह्नों का प्रयोग करना पड़ता है। 

यदि इन चिन्हों का उपयोग  किया जायतो भाव अथवा विचार की स्पष्टता में बाधा पड़ेगी और वाक्य एक-दूसरे से उलझ जायेंगे और तब पाठक को व्यर्थ ही माथापच्ची करनी पड़ेगी। 

पाठक के भाव-बोध को सरल और सुबोध बनाने के लिए विरामचिन्हों का प्रयोग होता है। सारांश यह कि वाक्य के सुन्दर गठन और भावाभिव्यक्ति की स्पष्टता के लिए इन विरामचिह्नों की आवश्यकता और उपयोगिता मानी गयी है। 

हिन्दी में प्रयुक्त विराम चिह्नहिन्दी में निम्नलिखित विरामचिह्नों का प्रयोग अधिक होता है-

हिंदी में प्रचलित प्रमुख विराम चिह्न निम्नलिखित है-

(1) अल्प विराम (Comma) ( , )                    (2) अर्द्ध विराम (Semi colon) ( ; )                            (3 ) पूर्ण विराम(Full-Stop) (  )

(4) विस्मयादिबोधक चिह्न (Sign of Interjection) ( ! )  (5) प्रश्नवाचक चिह्न (Question mark) ( ? )                  (6) कोष्ठक (Bracket) ( () )

(7) योजक चिह्न (Hyphen) ( - )                 (8) अवतरण चिह्न या उद्धरणचिह्न (Inverted Comma) ( ''... '' )      (9) लाघव चिह्न (Abbreviation sign) ( o )

(10) आदेश चिह्न (Sign of following) ( :- )        (11) रेखांकन चिह्न (Underline) (_)                           (12) लोप चिह्न (Mark of Omission) (...)

(1)अल्प विराम (Comma) (,) - वाक्य में जहाँ थोड़ा रुकना हो या अधिक वस्तुओंव्यक्तियों आदि को अलग करना हो वहाँ अल्प विराम ( , ) चिह्न का प्रयोग किया जाता है।

इसका अर्थ हैथोड़ी देर के लिए ठहरना या रुकना। हिंदी में इस विरामचिह्न का प्रयोग सबसे अधिक होता है। इसके प्रयोग की अनेक स्थितियाँ हैं। 

इसके कुछ मुख्य नियम इस प्रकार हैं।-

(i) वाक्य में जब दो से अधिक समान पदों और वाक्यों में संयोजक अव्यय 'औरआयेवहाँ अल्पविराम का प्रयोग होता है। जैसे-

पदों मेंरामलक्ष्मणभरत और शत्रुघ्न राजमहल में पधारे। 

वाक्यों मेंवह जो रोज आता हैकाम करता है और चला जाता है।

(ii) जहाँ शब्दों को दो या तीन बार दुहराया जायवहाँ अल्पविराम का प्रयोग होता है। 

जैसेवह दूर सेबहुत दूर से  रहा है। 

सुनोसुनोवह क्या कह रही है। 

नहींनहींऐसा कभी नहीं हो सकता।

(iii) जहाँ किसी व्यक्ति को संबोधित किया जायवहाँ अल्पविराम का चिह्न लगता है। 

जैसेभाइयोसमय  गया हैसावधान हो जायँ। 

प्रिय महराजमैं आपका आभारी हूँ। 

सुरेशकल तुम कहाँ गये थे ?

देवियोआप हमारे देश की आशाएँ है।

(iv)जिस वाक्य में 'वह', 'तो', 'या', 'अब', इत्यादि लुप्त होंवहाँ अल्पविराम का प्रयोग होता है।

जैसेमैं जो कहता हूँकान लगाकर सुनो। ('वहलुप्त है।)

वह कब लौटेगाकह नहीं सकता। ('यहलुप्त है। )

वह जहाँ जाता हैबैठ जाता है। ('वहाँलुप्त है। )

कहना था सो कह दियातुम जानो। ('अबलुप्त है।)

(v)यदि वाक्य में प्रयुक्त किसी व्यक्ति या वस्तु की विशिष्टता किसी सम्बन्धवाचक सर्वनाम के माध्यम से बतानी होतो वहाँ अल्पविराम का प्रयोग निम्रलिखित रीति से किया जा सकता है-

मेरा भाईजो एक इंजीनियर हैइंगलैण्ड गया है 

दो यात्रीजो रेल-दुर्घटना के शिकार हुए थेअब अच्छे है। 

यह कहानीजो किसी मजदूर के जीवन से सम्बद्ध हैबड़ी मार्मिक है।

(vi) अँगरेजी में दो समान वैकल्पिक वस्तुओं तथा स्थानों की 'अथवा', 'याआदि से सम्बद्ध करने पर उनके पहले अल्पविराम लगाया जाता है। 

जैसे- Constantinople, or Istanbul, was the former capital of Turkey.

Nitre,or salt petre,is dug from the earth.

(vii)इसके ठीक विपरीतदो भित्र वैकल्पिक वस्तुओं तथा स्थानों को 'अथवा', 'याआदि से जोड़ने की स्थिति में 'अथवा', 'याआदि के पहले अल्पविराम नहीं लगाया जाता है। 

जैसे- I should like to live in Devon or Cornwall .

He came from kent or sussex.

(viii)हिन्दी में उक्त नियमों का पालनखेद हैकड़ाई से नहीं होता। हिन्दी भाषा में सामान्यतः 'अथवा', 'याआदि के पहले अल्पविराम का चिह्न नहीं लगता। 

जैसे - पाटलिपुत्र या कुसुमपुर भारत की पुरानी राजधानी था। 

कल मोहन अथवा हरि कलकत्ता जायेगा।

(ix) किसी व्यक्ति की उक्ति के पहले अल्पविराम का प्रयोग होता है। 

जैसेमोहन ने कहा, ''मैं कल पटना जाऊँगा। ''

इस वाक्य को इस प्रकार भी लिखा जा सकता है- 'मोहन ने कहा कि मैं कल पटना जाऊँगा।कुछ लोग 'किके बाद अल्पविराम लगाते हैलेकिन ऐसा करना ठीक नहीं है। यथा-

राम ने कहा किमैं कल पटना जाऊँगा। 

ऐसा लिखना भद्दा है। 'किस्वयं अल्पविराम हैअतः इसके बाद एक और अल्पविराम लगाना कोई अर्थ नहीं रखता। इसलिए उचित तो यह होगा कि चाहे तो हम लिखें- 'राम ने कहा, 'मैं कल पटना जाऊँगा', अथवा लिखें- 'राम ने कहा कि मैं कल पटना जाऊँगा।दोनों शुद्ध होंगे।

(x) बसहाँनहींसचमुचअतःवस्तुतःअच्छा-जैसे शब्दों से आरम्भ होनेवाले वाक्यों में इन शब्दों के बाद अल्पविराम लगता है। 

जैसेबसहो गयारहने दीजिए। 

हाँतुम ऐसा कह सकते हो।

नहींऐसा नहीं हो सकता। 

सचमुचतुम बड़े नादान हो। 

अतःतुम्हे ऐसा नहीं कहना चाहिए। 

वस्तुतःवह पागल है। 

अच्छातो लीजिएचलिए।

(xi) शब्द युग्मों में अलगाव दिखाने के लिएजैसेपाप और पुण्यसच और झूठकल और आज। पत्र में संबोधन के बाद;

जैसेपूज्य पिताजीमान्यवरमहोदय आदि। ध्यान रहे कि पत्र के अंत में भवदीयआज्ञाकारी आदि के बाद अल्पविराम नहीं लगता।

(xii) क्रियाविशेषण वाक्यांशों के बाद भी अल्पविराम आता है। जैसेमहात्मा बुद्ध नेमायावी जगत के दुःख को देख करतप प्रारंभ किया।

(xiii) किन्तुपरन्तुक्योंकिइसलिए आदि समुच्च्यबोधक शब्दों से पूर्व भी अल्पविराम लगाया जाता है;

जैसेआज मैं बहुत थका हूँइसलिए विश्राम करना चाहता हूँ। 

मैंने बहुत परिश्रम कियापरंतु फल कुछ नहीं मिला।

(xiv) तारीख के साथ महीने का नाम लिखने के बाद तथा सन्संवत् के पहले अल्पविराम का प्रयोग किया जाता है। 

जैसे- 2 अक्टूबरसन् 1869 ई० को गाँधीजी का जन्म हुआ।

(xv) उद्धरण से पूर्व 'किके बदले में अल्पविराम का प्रयोग किया जाता है। जैसेनेता जी ने कहा, ''दिल्ली चलो'' ('किलगने परनेताजी ने कहा कि ''दिल्ली चलो'' )

(xvi) अंको को लिखते समय भी अल्पविराम का प्रयोग किया जाता है। जैसे- 5, 6, 7, 8, 9, 10, 15, 20, 60, 70, 100 आदि।

 

(2)अर्द्ध विराम (Semi colon) ( ; ) - जहाँ अल्प विराम से कुछ अधिक ठहरते है तथा पूर्ण विराम से कम ठहरते हैवहाँ अर्द्ध विराम का चिह्न ( ; ) लगाया जाता है। 

यदि एक वाक्य या वाक्यांश के साथ दूसरे वाक्य या वाक्यांश का संबंध बताना हो तो वहाँ अर्द्धविराम का प्रयोग होता है। इस प्रकार के वाक्यों में वाक्यांश दूसरे से अलग होते हुए भी दोनों का कुछ- कुछ संबंध रहता है।

कुछ उदाहरण इस प्रकार है-

(a)आम तौर पर अर्द्धविराम दो उपवाक्यों को जोड़ता है जो थोड़े से असंबद्ध होते है एवं जिन्हें 'औरसे नहीं जोड़ा जा सकता है। जैसे-

फलों में आम को सर्वश्रेष्ठ फल मन गया हैकिन्तु श्रीनगर में और ही किस्म के फल विशेष रूप से पैदा होते है।

(b) दो या दो से अधिक उपाधियों के बीच अर्द्धविराम का प्रयोग होता हैजैसेएम.; बीएड एम.; पीएचडी एमएस-सी.; डीएस-सी

वह एक धूर्त आदमी हैऐसा उसके मित्र भी मानते हैं। 

यह घड़ी ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगीयह बहुत सस्ती है। 

हमारी चिट्ठी उड़ा ले गयेबोले तक नहीं।

काम बंद हैकारोबार ठप हैबेकारी फैली हैचारों ओर हाहाकार है। 

कल रविवार हैछुट्टी का दिन हैआराम मिलेगा।

(3) पूर्ण विराम (Full-Stop)  ) - जहाँ एक बात पूरी हो जाये या वाक्य समाप्त हो जाये वहाँ पूर्ण विराम (  ) चिह्न लगाया जाता है। 

जैसेपढ़ रहा हूँ। 

हिन्दी में पूर्ण विराम चिह्न का प्रयोग सबसे अधिक होता है। यह चिह्न हिन्दी का प्राचीनतम विराम चिह्न है।

(i)  पूर्णविराम का अर्थ हैपूरी तरह रुकना या ठहरना। सामान्यतः जहाँ वाक्य की गतिअन्तिम रूप ले लेविचार के तार एकदम टूट जायेंवहाँ पूर्णविराम का प्रयोग होता है। 

जैसे- यह हाथी है। वह लड़का है। मैं आदमी हूँ। तुम जा रहे हो। 

इन वाक्यों में सभी एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं। सबके विचार अपने में पूर्ण है। ऐसी स्थिति में प्रत्येक वाक्य के अंत में पूर्णविराम लगना चाहिए। संक्षेप मेंप्रत्येक वाक्य की समाप्ति पर पूर्णविराम का प्रयोग होता है।

(ii) कभी कभी किसी व्यक्ति या वस्तु का सजीव वर्णन करते समय वाक्यांशों के अन्त में पूर्णविराम का प्रयोग होता है। 

जैसेगोरा रंग।

(a) गालों पर कश्मीरी सेब की झलक। नाक की सीध में ऊपर के ओंठ पर मक्खी की तरह कुछ काले बाल। सिर के बाल  अधिक बड़े अधिक छोटे। 

(b) कानों के पास बालों में कुछ सफेदी। पानीदार बड़ी-बड़ी आँखें। चौड़ा माथा। बाहर बन्द गले का लम्बा कोट। 

यहाँ व्यक्ति की मुखमुद्रा का बड़ा ही सजीव चित्र कुछ चुने हुए शब्दों तथा वाक्यांशों में खींचा गया है। प्रत्येक वाक्यांश अपने में पूर्ण और स्वतंत्र है। ऐसी स्थिति में पूर्णविराम का प्रयोग उचित ही है।

(iii) इस चिह्न का प्रयोग प्रश्नवाचक और विस्मयादिबोधक वाक्यों को छोड़कर अन्य सभी प्रकार के वाक्यों के अंत में किया जाता है। 

जैसेराम स्कूल से  रहा है। वह उसकी सौंदर्यता पर मुग्ध हो गया। वह छत से गिर गया।

(iv) दोहाश्लोकचौपाई आदि की पहली पंक्ति के अंत में एक पूर्ण विराम (तथा दूसरी पंक्ति के अंत में दो पूर्ण विराम (।।लगाने की प्रथा है। जैसे-

रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून। 

पानी गए  ऊबरे मोतीमानुसचून।।

पूर्णविराम का दुष्प्रयोगपूर्णविराम के प्रयोग में सावधानी  रखने के कारण निम्रलिखित उदाहरण में अल्पविराम लगाया गया है-

आप मुझे नहीं जानतेमहीने में दो ही दिन व्यस्त रहा हूँ। 

यहाँ 'जानतेके बाद अल्पविराम के स्थान पर पूर्णविराम का चिह्न लगाना चाहिएक्योंकि यहाँ वाक्य पूरा हो गया है। दूसरा वाक्य पहले से बिलकुल स्वतंत्र है।

(4) विस्मयादिबोधक चिह्न (Sign of Interjection) ( ! ) - इसका प्रयोग हर्षविवादविस्मयघृणाआश्रर्यकरुणाभय इत्यादि का बोध कराने के लिए इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है।

जैसेवाह ! आप यहाँ कैसे पधारे ? हाय ! बेचारा व्यर्थ में मारा गया।

(i) आह्रादसूचक शब्दोंपदों और वाक्यों के अन्त में इसका प्रयोग होता है। जैसेवाहतुम्हारे क्या कहने!

(ii)अपने से बड़े को सादर सम्बोधित करने में इस चिह्न का प्रयोग होता है। जैसेहे रामतुम मेरा दुःख दूर करो। हे ईश्र्वर ! सबका कल्याण हो।

(iii) जहाँ अपने से छोटों के प्रति शुभकामनाएँ और सदभावनाएँ प्रकट की जाये। जैसेभगवान तुम्हारा भला करे ! यशस्वी होअो !उसका पुत्र चिरंजीवी हो ! प्रिय किशोरस्त्रेहाशीर्वाद !

(iv) जहाँ मन की हँसी-खुशी व्यक्त की जाय।

जैसेकैसा निखरा रूप है ! तुम्हारी जीत होकर रहीशाबाश ! वाह ! वाह ! कितना अच्छा गीत गाया तुमने !

(विस्मयादिबोधक चिह्न में प्रश्रकर्ता उत्तर की अपेक्षा नहीं करता।

(v) संबोधनसूचक शब्द के बादजैसे-

मित्रो ! अभी मैं जो कहने जा रहा हूँ। 

साथियो ! आज देश के लिए कुछ करने का समय  गया है।

(vi) अतिशयता को प्रकट करने के लिए कभी-कभी दो-तीन विस्मयादिबोधक चिह्नों का प्रयोग किया जाता है। जैसे-

अरेवह मर गया ! शोक !! महाशोक !!!

(5)प्रश्नवाचक चिह्न (Question mark) ( ? ) - प्रश्नवाचक वाक्यों के अंत में इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसेतुम कहाँ जा रहे हो ? वहाँ क्या रखा है ?

इसका प्रयोग निम्रलिखित अवस्थाओं में होता है-

(i) जहाँ प्रश्र करने या पूछे जाने का बोध हो।

जैसेक्या आप गया से  रहे है ?

(ii) जहाँ स्थिति निश्रित  हो।

जैसेआप शायद पटना के रहनेवाले है ?

(iii) जहाँ व्यंग्य किया जाय। 

जैसेभ्रष्टाचार इस युग का सबसे बड़ा शिष्टाचार हैहै  ?

जहाँ घूसखोरी का बाजार गर्म हैवहाँ ईमानदारी कैसे टिक सकती है ?

(iv) इस चिह्न का प्रयोग संदेह प्रकट करने के लिए भी उपयोग किया जाता हैजैसेक्या कहावह निष्ठावान (?) है।

(6) कोष्ठक (Bracket) ( () ) - किसी शब्द के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए ( )का चिह्न लगाते है। जैसेउच्चारण (बोलनाजीभ एवं कण्ठ से होता है।

(7) योजक चिह्न (Hyphen) ( - ) - हिंदी में अल्पविराम के बाद योजक चिह्न का प्रयोग अधिक होता है। वाक्य में प्रयुक्त्त शब्दों के अर्थ और उनके उच्चारण की स्पष्टता के लिए योजक चिह्न का प्रयोग होता है। शब्दों के निर्माण में भी इसकी उपयोगिता है।

भाषाविज्ञान की दृष्टि से हिन्दी भाषा की प्रकृति विश्लेषणात्मक हैसंस्कृत की तरह संश्लेषणात्मक नहीं। संस्कृत में योजक चिह्न का प्रयोग नहीं होता।

एक उदाहरण इस प्रकार हैगायन्ति रमनामानि सततं ये जना भुवि। 

नमस्तेभ्यो नमस्तेभ्यो नमस्तेभ्योपुनः पुनः।।

हिन्दी में इसका अनुवाद इस प्रकार होगापृथ्वी पर जो सदा राम-नाम गाते हैमै उन्हें बार-बार प्रणाम करता हूँ। 

यहाँ संस्कृत में 'रमनामानिलिखा गया और हिन्दी में 'राम-नाम', संस्कृत में 'पुनः पुनःलिखा गया और हिन्दी में 'बार-बार अतःसंस्कृत और हिन्दी का अन्तर स्पष्ट है।

योजक चिह्न की आवश्यकता

अब प्रश्र आता है कि योजक चिह्न लगाने की आवश्यकता क्यों होता है-

योजक चिह्न लगाने की आवश्यकता इसलिए होता है क्योंकि वाक्य में प्रयुक्त शब्द और उनके अर्थ को योजक चिह्न चमका देता है। यह किसी शब्द के उच्चारण अथवा वर्तनी को भी स्पष्ट करता है।

श्रीयुत रामचन्द्र वर्मा का ठीक ही कहना है कि यदि योजक चिह्न का ठीक-ठीक ध्यान  रखा जायतो अर्थ और उच्चारण से सम्बद्ध अनेक प्रकार के भ्रम हो सकते हैं।

इस सम्बन्ध में वर्माजी ने 'भ्रमके कुछ उदाहरण इस प्रकार दिये हैं-

() 'उपमाताका अर्थ 'उपमा देनेवालाभी है और 'सौतेली माँभी। यदि लेखक को दूसरा अर्थ अभीष्ट हैतो 'उपऔर 'माताके बीच योजक चिह्न लगाना आवश्यक हैनहीं तो अर्थ स्पष्ट नहीं होगा और पाठक को व्यर्थ ही मुसीबत मोल लेनी होगी।

() 'भू-तत्वका अर्थ होगाभूमि या पृथ्वी से सम्बद्ध तत्व ; पर यदि 'भूतत्तवलिखा जायतो 'भूतशब्द का भाववाचक संज्ञारूप ही माना और समझा जायेगा।

(इसी तरह, 'कुशासनका अर्थ 'बुरा शासनभी होगा और 'कुश से बना हुआ आसनभी। यदि पहला अर्थ अभीष्ट हैतो 'कुके बाद योजक चिह्न लगाना आवश्यक है।

उक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि योजक चिह्न की अपनी उपयोगिता है और शब्दों के निर्माण में इसका बड़ा महत्त्व है। किन्तुहिन्दी में इसके प्रयोग के नियम निर्धारित नहीं हैइसलिए हिन्दी के लेखक इस ओर पूरे स्वच्छन्द हैं।

योजक चिह्न का प्रयोग निम्नलिखित अवस्था में होता है-

(i) योजक चिह्न प्रायः दो शब्दों को जोड़ता है और दोनों को मिलाकर एक समस्त पद बनाता हैकिंतु दोनों का स्वतंत्र रूप बना रहता है। इस संबंध में नियम यह है कि जिन शब्दों या पदों के दोनों खंड प्रधान हों और जिनमें और अनुक़्त या लुप्त होवहाँ योजक चिह्न का प्रयोग होता है। 

जैसेदाल-रोटीदही-बड़ासीता-रामफल-फूल 

(ii) दो विपरीत अर्थवाले शब्दों के बीच योजक चिह्न लगता है। 

जैसेऊपर-नीचेराजा-रानीरात-दिनपाप-पुण्यआकाश-पातालस्त्री-पुरुषमाता-पितास्वर्ग-नरक।

(iii) एक अर्थवाले सहचर शब्दों के बीच भी योजक चिह्न का व्यवहार होता है। 

जैसेदीन-दुःखीहाट-बाजाररुपया-पैसामान-मर्यादाकपड़ा-लत्ताहिसाब-किताबभूत-प्रेत।

(iv) जब दो विशेषणों का प्रयोग संज्ञा के अर्थ में होवहाँ भी योजक चिह्न का व्यवहार होता है।

जैसेअंधा-बहराभूखा-प्यासालूला-लँगड़ा।

(v) जब दो शब्दों में एक सार्थक और दूसरा निरर्थक हो तो वहाँ भी योजक चिह्न लगता है। 

जैसेपरमात्मा-वरमात्माउलटा -पुलटाअनाप-शनापखाना-वानापानी-वानी 

(vi) जब एक ही संज्ञा दो बार लिखी जाय तो दोनों संज्ञाओं के बीच योजक चिह्न लगता है।

जैसेनगर-नगरगली-गलीघर-घरचम्पा-चम्पावन-वनबच्चा-बच्चारोम-रोम 

(vii) निश्रित संख्यावाचक विशेषण के दो पद जब एक साथ प्रयोग में आयें तो दोनों के बीच योजक चिह्न लगेगा। 

जैसेएक-दोदस-बारहनहला-दहलाछह-पाँचनौ-दोदो-दोचार-चार।

(viii) जब दो शुद्ध संयुक्त क्रियाएँ एक साथ प्रयुक्त हों,तब दोनों के बीच योजक चिह्न लगता है। 

जैसेपढ़ना-लिखनाउठना-बैठनामिलना-जुलनामारना-पीटनाखाना-पीनाआना-जानाकरना-धरनादौड़ना-धूपनामरना-जीनाकहना-सुननासमझना-बुझनाउठना-गिरनारहना-सहनासोना-जगना।

(ix) क्रिया की मूलधातु के साथ आयी प्रेरणार्थक क्रियाओं के बीच भी योजक चिह्न का प्रयोग होता है। 

जैसेउड़ना-उड़ानाचलना-चलानागिरना-गिरानाफैलना-फैलानापीना-पिलानाओढ़ना-उढ़ानासोना-सुलानासीखना-सिखानालेटना-लिटाना।

(x) दो प्रेरणार्थक क्रियाओं के बीच भी योजक चिह्न लगाया जाता है। 

जैसेडराना-डरवानाभिंगाना-भिंगवानाजिताना-जितवानाचलाना-चलवानाकटाना-कटवानाकराना-करवाना।

(xi) परिमाणवाचक और रीतिवाचक क्रियाविशेषण में प्रयुक्त दो अव्ययों तथा 'ही', 'से', 'का', '', आदि के बीच योजक चिह्न का व्यवहार होता है। 

जैसेबहुत-बहुतथोड़ा-थोड़ाथोड़ा-बहुतकम-कमकम-बेशधीरे-धीरेजैसे-तैसेआप-ही आपबाहर-भीतरआगे-पीछेयहाँ-वहाँअभी-अभीजहाँ-तहाँआप-से-आपज्यों-का-त्योंकुछ--कुछऐंसा-वैसाजब-तबतब-तबकिसी--किसीसाथ-साथ।

(xii ) गुणवाचक विशेषण में भी 'साजोड़कर योजक चिह्न लगाया जाता है। 

जैसेबड़ा-सा पेड़बड़े-से-बड़े लोगठिंगना-सा आदमी।

(xiii ) जब किसी पद का विशेषण नहीं बनतातब उस पद के साथ 'सम्बन्धीपद जोड़कर दोनों के बीच योजक चिह्न लगाया जाता है। 

जैसेभाषा-सम्बन्धी चर्चापृथ्वी-सम्बन्धी तत्वविद्यालय-सम्बन्धी बातेंसीता-सम्बन्धी वार्त्ता।

यहाँ ध्यान देने की बात है कि जिन शब्दों के विशेषणपद बन चुके हैं या बन सकते हैवैसे शब्दों के साथ 'सम्बन्धीजोड़ना उचित नहीं। यहाँ 'भाषा-सम्बन्धीके स्थान पर 'भाषागतया 'भाषिकया 'भाषाईविशेषण लिखा जाना चाहिए। 

इसी तरह, 'पृथ्वी-सम्बन्धीके लिए 'पार्थिवविशेषण लिखा जाना चाहिए। हाँ, 'विद्यालयऔर 'सीताके साथ 'सम्बन्धीका प्रयोग किया जा सकता हैक्योंकि इन दो शब्दों के विशेषणरूप प्रचलित नहीं हैं। आशय यह कि सभी प्रकार के शब्दों के साथ 'सम्बन्धीजोड़ना ठीक नहीं।(xiv ) जब दो शब्दों के बीच सम्बन्धकारक के चिह्नकाके और कीलुप्त या अनुक्त होंतब दोनों के बीच योजक चिह्न लगाया जाता है। ऐसे शब्दों को हम सन्धि या समास के नियमों से अनुशासित नहीं कर सकते। इनके दोनों पद स्वतंत्र होते हैं।

जैसे-शब्द-सागरलेखन-कलाशब्द-भेदसन्त-मतमानव-जीवनमानव-शरीरलीला-भूमिकृष्ण-लीलाविचार-श्रृंखलारावण-वधराम-नामप्रकाश-स्तम्भ।

(xv ) लिखते समय यदि कोई शब्द पंक्ति के अन्त में पूरा  लिखा जा सकेतो उसके पहले आधे खण्ड को पंक्ति के अन्त में रखकर उसके बाद योजक चिह्न लगाया जाता है। ऐसी हालत में शब्द को 'शब्दखण्डया 'सिलेबुलया पूरे 'पदपर तोड़ना चाहिए। जिन शब्दों के योग में योजक चिह्न आवश्यक हैउन शब्दों को पंक्ति में तोड़ना हो तो शब्द के प्रथम अंश के बाद योजक चिह्न देकर दूसरी पंक्ति दूसरे अंश के पहले योजक देकर जारी करनी चाहिए।

(xvi)अनिश्रित संख्यावाचकविशेषण में जब 'सा', 'सेआदि जोड़े जायेंतब दोनों के बीच योजक चिह्न लगाया जाता है।

जैसेबहुत-सी बातेंकम-से-कमबहुत-से लोगबहुत-सा रुपयाअधिक-से-अधिकथोड़ा-सा काम।

(8) अवतरण चिह्न या उद्धरणचिह्न(Inverted Comma)(''...'')-किसी की कही हुई बात को उसी तरह प्रकट करने के लिए अवतरण चिह्न( ''... '' ) का प्रयोग होता है।

जैसेराम ने कहा, ''सत्य बोलना सबसे बड़ा धर्म है।''

उद्धरणचिह्न के दो रूप हैइकहरा ( ' ' ) और दुहरा ( '' '' )

(i) जहाँ किसी पुस्तक से कोई वाक्य या अवतरण ज्यों-का-त्यों उद्धृत किया जाएवहाँ दुहरे उद्धरण चिह्न का प्रयोग होता है और जहाँ कोई विशेष शब्दपदवाक्य-खण्ड इत्यादि उद्धृत किये जायें वहाँ इकहरे उद्धरण लगते हैं। जैसे-

''जीवन विश्र्व की सम्पत्ति है। ''- जयशंकर प्रसाद 

''कामायनीकी कथा संक्षेप में लिखिए।

(ii) पुस्तकसमाचारपत्रलेखक का उपनामलेख का शीर्षक इत्यादि उद्धृतकरते समय इकहरे उद्धरणचिह्न का प्रयोग होता है। 

जैसे- 'निरालापागल नहीं थे। 

'किशोर-भारतीका प्रकाशन हर महीने होता है। 

'जुही की कलीका सारांश अपनी भाषा में लिखो। 

सिद्धराज 'पागलएक अच्छे कवि हैं। 

'प्रदीपएक हिन्दी दैनिक पत्र है।

(iii) महत्त्वपूर्ण कथनकहावतसन्धि आदि को उद्धत करने में दुहरे उद्धरणचिह्न का प्रयोग होता है। 

जैसेभारतेन्दु ने कहा था- ''देश को राष्ट्रीय साहित्य चाहिए।''

(9) लाघव चिह्न (Abbreviation sign) ( o ) - किसी शब्द को संक्षेप में प्रकट करने के लिए लाघव चिह्न 

( o ) का प्रयोग किया जाता है। जैसेपंडित = पंo, डॉंक़्टर = डॉंo

(10) आदेश चिह्न (Sign of following) (:-) - किसी विषय को क्रम से लिखना हो तो विषय-क्रम व्यक्त करने से पूर्व आदेश चिह्न ( :- ) का प्रयोग किया जाता है। 

जैसेवचन के दो भेद है :- 1. एकवचन, 2. बहुवचन।

(11) रेखांकन चिह्न (Underline) (_) - वाक्य में महत्त्वपूर्ण शब्दपदवाक्य रेखांकित कर दिया जाता हैजैसे- गोदान उपन्यासप्रेमचंद द्वारा लिखित सर्वश्रेष्ठ कृति है।

(12) लोप चिह्न (Mark of Omission) (...) - जब वाक्य या अनुच्छेद में कुछ अंश छोड़ कर लिखना हो तो लोप चिह्न का प्रयोग किया जाता हैजैसे-

गाँधीजी ने कहा, ''परीक्षा की घड़ी  गई है .... हम करेंगे या मरेंगे'' 






हिन्दी व्याकरण 

•   भाषा   •   लिपि   •   व्याकरण   •   वर्ण,वर्णमाला   •   शब्द   •   वाक्य   •   संज्ञा   •   सर्वनाम   •   क्रिया   •   काल   •   विशेषण   •   अव्यय   •   लिंग   •   उपसर्ग   •   प्रत्यय   •   तत्सम तद्भव शब्द   •    संधि 1   •  संधि 2   •   कारक   •   मुहावरे 1   •   मुहावरे 2   •   लोकोक्ति   •   समास 1   •   समास 2   •   वचन   •   अलंकार   •   विलोम   •   अनेकार्थी शब्द   •  अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 1   •   अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 2   •   पत्रलेखन   •   विराम चिह्न   •   युग्म शब्द   •   अनुच्छेद लेखन   •   कहानी लेखन   •   संवाद लेखन   •   तार लेखन   •   प्रतिवेदन लेखन   •   पल्लवन   •   संक्षेपण   •   छन्द   •   रस   •   शब्दार्थ   •   धातु   •   पदबंध   •   उपवाक्य   •   शब्दों की अशुद्धियाँ   •   समोच्चरित भिन्नार्थक शब्द   •   वाच्य   •   सारांश   •   भावार्थ   •   व्याख्या   •   टिप्पण   •   कार्यालयीय आलेखन   •   पर्यायवाची शब्द   •   श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द   •   वाक्य शुद्धि   •   पाठ बोधन   •   शब्द शक्ति   •   हिन्दी संख्याएँ   •   पारिभाषिक शब्दावली   •



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