संधि (Seam )
दो वर्णों ( स्वर या व्यंजन ) के मेल से होने वाले विकार को संधि कहते हैं।
दूसरे अर्थ में- संधि का सामान्य अर्थ है मेल। इसमें दो अक्षर मिलने से तीसरे शब्द रचना होती है,
इसी को संधि कहते हैै।
उन पदों को मूल रूप में पृथक कर देना संधि विच्छेद हैै।
जैसे -हिम +आलय =हिमालय ( यह संधि है ), अत्यधिक = अति + अधिक ( यह संधि विच्छेद है )
यथा + उचित =यथोचित
यशः +इच्छा=यशइच्छ
अखि + ईश्वर =अखिलेश्वर
आत्मा + उत्सर्ग =आत्मोत्सर्ग
महा + ऋषि = महर्षि ,
लोक + उक्ति = लोकोक्ति
संधि निरथर्क अक्षरों मिलकर सार्थक शब्द बनती है। संधि में प्रायः शब्द का रूप छोटा हो जाता है। संधि संस्कृत का शब्द है।
संधि के भेद
वर्णों के आधार पर संधि के तीन भेद है-
(1) स्वर संधि ( vowel sandhi ) (2) व्यंजन संधि ( Combination of Consonants ) (3) विसर्ग संधि( Combination Of Visarga )
(1) स्वर संधि (vowel sandhi) :- दो स्वरों से उतपन विकार अथवा रूप -परिवर्तन को स्वर संधि कहते है।
जैसे- विद्या + अर्थी = विद्यार्थी , सूर्य + उदय = सूर्योदय , मुनि + इंद्र = मुनीन्द्र , कवि + ईश्वर = कवीश्वर , महा + ईश = महेश .
इनके पाँच भेद होते है -
(i) दीर्घ संधि
(ii) गुण संधि
(iii) वृद्धि संधि
(iv) यण् संधि
(v) अयादी संधि
(i)दीर्घ स्वर संधि-
नियम -दो सवर्ण स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते है। यदि 'अ'',' 'आ', 'इ', 'ई', 'उ', 'ऊ' और 'ऋ'के बाद वे ही ह्स्व या दीर्घ स्वर आये, तो दोनों मिलकर क्रमशः 'आ', 'ई', 'ऊ', 'ऋ' हो जाते है। जैसे-
अ+अ =आ अत्र+अभाव =अत्राभाव कोण+अर्क =कोणार्क
अ +आ =आ शिव +आलय =शिवालय भोजन +आलय =भोजनालय
आ +अ =आ विद्या +अर्थी =विद्यार्थी लज्जा+अभाव =लज्जाभाव
आ +आ =आ विद्या +आलय =विद्यालय महा+आशय =महाशय
इ +इ =ई गिरि +इन्द्र =गिरीन्द्र
इ +ई =ई गिरि +ईश =गिरीश
ई +इ =ई मही +इन्द्र =महीन्द्र
ई +ई =ई पृथ्वी +ईश =पृथ्वीश
उ +उ = ऊ भानु +उदय =भानूदय
ऊ +उ =ऊ स्वयम्भू +उदय =स्वयम्भूदय
ऋ+ऋ=ऋ पितृ +ऋण =पितृण
दीर्घ स्वर संधि के कुछ उदाहरण
अ/आ+अ/आ = आ अ/आ+अ/आ = आ
दैत्य+अरि = दैत्यारि राम+अवतार = रामावतार
देह+अंत = देहांत अद्य+अवधि = अद्यावधि
उत्तम+अंग = उत्तमांग सूर्य+अस्त = सूर्यास्त
कुश+आसन = कुशासन धर्म+आत्मा = धर्मात्मा
परम+आत्मा = परमात्मा कदा+अपि = कदापि
दीक्षा+अंत = दीक्षांत वर्षा+अंत = वर्षाँत
गदा+आघात = गदाघात आत्मा+ आनंद = आत्मानंद
जन्म+अन्ध = जन्मान्ध श्रद्धा+आलु = श्रद्धालु
सभा+अध्याक्ष = सभाध्यक्ष पुरुष+अर्थ = पुरुषार्थ
हिम+आलय = हिमालय परम+अर्थ = परमार्थ
स्व+अर्थ = स्वार्थ स्व+अधीन = स्वाधीन
पर+अधीन = पराधीन शस्त्र+अस्त्र = शस्त्रास्त्र
परम+अणु = परमाणु वेद+अन्त = वेदान्त
अधिक+अंश = अधिकांश सुषुप्त+अवस्था = सुषुप्तावस्था
अभय+अरण्य = अभयारण्य दया+आनन्द = दयानन्द
श्रदा+आनन्द = श्रद्धानन्द वार्ता+आलाप = वार्तालाप
माया+ आचरण = मायाचरण महा+अमात्य = महामात्य
द्राक्षा+अरिष्ट = द्राक्षारिष्ट मूल्य+अंकन = मूल्यांकन
भय+आनक = भयानक मुक्त+अवली = मुक्तावली
दीप+अवली = दीपावली प्रश्न+अवली = प्रश्नावली
कृपा+आकांक्षी = कृपाकांक्षी विस्मय+आदि = विस्मयादि
सत्य+आग्रह = सत्याग्रह प्राण+आयाम = प्राणायाम
शुभ+आरंभ = शुभारंभ मरण+आसन्न = मरणासन्न
शरण+आगत = शरणागत नील+आकाश = नीलाकाश
भाव+आविष्ट = भावाविष्ट सर्व+अंगीण = सर्वांगीण
अंत्य+अक्षरी = अंत्याक्षरी रेखा+अंश = रेखांश
रेखा+अंकित = रेखांकित परीक्षा+अर्थी = परीक्षार्थी
सीमा+अंकित = सीमांकित माया+अधीन = मायाधीन
परा+अस्त = परास्त निशा+अंत = निशांत
गीत+अंजलि = गीतांजलि प्र+अर्थी = प्रार्थी
प्र+अंगन = प्रांगण काम+अयनी = कामायनी
प्रधान+अध्यापक = प्रधानाध्यापक विभाग+अध्यक्ष = विभागाध्यक्ष
पुस्तक+आलय = पुस्तकालय चर+अचर = चराचर
इ/ई+इ/ई = ई इ/ई+इ/ई = ई
रवि+इन्द्र = रवीन्द्र मुनि+इन्द्र = मुनीन्द्र
कवि+इन्द्र = कवीन्द्र परि+ईक्षक = परीक्षक
अभि+इष्ट = अभीष्ट शचि+इन्द्र = शचीन्द्र
यति+इन्द्र = यतीन्द्र पृथ्वी+ईश्वर = पृथ्वीश्वर
श्री+ईश = श्रीश नदी+ईश = नदीश
रजनी+ईश = रजनीश नारी+ईश्वर = नारीश्वर
हरि+ईश = हरीश कवि+ईश = कवीश
कपि+ईश = कपीश मुनि+ईश्वर = मुनीश्वर
प्रति+ईक्षा = प्रतीक्षा अभि+ईप्सा = अभीप्सा
मही+इन्द्र = महीन्द्र नारी+इच्छा = नारीच्छा
नारी+इन्द्र = नारीन्द्र नदी+इन्द्र = नदीन्द्र
सती+ईश = सतीश परि+ईक्षा = परीक्षा
अधि+ईक्षक = अधीक्षक वि+ईक्षण = वीक्षण
फण+इन्द्र = फणीन्द्र प्रति+इत = प्रतीत
परि+ईक्षित = परीक्षित
उ/ऊ+उ/ऊ = ऊ उ/ऊ+उ/ऊ = ऊ
लघु+ऊर्मि = लघूर्मि गुरु+उपदेश = गुरूपदेश
सिँधु+ऊर्मि = सिँधूर्मि सु+उक्ति = सूक्ति
लघु+उत्तर = लघूत्तर मंजु+उषा = मंजूषा
साधु+उपदेश = साधूपदेश लघु+उत्तम = लघूत्तम
भू+ऊर्ध्व = भूर्ध्व वधू+उर्मि = वधूर्मि
वधू+उत्सव = वधूत्सव भू+उपरि = भूपरि
वधू+उक्ति = वधूक्ति अनु+उदित = अनूदित
सरयू+ऊर्मि = सरयूर्मि
ऋ/ॠ+ऋ/ॠ = ॠ
मातृ+ऋण = मात्ॠण भ्रातृ+ऋण = भ्रात्ॠण
(ii) गुण स्वर संधि
नियम- यदि 'अ' या 'आ' के बाद 'इ' या 'ई ' 'उ' या 'ऊ ' और 'ऋ' आये ,तो दोनों मिलकर क्रमशः 'ए', 'ओ' और 'अर' हो जाते है। जैसे-
अ +इ =ए देव +इन्द्र=देवन्द्र
अ +ई =ए देव +ईश =देवेश
आ +इ =ए महा +इन्द्र =महेन्द्र
अ +उ =ओ चन्द्र +उदय =चन्द्रोदय
अ+ऊ =ओ समुद्र +ऊर्मि =समुद्रोर्मि
आ +उ=ओ महा +उत्स्व =महोत्स्व
आ +ऊ = ओ गंगा+ऊर्मि =गंगोर्मि
अ +ऋ =अर् देव + ऋषि =देवर्षि
आ+ऋ =अर् महा+ऋषि =महर्षि
गुण स्वर संधि के कुछ उदाहरण
अ/आ+इ/ई = ए अ/आ+इ/ई = ए
भारत+इन्द्र = भारतेन्द्र नर+इन्द्र = नरेन्द्र
सुर+इन्द्र = सुरेन्द्र वीर+इन्द्र = वीरेन्द्र
स्व+इच्छा = स्वेच्छा न+इति = नेति
अंत्य+इष्टि = अंत्येष्टि रमा+इन्द्र = रमेन्द्र
राजा+इन्द्र = राजेन्द्र यथा+इष्ट = यथेष्ट
रसना+इन्द्रिय = रसनेन्द्रिय सुधा+इन्दु = सुधेन्दु
सोम+ईश = सोमेश महा+ईश = महेश
नर+ईश = नरेश रमा+ईश = रमेश
परम+ईश्वर = परमेश्वर राजा+ईश = राजेश
गण+ईश = गणेश राका+ईश = राकेश
अंक+ईक्षण = अंकेक्षण लंका+ईश = लंकेश
महा+ईश्वर = महेश्वर प्र+ईक्षक = प्रेक्षक
उप+ईक्षा = उपेक्षा
अ/आ+उ/ऊ = ओ अ/आ+उ/ऊ = ओ
सूर्य+उदय = सूर्योदय पूर्व+उदय = पूर्वोदय
पर+उपकार = परोपकार लोक+उक्ति = लोकोक्ति
वीर+उचित = वीरोचित आद्य+उपान्त = आद्योपान्त
नव+ऊढ़ा = नवोढ़ा जल+ऊर्मि = जलोर्मि
महा+उदधि = महोदधि गंगा+उदक = गंगोदक
यथा+उचित = यथोचित कथा+उपकथन = कथोपकथन
स्वातंत्र्य+उत्तर = स्वातंत्र्योत्तर महा+ऊर्मि = महोर्मि
आत्म+उत्सर्ग = आत्मोत्सर्ग महा+उदय = महोदय
करुणा+उत्पादक = करुणोत्पादक विद्या+उपार्जन = विद्योपार्जन
प्र+ऊढ़ = प्रौढ़ अक्ष+हिनी = अक्षौहिनी
अ/आ+ऋ = अर् अ/आ+ऋ = अर्
ब्रह्म+ऋषि = ब्रह्मर्षि महा+ऋद्धि = महर्द्धि
राज+ऋषि = राजर्षि सप्त+ऋषि = सप्तर्षि
सदा+ऋतु = सदर्तु शिशिर+ऋतु = शिशिरर्तु
महा+ऋण = महर्ण
(ii) वृद्धि स्वर संधि
नियम -यदि 'अ' या 'आ' के बाद 'ए' या 'ऐ'आये, तो दोनों के स्थान में 'ऐ' तथा 'ओ' या 'औ' आये, तो दोनों के स्थान में 'औ' हो जाता है। जैसे-
अ +ए =ऐ एक +एक =एकैक
अ +ऐ =ऐ नव +ऐश्र्वर्य =नवैश्र्वर्य
आ +ए=ऐ महा +ऐश्र्वर्य=महैश्र्वर्य सदा +एव =सदैव
अ +ओ =औ परम +ओजस्वी =परमौजस्वी वन+ओषधि =वनौषधि
अ +औ =औ परम +औषध =परमौषध
आ +ओ =औ महा +ओजस्वी =महौजस्वी
आ +औ =औ महा +औषध =महौषध
वृद्धि स्वर संधि के कुछ उदाहरण
अ/आ+ए/ऐ = ऐ अ/आ+ए/ऐ = ऐ
मत+ऐक्य = मतैक्य स्व+ऐच्छिक = स्वैच्छिक
लोक+एषणा = लोकैषणा पुत्र+ऐषणा = पुत्रैषणा
वसुधा+ऐव = वसुधैव तथा+एव = तथैव
महा+ऐन्द्रजालिक = महैन्द्रजालिक हित+एषी = हितैषी
वित्त+एषणा = वित्तैषणा
अ/आ+ओ/औ = औ अ/आ+ओ/औ = औ
परम+ओज = परमौज महा+औघ = महौघ
महा+औदार्य = महौदार्य परम+औदार्य = परमौदार्य
जल+ओध = जलौध महा+औषधि = महौषधि
प्र+औद्योगिकी = प्रौद्योगिकी दंत+ओष्ठ = दंतोष्ठ (अपवाद)
(iv) यण् स्वर संधि
नियम- यदि 'इ', 'ई', 'उ', 'ऊ' और 'ऋ'के बाद कोई भित्र स्वर आये, तो इ-ई का ' य् ', 'उ-ऊ' का 'व्' और 'ऋ' का 'र्' हो जाता हैं।
यहाँ यह ध्यातव्य है कि इ/ई या उ/ऊ स्वर तो 'य्' या 'व्' मेँ बदल जाते हैँ किँतु जिस व्यंजन के ये स्वर लगे होते हैँ, वह संधि होने पर स्वर–रहित हो जाता है। जैसे– अभि+अर्थी = अभ्यार्थी, तनु+अंगी = तन्वंगी। यहाँ अभ्यर्थी मेँ ‘य्’ के पहले 'भ्' तथा तन्वंगी मेँ ‘व्’ के पहले 'न्' स्वर–रहित हैँ। प्रायः य्, व्, र् से पहले स्वर–रहित व्यंजन का होना यण् संधि की पहचान है।
जैसे-
इ +अ =य यदि +अपि =यद्यपि
इ +आ = या अति +आवश्यक =अत्यावश्यक
इ +उ =यु अति +उत्तम =अत्युत्तम
इ + ऊ = यू अति +उष्म =अत्यूष्म
उ +अ =व अनु +आय =अन्वय
उ +आ =वा मधु +आलय =मध्वालय
उ + ओ = वो गुरु +ओदन= गुवौंदन
उ +औ =वौ गुरु +औदार्य =गुवौंदार्य
ऋ+आ =त्रा पितृ +आदेश=पित्रादेश
यण् स्वर संधि के कुछ उदाहरण
इ/ई+अ = य इ/ई+अ = य
परि+अटन = पर्यटन नि+अस्त = न्यस्त
वि+अस्त = व्यस्त वि+अय = व्यय
वि+अग्र = व्यग्र परि+अंक = पर्यँक
परि+अवेक्षक = पर्यवेक्षक वि+अष्टि = व्यष्टि
वि+अंजन = व्यंजन वि+अवहार = व्यवहार
वि+अभिचार = व्यभिचार वि+अक्ति = व्यक्ति
वि+अवस्था = व्यवस्था वि+अवसाय = व्यवसाय
प्रति+अय = प्रत्यय नदी+अर्पण = नद्यर्पण
अभि+अर्थी = अभ्यर्थी परि+अंत = पर्यँत
अभि+उदय = अभ्युदय देवी+अर्पण = देव्यर्पण
प्रति+अर्पण = प्रत्यर्पण प्रति+अक्ष = प्रत्यक्ष
वि+अंग्य = व्यंग्य
इ/ई+आ = या इ/ई+आ = या
वि+आप्त = व्याप्त अधि+आय = अध्याय
इति+आदि = इत्यादि परि+आवरण = पर्यावरण
अभि+आगत = अभ्यागत वि+आस = व्यास
वि+आयाम = व्यायाम अधि+आदेश = अध्यादेश
वि+आख्यान = व्याख्यान प्रति+आशी = प्रत्याशी
अधि+आपक = अध्यापक वि+आकुल = व्याकुल
अधि+आत्म = अध्यात्म प्रति+आवर्तन = प्रत्यावर्तन
प्रति+आशित = प्रत्याशित प्रति+आभूति = प्रत्याभूति
प्रति+आरोपण = प्रत्यारोपण वि+आवृत्त = व्यावृत्त
वि+आधि = व्याधि वि+आहत = व्याहत
प्रति+आहार = प्रत्याहार अभि+आस = अभ्यास
सखी+आगमन = सख्यागमन मही+आधार = मह्याधार
इ/ई+उ/ऊ = यु/यू इ/ई+उ/ऊ = यु/यू
परि+उषण = पर्युषण नारी+उचित = नार्युचित
उपरि+उक्त = उपर्युक्त स्त्री+उपयोगी = स्त्र्युपयोगी
अभि+उदय = अभ्युदय अति+उक्ति = अत्युक्ति
प्रति+उत्तर = प्रत्युत्तर अभि+उत्थान = अभ्युत्थान
आदि+उपांत = आद्युपांत स्त्री+उचित = स्त्र्युचित
प्रति+उत्पन्न = प्रत्युत्पन्न प्रति+उपकार = प्रत्युपकार
वि+उत्पत्ति = व्युत्पत्ति वि+उपदेश = व्युपदेश
नि+ऊन = न्यून प्रति+ऊह = प्रत्यूह
वि+ऊह = व्यूह अभि+ऊह = अभ्यूह
इ/ई+ए/ओ/औ = ये/यो/यौ इ/ई+ए/ओ/औ = ये/यो/यौ
प्रति+एक = प्रत्येक वि+ओम = व्योम
वाणी+औचित्य = वाण्यौचित्य
उ/ऊ+अ/आ = व/वा उ/ऊ+अ/आ = व/वा
तनु+अंगी = तन्वंगी अनु+अय = अन्वय
मधु+अरि = मध्वरि सु+अल्प = स्वल्प
समनु+अय = समन्वय सु+अस्ति = स्वस्ति
परमाणु+अस्त्र = परमाण्वस्त्र सु+आगत = स्वागत
साधु+आचार = साध्वाचार गुरु+आदेश = गुर्वादेश
मधु+आचार्य = मध्वाचार्य वधू+आगमन = वध्वागमन
ऋतु+आगमन = ऋत्वागमन सु+आभास = स्वाभास
सु+आगम = स्वागम
उ/ऊ+इ/ई/ए = वि/वी/वे उ/ऊ+इ/ई/ए = वि/वी/वे
अनु+इति = अन्विति धातु+इक = धात्विक
अनु+इष्ट = अन्विष्ट पू+इत्र = पवित्र
अनु+ईक्षा = अन्वीक्षा अनु+ईक्षण = अन्वीक्षण
तनु+ई = तन्वी धातु+ईय = धात्वीय
अनु+एषण = अन्वेषण अनु+एषक = अन्वेषक
अनु+एक्षक = अन्वेक्षक
ऋ+अ/आ/इ/उ = र/रा/रि/रु ऋ+अ/आ/इ/उ = र/रा/रि/रु
मातृ+अर्थ = मात्रर्थ पितृ+अनुमति = पित्रनुमति
मातृ+आनन्द = मात्रानन्द पितृ+आज्ञा = पित्राज्ञा
मातृ+आज्ञा = मात्राज्ञा पितृ+उपदेश = पित्रुपदेश
मातृ+आदेश = मात्रादेश मातृ+इच्छा = मात्रिच्छा
पितृ+इच्छा = पित्रिच्छा मातृ+उपदेश = मात्रुपदेश
(v) अयादि स्वर संधि
नियम- यदि 'ए', 'ऐ' 'ओ', 'औ' के बाद कोई भिन्न स्वर आए, तो (क) 'ए' का 'अय्', (ख ) 'ऐ' का 'आय्', (ग) 'ओ' का 'अव्' और (घ) 'औ' का 'आव' हो जाता है। जैसे-
(क) ने +अन =नयन चे +अन =चयन
शे +अन =शयन श्रो+अन =श्रवन (पद मे 'र' होने के कारण 'न' का 'ण' हो गया)
(ख) नै +अक =नायक गै +अक =गायक
(ग) पो +अन =पवन
(घ) श्रौ+अन =श्रावण पौ +अन =पावन पौ +अक =पावक श्रौ+अन =श्रावण ('श्रावण' के अनुसार 'न' का 'ण')
अयादि स्वर संधि के कुछ उदाहरण
ए/ऐ+अ/इ = अय/आय/आयि ए/ऐ+अ/इ = अय/आय/आयि
संचे+अ = संचय चै+अ = चाय
गै+अक = गायक गै+अन् = गायन
नै+अक = नायक दै+अक = दायक
शै+अर = शायर विधै+अक = विधायक
विनै+अक = विनायक नै+इका = नायिका
गै+इका = गायिका दै+इनी = दायिनी
विधै+इका = विधायिका
ओ/औ+अ = अव/आव ओ/औ+अ = अव/आव
भो+अन् = भवन स्रौ+अ = स्राव
भो+अति = भवति हो+अन् = हवन
पौ+अन् = पावन धौ+अक = धावक
प्रस्तौ+अ = प्रस्ताव शौ+अक = शावक
भौ+अ = भाव रौ+अन = रावण
गव+अक्ष = गवाक्ष (अपवाद)
ओ/औ+इ/ई/उ = अवि/अवी/आवु ओ/औ+इ/ई/उ = अवि/अवी/आवु
रो+इ = रवि भो+इष्य = भविष्य
गौ+ईश = गवीश नौ+इक = नाविक
प्रभौ+इति = प्रभावित प्रस्तौ+इत = प्रस्तावित
भौ+उक = भावुक
(2)व्यंजन संधि ( Combination of Consonants ) :- व्यंजन से स्वर अथवा व्यंजन के मेल से उत्पत्र विकार को व्यंजन संधि कहते है।
कुछ नियम इस प्रकार हैं-
(1) यदि 'म्' के बाद कोई व्यंजन वर्ण आये तो 'म्' का अनुस्वार हो जाता है या वह बादवाले वर्ग के पंचम वर्ण में भी बदल सकता है। जैसे- अहम् +कार =अहंकार
पम्+चम =पंचम सम् +गम =संगम
(2) यदि 'त्-द्' के बाद 'ल' रहे तो 'त्-द्' 'ल्' में बदल जाते है और 'न्' के बाद 'ल' रहे तो 'न्' का अनुनासिक के बाद 'ल्' हो जाता है। जैसे- उत्+लास =उल्लास
महान् +लाभ =महांल्लाभ
(3) यदि 'क्', 'च्', 'ट्', 'त्', 'प', के बाद किसी वर्ग का तृतीय या चतुर्थ वर्ण आये, या, य, र, ल, व, या कोई स्वर आये, तो 'क्', 'च्', 'ट्', 'त्', 'प',के स्थान में अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है। जैसे-
दिक्+गज =दिग्गज सत्+वाणी =सदवाणी
अच+अन्त =अजन्त षट +दर्शन =षड्दर्शन
वाक् +जाल =वगजाल अप् +इन्धन =अबिन्धन
तत् +रूप =तद्रूप जगत् +आनन्द =जगदानन्द
दिक्+भ्रम =दिगभ्रम
कुछ और उदाहरण
'क्' का 'ग्' होना
दिक्+अम्बर = दिगम्बर दिक्+दर्शन = दिग्दर्शन
वाक्+जाल = वाग्जाल वाक्+ईश = वागीश
दिक्+अंत = दिगंत दिक्+गज = दिग्गज
ऋक्+वेद = ऋग्वेद दृक्+अंचल = दृगंचल
वाक्+ईश्वरी = वागीश्वरी प्राक्+ऐतिहासिक = प्रागैतिहासिक
दिक्+गयंद = दिग्गयंद वाक्+जड़ता = वाग्जड़ता
सम्यक्+ज्ञान = सम्यग्ज्ञान वाक्+दान = वाग्दान
दिक्+भ्रम = दिग्भ्रम वाक्+दत्ता = वाग्दत्ता
दिक्+वधू = दिग्वधू दिक्+हस्ती = दिग्हस्ती
वाक्+व्यापार = वाग्व्यापार वाक्+हरि = वाग्हरि
‘च्’ का ‘ज्’
अच्+आदि = अजादि णिच्+अंत = णिजंत
‘ट्’ का ‘ड्’
षट्+आनन = षडानन षट्+रिपु = षड्रिपु
षट्+अक्षर = षडक्षर षट्+अभिज्ञ = षडभिज्ञ
षट्+गुण = षड्गुण षट्+भुजा = षड्भुजा
षट्+यंत्र = षड्यंत्र षट्+रस = षड्रस
षट्+राग = षड्राग
‘त्’ का ‘द्’
सत्+विचार = सद्विचार जगत्+अम्बा = जगदम्बा
सत्+धर्म = सद्धर्म तत्+भव = तद्भव
उत्+घाटन = उद्घाटन सत्+आशय = सदाशय
जगत्+आत्मा = जगदात्मा सत्+आचार = सदाचार
जगत्+ईश = जगदीश तत्+अनुसार = तदनुसार
सत्+उपयोग = सदुपयोग भगवत्+गीता = भगवद्गीता
सत्+गति = सद्गति उत्+गम = उद्गम
उत्+आहरण = उदाहरण
इस नियम का अपवाद भी है जो इस प्रकार है–
त्+ड/ढ = त् के स्थान पर ड् त्+ज/झ = त् के स्थान पर ज् त्+ल् = त् के स्थान पर ल्
जैसे–
उत्+डयन = उड्डयन सत्+जन = सज्जन
उत्+लंघन = उल्लंघन उत्+लेख = उल्लेख
तत्+जन्य = तज्जन्य उत्+ज्वल = उज्ज्वल
विपत्+जाल = विपत्जाल उत्+लास = उल्लास
तत्+लीन = तल्लीन जगत्+जननी = जगज्जननी
(4) यदि 'क्', 'च्', 'ट्', 'त्', 'प', के बाद 'न' या 'म' आये, तो क्, च्, ट्, त्, प, अपने वर्ग के पंचम वर्ण में बदल जाते हैं।
जैसे- प्रथम/तृतीय वर्ण+पंचम वर्ण = पंचम वर्ण
वाक्+मय =वाड्मय अप् +मय =अम्मय
षट्+मार्ग =षणमार्ग जगत् +नाथ= जगन्नाथ
उत् +नति =उन्नति षट् +मास =षण्मास
कुछ और उदाहरण
दिक्+नाग = दिङ्नाग सत्+नारी = सन्नारी
सत्+मार्ग = सन्मार्ग चित्+मय = चिन्मय
सत्+मति = सन्मति उत्+नायक = उन्नायक
उत्+मूलन = उन्मूलन सत्+मान = सन्मान
उत्+माद = उन्माद उत्+नत = उन्नत
वाक्+निपुण = वाङ्निपुण जगत्+माता = जगन्माता
उत्+मत्त = उन्मत्त उत्+मेष = उन्मेष
तत्+नाम = तन्नाम उत्+नयन = उन्नयन
षट्+मुख = षण्मुख उत्+मुख = उन्मुख
श्रीमत्+नारायण = श्रीमन्नारायण षट्+मूर्ति = षण्मूर्ति
उत्+मोचन = उन्मोचन भवत्+निष्ठ = भवन्निष्ठ
तत्+मय = तन्मय सत्+नियम = सन्नियम
दिक्+नाथ = दिङ्नाथ वृहत्+माला = वृहन्माला
वृहत्+नला = वृहन्नला
(5)सकार और तवर्ग का शकार और चवर्ग के योग में शकार और चवर्ग तथा षकार और टवर्ग के योग में षकार और टवर्ग हो जाता है।
दूसरे शब्दों में- ‘त्’ या ‘द्’ के बाद च या छ हो तो ‘त्/द्’ के स्थान पर ‘च्’, ‘ज्’ या ‘झ’ हो तो ‘ज्’, ‘ट्’ या ‘ठ्’ हो तो ‘ट्’, ‘ड्’ या ‘ढ’ हो तो ‘ड्’ और ‘ल’ हो तो ‘ल्’ हो जाता है।
जैसे-
स्+श रामस् +शेते =रामश्शेते त्+च सत् +चित् =सच्चित्
त्+छ महत् +छात्र =महच्छत्र त् +ण महत् +णकार =महण्णकार
ष्+त द्रष् +ता =द्रष्टा त्+ट बृहत् +टिट्टिभ=बृहटिट्टिभ
कुछ और उदाहरण
त्+च/छ = च्च/च्छ
सत्+छात्र = सच्छात्र सत्+चरित्र = सच्चरित्र
समुत्+चय = समुच्चय उत्+चरित = उच्चरित
जगत्+छाया = जगच्छाया उत्+छेद = उच्छेद
उत्+चाटन = उच्चाटन उत्+चारण = उच्चारण
शरत्+चन्द्र = शरच्चन्द्र उत्+छिन = उच्छिन
सत्+चिदानन्द = सच्चिदानन्द उत्+छादन = उच्छादन
त्/द्+ज्/झ् = ज्ज/ज्झ
सत्+जन = सज्जन तत्+जन्य = तज्जन्य
उत्+ज्वल = उज्ज्वल जगत्+जननी = जगज्जननी
त्+ट/ठ = ट्ट/ट्ठ तत्+टीका = तट्टीका
वृहत्+टीका = वृहट्टीका
त्+ड/ढ = ड्ड/ड्ढ
उत्+डयन = उड्डयन जलत्+डमरु = जलड्डमरु
भवत्+डमरु = भवड्डमरु महत्+ढाल = महड्ढाल
त्+ल = ल्ल
उत्+लेख = उल्लेख उत्+लास = उल्लास
तत्+लीन = तल्लीन उत्+लंघन = उल्लंघन
(6)यदि वर्गों के अन्तिम वर्णों को छोड़ शेष वर्णों के बाद 'ह' आये, तो 'ह' पूर्ववर्ण के वर्ग का चतुर्थ वर्ण हो जाता है और 'ह्' के पूर्ववाला वर्ण अपने वर्ग का तृतीय वर्ण।
दूसरे शब्दों में- यदि ‘त्’ या ‘द्’ के बाद ‘ह’ आये तो उनके स्थान पर ‘द्ध’ हो जाता है।
जैसे-
उत्+हार = उद्धार तत्+हित = तद्धित
उत्+हरण = उद्धरण उत्+हत = उद्धत
पत्+हति = पद्धति पत्+हरि = पद्धरि
उपर्युक्त संधियाँ का दूसरा रूप इस प्रकार प्रचलित है–
उद्+हार = उद्धार तद्+हित = तद्धित
उद्+हरण = उद्धरण उद्+हत = उद्धत
पद्+हति = पद्धति
ये संधियाँ दोनोँ प्रकार से मान्य हैँ।
हिन्दी व्याकरण
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