पत्र-लेखन (Letter-writing)
दूर रहने वाले अपने सबन्धियों अथवा मित्रों की कुशलता जानने के लिए तथा अपनी कुशलता का समाचार देने के लिए पत्र एक साधन है। इसके अतिरिक्त्त अन्य कार्यों के लिए भी पत्र लिखे जाते है।
पत्र का महत्व
As keys do open chests.
So letters open breasts .
उक्त अँगरेजी विद्वान् के कथन का आशय यह है कि जिस प्रकार कुंजियाँ बक्स खोलती हैं, उसी प्रकार पत्र (letters) ह्रदय के विभित्र पटलों को खोलते हैं। मनुष्य की भावनाओं की स्वाभाविक अभिव्यक्ति पत्राचार से भी होती हैं। निश्छल भावों और विचारों का आदान-प्रदान पत्रों द्वारा ही सम्भव है। पत्रलेखन दो व्यक्तियों के बीच होता है। इसके द्वारा दो हृदयों का सम्बन्ध दृढ़ होता है। अतः पत्राचार ही एक ऐसा साधन है, जो दूरस्थ व्यक्तियों को भावना की एक संगमभूमि पर ला खड़ा करता है और दोनों में आत्मीय सम्बन्ध स्थापित करता है। पति-पत्नी, भाई-बहन, पिता-पुत्र- इस प्रकार के हजारों सम्बन्धों की नींव यह सुदृढ़ करता है। व्यावहारिक जीवन में यह वह सेतु है, जिससे मानवीय सम्बन्धों की परस्परता सिद्ध होती है। अतएव पत्राचार का बड़ा महत्व है।
पत्रलेखन एक कला है
आधुनिक युग में पत्रलेखन को 'कला' की संज्ञा दी गयी है। पत्रों में आज कलात्मक अभिव्यक्तियाँ हो रही है। साहित्य में भी इनका उपयोग होने लगा है। जिस पत्र में जितनी स्वाभाविकता होगी, वह उतना ही प्रभावकारी होगा। एक अच्छे पत्र के लिए कलात्मक सौन्दर्यबोध और अन्तरंग भावनाओं का अभिव्यंजन आवश्यक है। एक पत्र में उसके लेखक की भावनाएँ ही व्यक्त नहीं होती, बल्कि उसका व्यक्तित्व (personality) भी उभरता है। इससे लेखक के चरित्र, दृष्टिकोण, संस्कार, मानसिक स्थिति, आचरण इत्यादि सभी एक साथ झलकते हैं। अतः पत्रलेखन एक प्रकार की कलात्मक अभिव्यक्ति है। लेकिन, इस प्रकार की अभिव्यक्ति व्यवसायिक पत्रों की अपेक्षा सामाजिक तथा साहित्यिक पत्रों में अधिक होती है।
अच्छे पत्र की विशेषताएँ
एक अच्छे पत्र की पाँच विशेषताएँ है-
(1) सरल भाषा शैली (2) विचारों की सुस्पष्ठता (3) संक्षेप और सम्पूर्णता
(1) प्रभावान्विति (5) बाहरी सजावट
(1) सरल भाषाशैली :- पत्र की भाषा साधारणतः सरल और बोलचाल की होनी चाहिए। शब्दों के प्रयोग में सावधानी रखनी चाहिए। ये उपयुक्त, सटीक, सरल और मधुर हों। सारी बात सीधे-सादे ढंग से स्पष्ट और प्रत्यक्ष लिखनी चाहिए। बातों को घुमा-फिराकर लिखना उचित नहीं।
(2)विचारों की सुस्पष्ठता :-- पत्र में लेखक के विचार सुस्पष्ट और सुलझे होने चाहिए। कहीं भी पाण्डित्य-प्रदर्शन की चेष्टा नहीं होनी चाहिए। बनावटीपन नहीं होना चाहिए। दिमाग पर बल देनेवाली बातें नहीं लिखी जानी चाहिए।
(3)संक्षेप और सम्पूर्णता :-- पत्र अधिक लम्बा नहीं होना चाहिए। वह अपने में सम्पूर्ण और संक्षिप्त हो। उसमें अतिशयोक्ति, वाग्जाल और विस्तृत विवरण के लिए स्थान नहीं है। इसके अतिरिक्त, पत्र में एक ही बात को बार-बार दुहराना एक दोष है। पत्र में मुख्य बातें आरम्भ में लिखी जानी चाहिए। सारी बातें एक क्रम में लिखनी चाहिए। इसमें कोई भी आवश्यक तथ्य छूटने न पाय। पत्र अपने में सम्पूर्ण हो, अधूरा नहीं। पत्रलेखन का सारा आशय पाठक के दिमाग पर पूरी तरह बैठ जाना चाहिए। पाठक को किसी प्रकार की लझन में छोड़ना ठीक नहीं।
(4)प्रभावान्वित :-- पत्र का पूरा असर पढ़नेवाले पर पड़ना चाहिए। आरम्भ और अन्त में नम्रता और सौहार्द के भाव होने चाहिए।
(5)बाहरी सजावट :-- पत्र की बाहरी सजावट से हमारा तात्पर्य यह है कि
(i) उसका कागज सम्भवतः अच्छा-से-अच्छा होना चाहिए;
(ii) लिखावट सुन्दर, साफ और पुष्ट हो;
(iii) विरामादि चिह्नों का प्रयोग यथास्थान किया जाय;
(iv) शीर्षक, तिथि, अभिवादन, अनुच्छेद और अन्त अपने-अपने स्थान पर क्रमानुसार होने चाहिए;
(v) पत्र की पंक्तियाँ सटाकर न लिखी जायँ और
(vi) विषय-वस्तु के अनुपात से पत्र का कागज लम्बा-चौड़ा होना चाहिए।
पत्रों के प्रकार
(1)सामाजिक पत्र (Social letters) (2)व्यापारिक पत्र (Commercial letters) (3)सरकारी पत्र (Official letters)
(1 )सामाजिक पत्र (Social letters) :- ये पत्र अपने मित्रों,सगे-सम्बन्धियों एवं परिचितों को लिखे जाते है। इसके अतिरिक्त सुख-दुःख, शोक, विदाई तथा निमन्त्रण आदि के लिए जो पत्र लिखे जाते हैं, वे भी 'सामाजिक पत्र' कहलाते हैं।
पत्रलेखन सभ्य समाज की एक कलात्मक देन है। मनुष्य चूँकि सामाजिक प्राणी है इसलिए वह दूसरों के साथ अपना सम्बन्ध किसी-न-किसी माध्यम से बनाये रखना चाहता है। मिलते-जुलते रहने पर पत्रलेखन की तो आवश्यकता नहीं होती, पर एक-दूसरे से दूर रहने पर एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के पास पत्र लिखता है। सरकारी पत्रों की अपेक्षा सामाजिक पत्रों में कलात्मकता अधिक रहती है; क्योंकि इनमें मनुष्य के ह्रदय के सहज उद्गार व्यक्त होते है। इन पत्रों को पढ़कर हम किसी भी व्यक्ति के अच्छे या बुरे स्वभाव या मनोवृति का परिचय आसानी से पा सकते है।
(2)व्यापारिक पत्र (Commercial letters) :-- व्यापार में सामान खरीदने व बेचने अथवा रुपयों के लेन-देन के लिए जो पत्र लिखे जाते हैं, उन्हें 'व्यापारिक पत्र' कहते हैं।
(3)सरकारी पत्र (Official letters) :-- जिन पत्रों में निवेदन अथवा प्रार्थना की जाती है, वे 'प्रार्थना-पत्र' कहलाते हैं। इस सम्बन्ध में जो पत्र सरकारी काम-काज के लिए लिखे जाते हैं, वे ' सरकारी पत्र' कहलाते हैं।
ये सरकारी अफसरों या अधिकारियों, स्कूल और कॉलेज के प्रधानाध्यापकों और प्राचार्यों को लिखे जाते हैं।
एक अच्छे सामाजिक पत्र में सौजन्य, सहृदयता और शिष्टता का होना आवश्यक है। तभी इस प्रकार के पत्रों का अभीष्ट प्रभाव हृदय पर पड़ता है।
इसके कुछ औपचारिक नियमों का निर्वाह करना चाहिए।
(i) पहली बात यह कि पत्र के ऊपर दाहिनी ओर पत्रप्रेषक का पता और दिनांक होना चाहिए।
(ii) दूसरी बात यह कि पत्र जिस व्यक्ति को लिखा जा रहा हो- जिसे 'प्रेषिती' भी कहते हैं- उसके प्रति, सम्बन्ध के अनुसार ही समुचित अभिवादन या सम्बोधन के शब्द लिखने चाहिए।
(iv) यह पत्रप्रेषक और प्रेषिती के सम्बन्ध पर निर्भर है कि अभिवादन का प्रयोग कहाँ, किसके लिए, किस तरह किया जाय।
(v) अँगरेजी में प्रायः छोटे-बड़े सबके लिए 'My dear' का प्रयोग होता है, किन्तु हिन्दी में ऐसा नहीं होता।
(vi) पिता को पत्र लिखते समय हम प्रायः 'पूज्य पिताजी' लिखते हैं।
(vii) शिक्षक अथवा गुरुजन को पत्र लिखते समय उनके प्रति आदरभाव सूचित करने के लिए 'आदरणीय' या 'श्रद्धेय'-जैसे शब्दों का व्यवहार करते हैं।
(viii) यह अपने-अपने देश के शिष्टाचार और संस्कृति के अनुसार चलता है।
(ix) अपने से छोटे के लिए हम प्रायः 'प्रियवर', 'चिरंजीव'-जैसे शब्दों का उपयोग करते हैं।
इस प्रकार, पत्र में वक्तव्य के पूर्व (1) सम्बोधन, (2)अभिवादन औरवक्तव्य के अन्त में (3) अभिनिवेदन का, सम्बन्ध के आधार अलग-अलग ढंग होता है। इनके रूप इस प्रकार हैं-
सम्बन्ध सम्बोधन अभिवादन अभिनिवेदन
पिता-पुत्र प्रिय अनिल शुभाशीर्वाद तुम्हारा शुभाकांक्षी
पुत्र-पिता पूज्य पिताजी सादर प्रणाम आपका स्त्रेहाकांक्षी
माता-पुत्र प्रिय पुत्र शुभाशीष तुम्हारी शुभाकांक्षिणी
पुत्र-माता पूजनीया माताजी सादर प्रणाम आपका स्त्रेहाकांक्षी
मित्र-मित्र प्रिय भाई या मित्र या प्रिय रमेश आदि प्रसत्र रहो आदि तुम्हारा .......
गुरु-शिष्य प्रिय कुमार या चिo कुमार शुभाशीर्वाद तुम्हारा सत्यैषी या शुभचिन्तक
शिष्य-गुरु श्रद्धेय या आदरणीय गुरुदेव सादर प्रणाम आपका शिष्य
दो अपरिचित व्यक्ति प्रिय महोदय सप्रेम नमस्कार भवदीय
अग्रज-अनुज प्रिय सुरेश शुभाशीर्वाद तुम्हारा शुभाकांक्षी
अनुज-अग्रज पूज्य भैया या भ्राता जी प्रणाम आपका स्त्रेहाकांक्षी
स्त्री-पुरुष (अनजान) प्रिय महाशय ....... भवदीया
पुरुष-स्त्री (अनजान) प्रिय महाशया ....... भवदीय
पुरुष-स्त्री (परिचित) कुमारी कमलाजी ....... भवदीय
स्त्री-पुरुष (परिचित) भाई कमलजी ....... भवदीया
पति-पत्नी प्रिये या प्राणाधिके शुभाशीर्वाद तुम्हारा सत्यैषी
पत्नी-पति मेरे सर्वस्व,प्राणाधान सादर प्रणाम आपकी स्त्रेहाकांक्षिणी
छात्र-प्रधानाध्यापक मान्य महोदय प्रणाम आपका आज्ञाकारी छात्र
पत्र लिखने के लिए कुछ आवश्यक बातें
(1) जिसके लिए पत्र लिखा जाये, उसके लिए पद के अनुसार शिष्टाचारपूर्ण शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
(2) पत्र में हृदय के भाव स्पष्ट रूप से व्यक्त होने चाहिए।
(3) पत्र की भाषा सरल एवं शिष्ट होनी चाहिए।
(4) पत्र में बेकार की बातें नहीं लिखनी चाहिए। उसमें केवल मुख्य विषय के बारे में ही लिखना चाहिए।
(5) पत्र में आशय व्यक्त करने के लिए छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए।
(6) पत्र लिखने के पश्चात उसे एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए।
(1)सामाजिक पत्रों के नमूने
(i) रुपये की सहायता के लिए मित्र को लिखा गया पत्र-
............................................................................. जॉर्ज टाउन,
............................................................................. इलाहाबाद
............................................................................. 12-11-1992
प्रिय मित्र,
नमस्कार।
मैंने अपने पिताजी को 4 नवंबर तक मासिक खर्च भेज देने को लिखा था, किंतु वह मुझे अभी तक नहीं मिला है। ऐसा लगता है कि पिताजी घर पर नहीं है, अवश्य कहीं दौरे पर गये हुए हैं। संभव है, मेरे रुपये एक सप्ताह बाद आयें।
अतः अनुरोध है कि काम चलाने के लिए कम-से-कम दस रुपये मुझे भेजकर तुम मेरी सहायता करो। मेरे रुपये ज्यों ही आ जायेंगे, तुम्हें लौटा दूँगा। आशा है, इस मौके पर तुम मेरी अवश्य ही सहायता करोगे। तुम्हारे पत्र की प्रतीक्षा में हूँ।
भवदीय,
अनिल कुमार
पता-
श्री सुरेश गणपति,
रायगढ़, वाराणसी
(ii) परीक्षा की तैयारी के संबंध में मित्र को लिखा गया पत्र-
............................................................................. मयूर बिहार,
............................................................................. दिल्ली
............................................................................. 12-11-1999
प्रिय सुंदर,
नमस्ते।
बहुत दिनों से तुम्हारा पत्र मुझे नहीं मिला। आशा है, तुम मजे में हो। यहाँ मैं इन दिनों परीक्षा की तैयारी में हूँ। दस दिन बाद वार्षिक परीक्षा आरंभ होने जा रही है। घूमना-फिरना बंद है। मित्रों से भी भेंट नहीं होती। मुझे खासकर अँगरेजी से डर लगता है। इसलिए इस विषय की तैयारी में मुझे अधिक समय लगाना पड़ता है। इसके बाद अंकगणित को अधिक समय देता हूँ। मेरा गणित भी बहुत अच्छा नहीं है। फिर भी, इसमें पास कर जाने की पूरी उम्मीद है। देखें, क्या फल निकलता है। तुम्हारी तैयारी कैसी है, लिखना। अपने माता-पितजी को मेरा सादर प्रणाम।
तुम्हारा अभिन्न मित्र,
रमेश कुमार
पता-
श्री सुंदरराम,
पुनाईचक,पटना-1
(2)व्यावसायिक पत्र का नमूना
(i)पुस्तक मँगाने के लिए प्रकाशक को लिखा गया पत्र-
............................................................................. वासुदेवपुर,
............................................................................. मुँगेर
............................................................................. 22-2-2001
सेवा में,
महोदय,
मुझे मालूम हुआ है कि आपके यहाँ से 'सरल हिंदी लेख' नामक पुस्तक का प्रकाशन हुआ है, जो विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है। मुझे इसकी एक प्रति चाहिए। बड़ी कृपा होगी यदि इस पुस्तक की एक प्रति वी० पी० पी० से मेरे नाम भेज देने का कष्ट करें। आपको विश्र्वास दिलाता हूँ कि मैं वी० पी० पी० अवश्य छुड़ा लूँगा। धन्यवाद।
आपका विश्र्वासी,
अशोक कुमार
मेरा पता-
अशोक कुमार ,
स्थान-पोस्ट-वासुदेवपुर
रेलवे-स्टेशन-पूरब सराय (मुँगेर)
(3)आधिकारिक पत्र का नमूना
(i)स्कूल फीस माफ कराने के लिए प्रधानाध्यापक को लिखा गया पत्र -
श्रीमान् प्रधानाध्यापकजी,
न्यू मिड्ल स्कूल,रायपुर।
मान्य महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं आपके स्कूल में सातवें वर्ग का एक बहुत ही निर्धन छात्र हूँ। मेरे पिताजी की मासिक आमदनी इतनी भी नहीं कि घर का सारा खर्च चल सके; स्कूल फीस देना तो दूर की बात है। मेरे पिताजी एक अपर प्राइमरी स्कूल में शिक्षक का काम करते हैं। मेरे अलावा घर में पाँच भाई-बहन भी है, जिनकी पढ़ाई का सारा भार मेरे पिताजी पर ही है। ऐसी हालत में उनके लिए मेरी पढ़ाई का बोझ उठाना कठिन है। महँगाई से तो हम और परेशान हैं। अतः सादर प्रार्थना है कि आप मेरी, मेरे पिताजी की और परिवार की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखकर मेरी स्कूल फीस माफ कर दें ताकि मैं निश्रित होकर पढ़ाई जारी रख सकूँ। इस कृपा के लिए मैं आपका सदा आभारी रहूँगा।
आपका आज्ञाकारी छात्र,
विवेक कुमार
(ii)विवाह पर अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र -
सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य महोदय,
नवशान्ति पब्लिक स्कूल
दिल्ली रोड, मुरादाबाद
मान्यवर महोदय,
सविनय निवेदन यह है कि मेरी बड़ी बहिन का विवाह। ........ को होना निश्चित हुआ है। काम करने के लिए मेरा रहना आवश्यक है। इसलिए मुझे दिनांक......... से......... तक का तीन दिन का अवकाश प्रदान करने की कृपा करें।
सधन्यवाद।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
लोकेश
कक्षा-चतुर्थ-बी
दिनांक: .........
नीचे कुछ विशिष्ठ पत्र लेखन दिया जा रहा है-
अपने पिता को एक पत्र लिखिए जिसमें पूरे परिवार के व्यवहार के लिए एक टीवी खरीदने के लिए अनुरोध कीजिए
स्टेशन रोड,
भागलपुर
15 फरवरी, 1988
पूज्यवर पिताजी,
मुझे आपका पत्र अभी-अभी मिला। मुझे यह जानकर ख़ुशी है कि आप अगले महीने में घर आ रहे हैं। मैं आपको कुछ कष्ट देना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि हमारे घर में एक टीवी रहे। गत वर्ष मैंने आपसे टीवी खरीदने के लिए अनुरोध किया था, लेकिन आपने उसे स्वीकार नहीं किया। आप मुझसे सहमत होंगे कि टीवी एक बहुत उपयोगी चीज है। यदि हमारे घर में टीवी हो तो हम समाचार, फ़िल्म, क्रिकेट और कई प्रकार के मनोरंजन कर सकते हैं।
टीवी मनोरंजन का एक अच्छा साधन है। इससे हमारा बहुत मनोरंजन होगा। इसका शिक्षाणात्मक महत्त्व भी है। विभित्र कार्यक्रमों को देखकर मैं बहुत बातें सीख सकता हूँ। यदि हमारे पास टीवी हो तो वह पुरे परिवार के लिए उपयोगी होगा। माताजी औरतों के कार्यक्रम को पसंद करेंगी। वे भागवत देखना चाहेंगी। मैं टीवी देखकर बहुत-कुछ सीखूँगा। मनोज बच्चों के कार्यक्रम देखकर खुश होगा।
आप देख सकते है कि टीवी हमारे परिवार के लिए आवश्यक है। क्या आप जब घर आएँगे तब कृपा करके एक टीवी खरीद देंगे ?अब टीवी की कीमत अधिक नहीं रही। सस्ते टीवी से भी काम चल जाएगा। मुझे विश्र्वास है कि आप परिवार के व्यवहार के लिए एक टीवी खरीद देंगे।
अत्यंत आदर के साथ,
आपका स्त्रेही
प्रकाश
पता-श्री देवेंद्र प्रसाद सिंह,
15 पार्क स्ट्रीट,
कलकत्ता-8
आप एक साइकिल खरीदना चाहते हैं। अपने पिता को एक पत्र लिखिए जिसमें साइकिल खरीदने के लिए कुछ रुपए भेजने के लिए उनसे अनुरोध कीजिए।
महात्मा गाँधी रोड,
जमालपुर
27 फरवरी, 1988
पूज्यवर पिताजी,
करीब एक महीने से मुझे आपका कोई पत्र नहीं मिला है। मुझे डर है कि आप मुझ पर रंज हैं।
आप जानते है कि मुझे पैदल स्कूल जाना पड़ता है। मुझे प्रतिदिन चार मील पैदल चलना पड़ता है। मुझे प्रातः काल 9 बजकर 15 मिनट पर स्कूल के लिए रवाना होना पड़ता है। मुझे सुबह में अध्ययन के लिए अधिक समय नहीं मिलता। जब मैं स्कूल से लौटता हूँ तब मैं बहुत थका हुआ रहता हूँ। इसलिए मैं शाम में मन लगाकर नहीं पढ़ सकता।
यदि मेरे पास एक साइकिल रहे तो मैं काफी समय और शक्ति बचा सकता हूँ। मैं साइकिल चलाना अच्छी तरह जानता हूँ। मैं भीड़वाली सड़कों पर भी साइकिल चला सकता हूँ। क्या आप कृपा करके मुझे एक साइकिल खरीद देंगे ? आप मुझसे सहमत होंगे कि मेरे लिए साइकिल आवश्यक है। मैं कीमती साइकिल लेना नहीं चाहता। सस्ती साइकिल से भी काम चल जाएगा।
कृपा करके मुझे पाँच सौ रुपए भेज दें जिससे मैं एक साइकिल खरीद सकूँ।
माँ को मेरा प्यार। अत्यंत आदर के साथ,
आपका स्त्रेही,
मोहन
पता- श्री महेंद्र प्रसाद,
जलकद्यरबाग,
पटना-8
आपके पिता ने आपके जन्म-दिन के अवसर पर आपको 3000 रुपए का उपहार भेजा है। उपहार के लिए धन्यवाद देते हुए उनको पत्र लिखिए जिसमें उनको बतलाइए कि आप रुपए को कैसे खर्च करना चाहते हैं।
कलमबाग रोड,
मुजफ्फरपुर,
17 जनवरी, 1998
पूज्यवर पिताजी,
मेरे जन्म-दिन के अवसर पर मुझे उपहार में 3000 रुपए भेजने के लिए आपको धन्यवाद। आपका अच्छा उपहार पाकर मुझे बहुत ख़ुशी हुई।
आप जानना चाहेंगे कि मैं आपके द्वारा भेजे गए रुपए को कैसे खर्च करना चाहता हूँ। आप जानते है कि मुझे फोटोग्राफी में रूचि है। गत वर्ष मैंने आपसे एक कैमरा के लिए अनुरोध किया था, लेकिन आपने मेरे अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। अब मैं कैमरा खरीद सकूँगा। मुझे कुछ दिनों से कैमरा की बहुत चाह रही है। मैं जब फोटो खींचना चाहता था, तब मुझे अपने मित्र का कैमरा माँगना पड़ता था। मैं बहुत दिनों से कैमरा रखना चाहता हूँ, लेकिन मैं उसे खरीद नहीं सकता था।
अच्छे कैमरे की कीमत बहुत होती है। मैं 3000 रुपए में एक साधारण कैमरा खरीद सकूँगा। मैं सोचता हूँ कि सस्ते कैमरे से भी मेरा काम चल जाएगा।
क्या आप मेरे विचार को पसंद करते है ? मेरा विश्र्वास है कि आप मुझे अपना उपहार मेरी इच्छा के अनुसार खर्च करने देंगे। यदि मेरे पास एक कैमरा रहे तो मैं फोटोग्राफी की कला सीख सकता हूँ। आप मुझसे सहमत होंगे कि फोटोग्राफी एक आनंददायक शौक है।
आपके प्रति अत्यंत आदर और माताजी के प्रति प्रेम के साथ,
आपका प्रिय पुत्र,
संजय
पता- श्री अरुण कुमार सिंह,
चर्च रोड,
राँची
एक पत्र में अपने पिता को टेस्ट परीक्षा में अपनी सफलता और बोर्ड परीक्षा के लिए अपनी तैयारी के बारे में लिखिए।
गोविंद मित्र रोड
पटना-4
5 दिसंबर, 1987
पूज्यवर पिताजी,
आपके लिए एक खुशखबरी है। आपको यह जानकर ख़ुशी होगी कि मैं टेस्ट परीक्षा में अपने वर्ग में प्रथम हुआ।
मेरी बोर्ड परीक्षा 9 मार्च 1998 से प्रारंभ होगी। बोर्ड परीक्षा की तैयारी करने के लिए मेरे पास काफी समय है। मैं अपने समय का अच्छी तरह उपयोग करना चाहता हूँ। मैंने अपनी पाठ्यपुस्तकों को अच्छी तरह पढ़ लिया है। अब मैं प्रत्येक विषय में कुछ संभावित प्रश्र तैयार कर रहा हूँ। मैंने अपने अध्ययन के लिए एक कार्यक्रम बना लिया है। मैं प्रत्येक विषय को अच्छी तरह तैयार कर रहा हूँ। मैं लिखने के काम में काफी समय लगाता हूँ। मैं उम्मीद करता हूँ कि जनवरी के अंत तक मैं अपनी तैयारी खत्म कर लूँगा। तब मैं अपनी पाठ्यपुस्तकों को दुहराऊँगा।
मेरे शिक्षक को उम्मीद है कि मैं बोर्ड परीक्षा में अच्छा स्थान प्राप्त करूँगा। मैं आशा करता हूँ कि मेरा परीक्षाफल उनकी उम्मीद के अनुसार होगा।
कृपया माताजी को मेरा प्रणाम कह देंगे।
आपका स्त्रेही,
अशोक
पता- श्री विनोद कुमार शर्मा
स्टेशन रोड,
दरभंगा
आप परीक्षा समाप्त होने के बाद एक मित्र के घर जाना चाहते हैं। इसके लिए अनुमति माँगने के लिए अपने पिता को एक पत्र लिखिए।
गर्दनीबाग,
पटना-1
22 फरवरी, 1998
पूज्यवर पिताजी,
मुझे आपका पत्र अभी मिला है। आपने मुझे परीक्षा के बाद घर आने को कहा है। मुझे आपको यह कहने में दुःख है कि मैं तुरन्त ही घर जाना नहीं चाहता।
मेरे एक मित्र ने मुझे परीक्षा के बाद अपने घर जाने को कहा है। उनके पिता बरौनी में रहते है। मैं अपने मित्र के घर जाना चाहता हूँ। मैं कभी भी बरौनी नहीं गया हूँ। मैं तेलशोधक कारखाना देखना चाहता हूँ। मेरे मित्र ने मुझे विश्र्वास दिलाया है कि वह मुझे तेलशोधक कारखाना दिखलाएगा।
परीक्षा समाप्त होने के बाद मैं बहुत थका रहूँगा। मैं सोचता हूँ कि अपने मित्र के घर जाने से मेरा मनोरंजन होगा। मैं अपने मित्र के घर पर तीन या चार दिनों तक रहूँगा। तब मैं घर जाऊँगा।
कृपया परीक्षा समाप्त होने के बाद मुझे अपने मित्र के घर जाने की अनुमति अवश्य दें। यदि आप मुझे अपनी अनुमति नहीं देंगे तो मेरा मित्र निराश हो जाएगा।
आपका प्रिय पुत्र,
योगेंद्र
पता- श्री महेंद्र शर्मा
15 सिविल लाइंस
गया
एक पत्र में अपने पिता को बताइए कि आप माध्यमिक विद्यालय परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद क्या करना चाहते हैं।
राजेंद्रनगर,
पटना- 16
2 मार्च, 1998
पूज्यवर पिताजी,
मुझे आपका पत्र अभी मिला है। आपने मुझे यह बतलाने को कहा है कि मैं माध्यमिक विद्यालय परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद क्या करना चाहता हूँ।
अब बोर्ड परीक्षा होने में आधा महीना ही बाकी है। मैं परीक्षा के लिए कठिन परिश्रम कर रहा हूँ। आप चाहते है कि मैं बोर्ड परीक्षा में अच्छा करूँ और मैं सोचता हूँ कि मेरा परीक्षाफल आपकी उम्मीद के अनुकूल होगा। मैं जानता हूँ कि इस परीक्षा में मेरी सफलता पर ही मेरा भविष्य निर्भर करता है। इसलिए मैं लगातार परिश्रम कर रहा हूँ।
मैं माध्यमिक विद्यालय परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद पटना विज्ञान महाविद्यालय में प्रवेश करना चाहता हूँ। आप जानते है कि यह हमारे राज्य में सबसे अच्छा महाविद्यालय है। मैंने अपने एक मित्र से सुना है कि इसमें अच्छी प्रयोगशालाएँ हैं। इस महाविद्यालय में अनेक विख्यात प्राध्यापक हैं। मैं जानता हूँ कि इस महाविद्यालय में केवल तेज छात्रों का ही नाम लिखा जाता है। मुझे उम्मीद है कि इस महाविद्यालय में मेरा नाम लिखा जाएगा।
आप जानते है कि मैंने माध्यमिक विद्यालय परीक्षा में जीवविज्ञान लिया है। मैं डॉक्टर बनना चाहता हूँ, लेकिन मेडिकल कॉलेज में प्रवेश करने के पहले मुझे आई० एस० सी० की परीक्षा में उत्तीर्ण होना पड़ेगा। मैं सोचता हूँ कि माध्यमिक विद्यालय परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद पटना विज्ञान महाविद्यालय में प्रवेश करना मेरे लिए अच्छा होगा।
क्या आप मेरे विचार को पसंद करते हैं ? यदि आप इसे पसंद नहीं करते तो कृपया लिखें।
आपका स्त्रेही,
अजय
पता- श्री अजय कुमार बोस,
तातारपुर,
भागलपुर-2
आपकी परीक्षा कुछ ही दिनों में होनेवाली है, लेकिन आपकी तैयारी अच्छी नहीं है। अपने पिता को एक पत्र लिखिए जिसमे अगले वर्ष परीक्षा में शरीक होने की अनुमति के लिए उनसे अनुरोध कीजिए।
मीठापुर,
पटना-1
5 मार्च, 1988
पूज्यवर पिताजी,
मेरी बोर्ड परीक्षा 9 मार्च से शुरू होगी। आपको यह जानकर अत्यंत दुःख होगा कि परीक्षा के लिए मेरी तैयारी अच्छी नहीं है।
यद्यपि परीक्षा के लिए मैं कठिन परिश्रम करता रहा हूँ, फिर भी मैंने सभी विषयों को अच्छी तरह तैयार नहीं किया है। मैं अँगरेजी और भौतिक विज्ञान में बहुत कमजोर हूँ। मुझे भय है कि यदि परीक्षा में शरीक होऊँगा तो इन विषयों में अवश्य असफल हो जाऊँगा। यदि मैं इस वर्ष परीक्षा में नहीं बैठूँगा तो अच्छा होगा।
इस दुःखद समाचार से आप तथा माँ अवश्य चिंतित होंगे, लेकिन मैं बिलकुल मजबूर हूँ। आपको यह कहने में मुझे अत्यंत दुःख हो रहा है कि मैं परीक्षा में सफल नहीं हो सकता। कृपया मुझे अगले वर्ष परीक्षा में शरीक होने की अनुमति दें। मैं आपको विश्र्वास दिलाता हूँ कि मैं कठिन परिश्रम करूँगा और कमजोरी को पूरा कर लूँगा। मुझे सभी विषयों को अच्छी तरह तैयार करने के लिए काफी समय मिलेगा।
अत्यंत आदर के साथ,
आपका स्त्रेही,
गिरींद्र
पता- श्री सुरेंद्र प्रसाद,
न्यू एरिया
आरा
अपने बड़े भाई को एक पत्र लिखिए जो अब कॉलेज में हैं। उनसे पूछिए कि आपको इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद क्या करना चाहिए।
जिला स्कूल छात्रावास,
भागलपुर
9 फरवरी, 1988
पूज्यवर भैया,
मुझे एक महीने से आपका कोई पत्र नहीं मिला है। मुझे लगता है कि आप अपने अध्ययन में इतने व्यस्त हैं कि आप मुझे पत्र नहीं लिख पाते। मेरी बोर्ड परीक्षा 9 मार्च से शुरू होगी। आप चाहते हैं कि मैं परीक्षा में अच्छा करूँ और मुझे उम्मीद है कि मेरा परीक्षाफल आपकी आशा के अनुकूल होगा। मैंने सभी विषयों को अच्छी तरह तैयार कर लिया है। अब मैं उनमें से अधिकतर विषयों को दुहरा रहा हूँ। मुझे बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंक अवश्य आएँगे।
मैंने निश्र्चय नहीं किया है कि मुझे बोर्ड परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद क्या करना चाहिए। आप जानते है कि मैंने विज्ञान लिया है। मुझे जीवविज्ञान में बहुत रूचि है। मैं डॉक्टर बनना पसंद करूँगा।
कृपया मुझे बतलाइए कि मुझे बोर्ड परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद क्या करना चाहिए।
आपका स्त्रेहभाजन,
सुशील
पता- श्री मोहन बनर्जी,
कमरा न० 5,
न्यूटन छात्रावास,
पटना-5
अपने छोटे भाई को एक पत्र लिखिए जिसमें अध्ययन की उपेक्षा करने के लिए उसे डाँटिए।
जिला स्कूल छात्रावास,
राँची
7 जनवरी, 1988
प्रिय अजय,
मुझे अभी पिताजी का एक पत्र मिला है। उनके पत्र से यह जानकर कि तुम गत वार्षिक परीक्षा में असफल हो गए हो मुझे बहुत दुःख है। मैंने तुम्हें दुर्गापूजा की छुट्टी में कहा था कि तुम्हें कठिन परिश्रम करना चाहिए। तुमने मेरी राय पर ध्यान नहीं दिया। तुमने अध्ययन की उपेक्षा की है। इसलिए तुम परीक्षा में असफल हो गए हो।
तुम्हें स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा गया है। अब तुम बच्चे नहीं हो। तुम्हें यह जानना चाहिए कि तुम्हें क्या करना है। यदि तुम इस प्रकार अध्ययन की उपेक्षा करोगे तो बाद में तुम्हें दुखी होना पड़ेगा, जब तुम कुछ नहीं कर सकोगे। अपना समय बरबाद नहीं करो। तुम एक वर्ष खो चुके हो, क्योंकि तुमने अध्ययन की उपेक्षा की है। परीक्षा में असफल होना तुम्हारे लिए लज्जाजनक हैं। यदि तुम पढ़ाई पर ध्यान नहीं दोगे तो तुम्हें भविष्य में पछताना पड़ेगा।
तुम्हारी असफलता से पिताजी और माताजी दोनों को अत्यंत दुःख है। तुम्हें अपना सुधार अवश्य करना चाहिए। अच्छा लड़का बनो और पढ़ने में लग जाओ। आशा है, तुम अपनी गलती महसूस करोगे।
शुभकामनाओं के साथ-
तुम्हारा प्रिय भाई,
उमेश
पता- श्री अजय कुमार,
नवम वर्ग,
एस० एच० ई० स्कूल, सुरसंड,
पो० ऑ०- सुरसंड,
जिला- सीतामढ़ी
एक पत्र में अपने चचेरे भाई से अनुरोध कीजिए कि वे छुट्टी में आपको अपना कैमरा दें।
कदमकुआँ,
पटना -3
15 दिसंबर, 1988
पूज्यवर भ्राताजी,
बहुत दिनों से आपका कोई पत्र मुझे नहीं मिला है। मेरी वार्षिक परीक्षा खत्म हो गई है और मैं बड़े दिन की छुट्टी का इंतजार कर रहा हूँ। मैंने छुट्टी में दिल्ली और आगरा जाने का निश्र्चय किया है।
मैं आपको कुछ कष्ट देना चाहता हूँ। मैं छुट्टी में आपका कैमरा लेना चाहूँगा। यदि मुझे आपका कैमरा मिल जाए तो मैं दिल्ली और आगरे की अपनी यात्रा में कुछ मनोरंजक फोटो खीचूँगा। आप जानते है कि मैं आपके कैमरे का प्रयोग अच्छी तरह कर सकता हूँ।
कृपया अपना कैमरा मुझे एक सप्ताह के लिए दें। मुझे उम्मीद है कि आप मुझे निराश नहीं करेंगे। मैं आपको विश्र्वास दिला सकता हूँ कि आपके कैमरे को अच्छी तरह रखूँगा। ज्योंही मैं यहाँ लौटकर आऊँगा, त्योंही मैं आपको यह लौटा दूँगा।
कृपया मेरा प्रणाम चाचाजी और चाचाजी को कह देंगे।
आपका स्त्रेह भाजन
उदय
पता- श्री श्याम कुमार,
कोर्ट रोड, बाढ़
जिला-पटना
अपने छोटे भाई को एक पत्र लिखिए जिसमें उसे स्कूल में अच्छा व्यवहार करने की राय दीजिए।
स्टेशन रोड,
सीतामढ़ी
10 जनवरी, 1988
प्रिय नरेंद्र,
आज तुम्हारा पत्र पाकर और यह जानकर कि तुम जिला स्कूल में भरती हो गए हो, मैं बहुत खुश हूँ। मुझे आशा है कि स्कूल के प्रथम दिन का तुम्हारा अनुभव बड़ा मधुर होगा। फिर भी, मैं तुम्हें खतरों से सचेत करने के लिए यह पत्र लिख रहा हूँ। स्कूल में जिस तरह बहुत-से अच्छे लड़के है, उसी तरह बहुत-से बुरे लड़के हैं। केवल अच्छे लड़कों के साथ तुम्हें रहना चाहिए। इस कार्य में तुम्हारे शिक्षक तुम्हारी सहायता करेंगे। दुष्ट और आलसी लड़कों की संगति से हमेशा दूर रहने की चेष्टा करोगे। अपने पाठ के संबंध में भी तुम्हें सचेत और समयनिष्ठ रहना चाहिए। तुम्हें अपने शिक्षकों को सबसे अधिक सम्मान प्रदर्शित करना चाहिए अन्यथा तुम कुछ सीख नहीं सकोगे। अपने साथियों के साथ तुम्हारा व्यवहार भी भाई की तरह होना चाहिए। मैं आशा करता हूँ कि तुम मेरी हिदायतों पर ध्यान दोगे। अगर तुम ऐसा करोगे तो तुम बहुत अच्छे लड़के बनोगे।
तुम्हारा शुभेच्छुक,
सुरेश मोहन
पता- नरेंद्र मोहन सिन्हा,
वर्ग 10, जिला स्कूल,
मुजफ्फरपुर
अपने मित्र को एक पत्र लिखिए जिसमें मेला देखने का वर्णन कीजिए।
बाँकीपुर,
पटना-4
15 नवंबर, 1987
प्रिय शेखर,
पिछले कई दिनों से मैं तुम्हें पत्र लिखने के लिए सोच रहा था। पर, मुझे सोनपुर मेला देखने की इच्छा थी। इसलिए मैंने जान-बूझकर पत्र लिखने में देर की। मैंने सोचा कि सोनपुर मेले से लौटकर पत्र देना अच्छा होगा ताकि मैं वहाँ के अनुभव का वर्णन कर सकूँ।
सोनपुर का मेला एक बहुत बड़े क्षेत्र में लगता है। मैं समझता हूँ कि यह दुनिया का सबसे बड़ा मेला है। यहाँ सभी तरह के पशु और पक्षी- सबसे छोटे से लेकर सबसे बड़े तक- बेचे जाते है। यहाँ पर अनगिनत दूकानें रहती है और चीजों की अत्यधिक खरीद-बिक्री होती है। सबसे बड़ा बाजार जानवरों का है जहाँ गाय, भैंस, घोड़ा, ऊँट, हाथी इत्यादि बिकते हैं। मेले में बहुत-से होटल, नाटक-मंडली, सर्कस-मंडली इत्यादि रहते है। मेले में बहुत अधिक भीड़ रहती है और हरिहरनाथ के मंदिर में सबसे अधिक भीड़ रहती है।
मेले में संध्या का समय बड़ा दुःखदायी रहता है। बहुत-से लोग एक साथ भोजन बनाते है, इसलिए धुआँ बहुत उठता है। खासकर मैंने पक्षियों के बाजार का अधिक आनंद उठाया; क्योंकि एक ही जगह मैंने हजारों तरह के पक्षियों को देखा। उनमें से बहुतों का मिलना दुर्लभ था और वे बहुत दूर से लाए गए थे।
मेला जाने से मुझे बहुत आनंद हुआ, लेकिन तुम्हारी अनुपस्थिति से दुःख हुआ।
तुम्हारा शुभचिंतक,
रामानुज
पता- श्री शेखर प्रसाद,
मारफत: बाबू नंदकिशोर लाल, वकील
महाजनटोली, आरा।
अपने मित्र को एक पत्र लिखिए जिसमें उसे उसकी सफलता पर बधाई दीजिए।
अशोक रोड,
गया
15 जून, 1988
प्रिय राजीव,
मैंने माध्यमिक विद्यालय परीक्षा में तुम्हारी सफलता के बारे में अभी सुना है। अपनी सफलता पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करो।
तुमने दुर्लभ विशिष्टता प्राप्त की है। सभी सफल छात्रों में प्रथम प्राप्त करना सरल काम नहीं है। मुझे विश्र्वास था कि तुम यह विशिष्टता अवश्य प्राप्त करोगे। तुम्हें नियमित रूप से और धैर्यपूर्वक परिश्रम करने के कारण सफलता मिली है। तुमने केवल अपने ही लिए नहीं, बल्कि अपने सभी मित्रों के लिए सम्मान प्राप्त किया है। तुम्हारी सफलता से मुझे प्रेरणा मिलती है। मैं आशा करता हूँ कि तुम भविष्य में इसी प्रकार विशिष्टता प्राप्त करोगे।
अपनी सफलता के उपलक्ष्य में भोज का प्रबंध कब करोगे ? भोज के लिए मुझे निमंत्रण देना नहीं भूलना।
शुभकामनाओं के साथ,
तुम्हारा शुभचिंतक,
रवींद्र
पता- श्री राजीव सिंह,
15 पाटलिपुट कोलोनी,
पटना
आपका मित्र बीमार है। उसे खुश रहने के लिए एक पत्र लिखिए।
गोलकपुर,
पटना-6
16 जनवरी, 1988
प्रिय सुरेश,
तुम्हारी बीमारी के बारे में सुनकर मैं बहुत दुखी हूँ। आज मुझे उमेश का एक पत्र मिला है। उसी से मुझे तुम्हारी बीमारी की जानकारी हुई। मैं वास्तव में तुम्हारे लिए बहुत दुखी हूँ।
उसका कहना है कि तुम बहुत घबरा गए हो। तुम्हें अपने छात्रावास में अकेलापन महसूस होता होगा। मुझे लगता है कि तुम्हारे मित्र तुम्हारी देखभाल अवश्य करते होंगे। अच्छा होता कि तुम्हें अस्पताल में ले जाया जाता।
निराश नहीं होओ। खुश हो जाओ। तुम्हारी बीमारी खतरनाक नहीं है। तुम कुछ ही दिनों में अच्छे हो जाओगे। उदासी का त्याग कर दो। तुम्हें पूरा आराम करना चाहिए। मैं आशा करता हूँ कि तुम्हारे अच्छे होने की खबर जल्दी सुनूँगा।
शुभकामनाओं के साथ,
तुम्हारा प्रिय मित्र,
सतीश
पता- श्री सुरेश कुमार,
कमरा नं० 6,
जिला स्कूल छात्रावास
मुंगेर
अपनी बहन को एक पत्र लिखिए जिसमें अपने स्कूल में गणतंत्र दिवस के समारोह का वर्णन कीजिए।
बाकरगंज,
पटना-4
31 जनवरी, 2005
प्रिय रतन,
बहुत दिनों से मुझे तुम्हारा पत्र नहीं मिला है। मुझे दुःख है कि मैं तुम्हें पहले पत्र नहीं लिख सका, क्योंकि मैं अपने स्कूल के गणतंत्र-दिवस-समारोह की तैयारी में व्यस्त था। मैं सोचता हूँ कि तुम जानना चाहोगी कि हमलोगों ने अपने स्कूल में गणतंत्र दिवस कैसे मनाया।
गणतंत्र दिवस को सभी शिक्षक और छात्र सुबह में स्कूल के अहाते में एकत्र हुए। हमारे स्कूल के प्रधानाध्यापक ने 8 बजे सुबह में राष्ट्रीय झंडा फहराया। हमलोगों ने राष्ट्रीय गीत गाया। तब एन०सी० के लड़कों ने राष्ट्रीय झंडा को सलामी दी। हमारे प्रधानाध्यापक और अन्य शिक्षकों ने गणतंत्र दिवस के महत्त्व पर भाषण दिया।
रात में हमलोगों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। स्कूल के मकान को प्रकाशित किया गया। वह बहुत सुंदर लगता था। हमलोगों ने एक नाटक प्रस्तुत किया। दर्शकों ने इसकी प्रशंसा की। हमारा सांस्कृतिक कार्यक्रम वस्तुतः बहुत सफल हुआ। इस प्रकार हमलोगों ने अत्यंत उत्साह के साथ अपने स्कूल में गणतंत्र दिवस मनाया।
शुभकामनाओं के साथ,
तुम्हारा शुभचिंतक,
मुकुल
पता- सुश्री सुभाषिनी शरण,
मारफत- श्री प्रमोद शरण,
लालगंज,
आरा।
अपने मित्र को एक पत्र में अपने स्कूल में हुए एक आनंददायक उत्सव के बारे में लिखिए।
पार्क रोड,
जमशेदपुर,
17 फरवरी, 1999
प्रिय प्रभात,
मुझे एक महीने से तुम्हारा कोई पत्र नहीं मिला है। हाल में मेरे स्कूल में एक आनंददायक उत्सव हुआ था। मैं सोचता हूँ कि तुम उसके बारे में सुनना चाहोगे।
इस वर्ष मेरे स्कूल में पारितोषिक-वितरण समारोह 15 फरवरी को हुआ था। एक सप्ताह पहले ही इसकी तैयारियाँ शुरू हो गई। हमलोगों ने गाने के लिए कुछ कविताओं और गीतों को चुना। हमलोगों ने एक नाटक खेलने का निश्र्चय किया। नाटक में भाग लेने के लिए कुछ लड़कों को चुना गया। छात्रों के अभिभावकों और शहर के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को निमंत्रणपत्र भेजे गए।
पारितोषिक-वितरण के दिन स्कूल के मकान को सजाया गया। स्कूल के प्रांगण में एक बड़ा शामियाना लगाया गया। उत्सव 3 बजे अपराह्न से शुरू होनेवाला था, लेकिन छात्र समय से बहुत पहले जमा होने लगे। मुख्य द्वार पर मुख्य अतिथि का हार्दिक स्वागत किया गया। उनको मंच पर ले जाया गया। तब एक गीत से उत्सव शुरू हुआ। हमारे स्कूल के प्रधानाध्यापक ने स्कूल की प्रगति के बारे में एक रिपोर्ट पढ़ी। उनके भाषण के बाद कविताएँ और गीत गाए गए। तब एक छोटा नाटक प्रस्तुत किया गया।
जब नाटक समाप्त हो गया, तब मुख्य अतिथि ने पारितोषिक बाँटा। तत्पश्र्चात उन्होंने एक संक्षिप्त भाषण दिया जिसमें उन्होंने हमलोगों को बहुत अच्छे सुझाव दिए। धन्यवाद-ज्ञापन के साथ उत्सव समाप्त हो गया।
हमलोगों ने उत्सव से बहुत आनन्द उठाया। तुम्हें यह जानकर प्रसन्नता होगी कि मुझे कई पारितोषिक मिले।
तुम्हारा शुभचिंतक,
राकेश
पता- श्री प्रभात कुमार,
54 गर्दनीबाग,
पटना
आपका मित्र बराबर अध्ययन में लगा रहता है। उसे एक पत्र लिखिए जिसमें उसे खेलकूद में भाग लेने की राय दीजिए।
जिला स्कूल छात्रावास,
आरा
24 फरवरी, 1998
प्रिय अरुण,
बहुत दिनों से मुझे तुम्हारा कोई पत्र नहीं मिला है। मुझे लगता है कि तुम अध्ययन में इतना व्यस्त हो कि तुम पत्र नहीं लिख पाते। मैं जानता हूँ कि तुम अपनी किताबों को पढ़ने में इतना व्यस्त रहते हो कि खेल-कूद में भाग नहीं लेते। यह बहुत खराब है।
क्या तुमने इस कहावत को सुना है, ''बराबर काम करना और कभी नहीं खेलना लड़के को सुस्त बना देता है ?'' इस कहावत में बहुत सचाई है। यदि तुम्हारा स्वास्थ्य खराब रहे तो तुम कोई काम नहीं कर सकते। स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है। यदि तुम्हारा स्वास्थ्य अच्छा नहीं, तो तुम जीवन का आनंद नहीं उठा सकते।
इसलिए मैं तुम्हें खेल-कूद में नियमित रूप से भाग लेने की राय दूँगा। वे बहुत उपयोगी हैं। यदि तुम खेलना शुरू कर दो तो तुम जल्दी ही इसका लाभ महसूस करोगे। तुम कह सकते हो कि खेल-कूद में बहुत समय लगेगा जो तुम अध्ययन में लगा सकते हो। नहीं, तुम गलती कर रहे हो। खेलने में तुम्हारा जो समय लगेगा उससे तुम्हें लाभ होगा।
मैं आशा करता हूँ कि तुम जल्दी ही खेलना शुरू कर दोगे। यदि तुम मेरी राय पर ध्यान नहीं दोगे तो बाद में दुखी होओगे।
शुभकामनाओं के साथ,
तुम्हारा प्रिय मित्र,
मोहन
पता- श्री अरुण कुमार,
सुलतानगंज,
पटना-6
अपने मित्र को एक पत्र लिखिए जिसमें उसे अपने जीवन के उद्देश्य के बारे में बताइए।
स्टेशन रोड,
वैद्यनाथधाम
15 मार्च, 1988
प्रिय राकेश,
मैंने आज तुम्हारा पत्र पाया और मैं इसे पढ़कर बहुत खुश हूँ। तुमने मुझसे पूछा है कि मैं अपने जीवन में क्या करना चाहता हूँ। तुम सोचते हो कि मनुष्य पैसा प्राप्त करने की मशीन है और यही उसके जीवन का एकमात्र उद्देश्य है। मैं साफ-साफ अवश्य कहूँगा कि मैं तुमसे असहमत हूँ।
मैं समझता हूँ कि जीवन की सार्थकता दूसरे की भलाई करने में है। सच्ची सेवा से दूसरे की भलाई होती है और साथ-ही-साथ सेवा करनेवाले को आंतरिक संतोष भी होता है। उपयोगी सेवा के लिए शिक्षा आवश्यक है। अशिक्षित व्यक्ति थोड़े ही व्यक्तियों की सेवा कर सकता है, परन्तु एक शिक्षित व्यक्ति अपने विचारों एवं आविष्कारों से सारे देश की सेवा कर सकता है। यह सत्य है कि जीवन की सबसे अधिक आवश्यक वस्तु रुपया है, परन्तु अपनी आवश्यकता की पूर्ति ही से काम नहीं चलेगा। अपनी आवश्यकता की पूर्ति तो जानवर भी कर लेते है। मनुष्य जानवर से अच्छा है, इसलिए उससे कुछ अच्छी चीज की आशा की जाती है। अतः, मेरे जीवन का उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना और समाज की भलाई के लिए इसका उपयोग करना है।
मैं आशा करता हूँ कि तुम मेरे विचार को पसंद करोगे।
तुम्हारा शुभचिंतक,
रमन
पता- श्री अशोक कुमार
त्रिपोलिया,
पटना-7
अपने मित्र को एक पत्र लिखिए जिसमें एक वनभोज का वर्णन कीजिए जिसमें आपने भाग लिया हो।
पुनपुन,
15 जनवरी, 1988
प्रिय रमेश,
तुम्हारा पत्र पाकर मैं बहुत खुश हूँ। तुमने उस वनभोज के संबंध में कुछ लिखने का अनुरोध किया है जिसमें कुछ दिन पूर्व मैंने हाथ बंटाया था।
पिछली बार बड़े दिन की छुट्टी में मेरे कुछ मित्रों ने एक वनभोज का प्रबंध किया। यह तय किया गया कि बराबर पहाड़ी जाना चाहिए। 25 दिसंबर को लगभग नौ बजे सुबह हमलोगों ने बेला के लिए प्रस्थान किया। जाड़े का मौसम था। सूर्य तेजी से चमक रहा था। सूर्य की धूप में टहलना बड़ा आनंददायक था। दो मील की दूरी हमलोगों ने पैदल तय की और पहाड़ी के किनारे पहुँचे। पहाड़ी के तल के निकट पातालगंगा नाम की एक धारा है।
यहाँ से हमलोगों ने थोड़ा पानी अपने साथ ले लिया। ऊपर चढ़ने में लगभग एक घँटा समय लगा। हमलोगों को कुछ समय गुफाओं को देखने में लगा। गुफाएँ बहुत पुरानी है। इनकी दीवालें बहुत चमकदार है, मानों उनपर पालिश कर दी गई हो। उनमें से एक से मांस की दुर्गन्ध आ रही थी। कोई जंगली जानवर वहाँ आया होगा। पहाड़ी के बीच में एक बहुत सुंदर स्थान है। यह एक बहुत बड़ा खुला हुआ स्थान है, जिसके चरों ओर पहाड़ियाँ है।
यह आँगन की तरह दिखलाई पड़ता है। हमलोगों ने वहीं डेरा डाल दिया। हमलोग भोजन बनाने का प्रबंध करने लगे। लगभग दो घण्टे में भोजन तैयार हो गया। काफी मेहनत हो चुकी थी, इसलिए हमलोगों को जोरों की भूख लगी थी। यहाँ तक कि भोजन परोसे जाने के पहले ही हमलोग भूखे भेड़िए की तरह उसपर टूट पड़े। भोजन बड़ा स्वादिष्ट था। शायद ऐसा थकान और भूख के कारण हुआ। भोजन समाप्त करने के बाद हमलोग कहानी कहने के लिए बैठे।
हमलोगों में से प्रत्येक ने एक छोटी हास्यपूर्ण कहानी कही। हमलोग इच्छा-भर हँसे। उस समय चार बज गए थे। हमलोगों को पौने छह बजे गाड़ी पकड़नी थी। इसलिए हमलोगों ने प्रस्थान किया और आधा घण्टा पहले बेला स्टेशन पहुँच गए। गाड़ी ठीक समय पर आई। वनभोज का पूरा आनंद उठाकर हमलोग आठ बजे रात में घर पहुँच गए।
तुम्हारा शुभचिंतक,
मनोहर
पता- श्री रमेश तिवारी,
वर्ग 10,
जिला स्कूल,
मुंगेर
निर्धन-छात्र-कोष से सहायता के लिए अपने स्कूल के प्रधानाध्यापक के पास एक आवेदनपत्र लिखिए।
सेवा में,
प्रधानाध्यापक,
मुस्लिम एच० ई० स्कूल,
लहेरियासराय।
द्वारा: वर्गाध्यापक महोदय
महाशय,
सविनय निवेदन है कि मैं आपके स्कूल के दसवें वर्ग का एक गरीब विद्यार्थी हूँ। मेरे पिताजी मेरी शिक्षा का व्यय नहीं जुटा सकते। इसी कारण यहाँ मेरी पूरी फीस माफ है।
मैं पुस्तकें भी नहीं खरीद सकता हूँ। अतः, आपसे अनुरोध करता हूँ कि दीन-छात्र-कोष से मुझे पंद्रह रुपए का अनुदान पुस्तक खरीदने के लिए दिया जाए। इस दयापूर्ण कार्य के लिए मैं हमेशा आपका कृतज्ञ रहूँगा।
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
शेख रजा हुसेन,
वर्ग 10,
क्रमांक- 12
15 फरवरी, 1998
एक पद के लिए आवेदन-पत्र
सेवा में,
जिलाधीश,
पटना।
द्वारा: उचित माध्यम
महाशय,
यह जानकर कि आपके अधीन रेकार्ड-कीपर का एक पद रिक्त हुआ है, मैं इसके लिए अपने को एक उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत करता हूँ।
अपनी योग्यता के संबंध में मुझे यह कहना है कि मैंने पिछले साल, मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में पास की है। अँगरेजी के अलावा मैं हिंदी और उर्दू भी अच्छी तरह से जानता हूँ और दोनों लिपियाँ तेजी से लिख सकता हूँ।
अभी मैं बिहार काँटेज इंडस्ट्रीज इंस्ट्रीच्यूट में 'स्टोर-कीपर' हूँ और पिछले दस महीने से अपने उच्च पदाधिकारियों को अपने कार्यो से पूर्ण संतोष प्रदान करता रहा हूँ जो मेरे आवेदन-पत्र पर अधीक्षक द्वारा दिए गए सिफारिश से स्पष्ट हो जाएगा। मेरी वर्तमान उम्र 23 वर्ष और कुछ महीने है।
अतः, आपसे अनुरोध करता हूँ कि कृपया उस पद पर मुझे नियुक्त कर लिया जाए। मैं इसके योग्य अपने को प्रमाणित करने की चेष्टा करूँगा।
मैं इस आवेदन-पत्र के साथ सेकेंडरी स्कूल प्रमाणपत्र एवं प्रधानाध्यापक तथा अन्य सहायक शिक्षकों के द्वारा दिए गए तीन प्रशंसापत्र भेज रहा हूँ।
विश्र्चासभाजन,
रामकुमार वर्मा,
स्टोर-कीपर
बिहार काँटेज इंडस्ट्रीज इंस्ट्रीच्यूट,
गुलजारबाग, पटना
20 जनवरी, 1998
विवाह के लिए निमंत्रण
अधोहस्ताक्षरी अपने पुत्र के विवाह के अवसर पर श्री बदरीनारायण सिन्हा की उपस्थिति का अनुरोध करते हैं। विवाह 20 फरवरी, 1988 को संध्या साढ़े आठ बजे होगा।
महेश चन्द्र दास
कार्यक्रम:
बारात- साढ़े पाँच बजे संध्या
भोजन- साढ़े सात बजे रात्रि
विवाह- साढ़े आठ बजे रात्रि
पर्ण कुटी, गया
भोजन के लिए निमंत्रण
श्री आर० एल० सामंत बुधवार दिनांक 11 फरवरी, 1988 के आठ बजे रात्रि के समय भोज के अवसर पर श्री एस० के० बनर्जी की उपस्थिति का अनुरोध करते हैं।
फ्रेजर रोड,
पटना-1
निमंत्रण स्वीकार करने का उत्तर
श्री एस० के० बनर्जी बड़े हर्ष के साथ श्री आर० एल० सामंत द्वारा 11 फरवरी, 1988 के आठ बजे रात्रि के समय भोजन का निमंत्रण स्वीकार करते हैं।
एक्जीबीशन रोड
पटना-1
9 फरवरी, 1988
निमंत्रण अस्वीकार करने का उत्तर
श्री एस० के० बनर्जी को खेद है कि वे बुधवार, दिनांक 11 फरवरी, 1988 के आठ बजे रात्रि के समय के भोज का निमंत्रण दूसरी जगह व्यस्तता के कारण स्वीकार नहीं कर सकते।
एक्जीबीशन रोड,
पटना-1
9 फरवरी, 1988
एक पुस्तक-विक्रेता को कुछ किताबें भेजने के लिए एक पत्र लिखिए।
सेवा में,
व्यवस्थापक
भारती भवन
गोविन्द मित्र रोड,
पटना-4
प्रिय महाशय,
यदि आप कृपया वी० पी ० पी० द्वारा निम्नलिखित पुस्तकें यथाशीघ्र मेरे पास भेज दें तो मैं आपका बड़ा आभारी रहूँगा।
1. सेलेक्ट यंग एसेज एंड लेटर्स- 3 प्रतियाँ।
2. हाउ टु राइट करेक्ट इंगलिश - 3 प्रतियाँ।
3. हाउ टु ट्रांस्लेट इंटु इंगलिश- 3 प्रतियाँ।
आपका विश्र्चासी,
सुरेश प्रसाद
व्यवस्थापक,
भारती भवन,
गोविन्द मित्र रोड
पटना-4
हिन्दी व्याकरण
• भाषा • लिपि • व्याकरण • वर्ण,वर्णमाला • शब्द • वाक्य • संज्ञा • सर्वनाम • क्रिया • काल • विशेषण • अव्यय • लिंग • उपसर्ग • प्रत्यय • तत्सम तद्भव शब्द • संधि 1 • संधि 2 • कारक • मुहावरे 1 • मुहावरे 2 • लोकोक्ति • समास 1 • समास 2 • वचन • अलंकार • विलोम • अनेकार्थी शब्द • अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 1 • अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 2 • पत्रलेखन • विराम चिह्न • युग्म शब्द • अनुच्छेद लेखन • कहानी लेखन • संवाद लेखन • तार लेखन • प्रतिवेदन लेखन • पल्लवन • संक्षेपण • छन्द • रस • शब्दार्थ • धातु • पदबंध • उपवाक्य • शब्दों की अशुद्धियाँ • समोच्चरित भिन्नार्थक शब्द • वाच्य • सारांश • भावार्थ • व्याख्या • टिप्पण • कार्यालयीय आलेखन • पर्यायवाची शब्द • श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द • वाक्य शुद्धि • पाठ बोधन • शब्द शक्ति • हिन्दी संख्याएँ • पारिभाषिक शब्दावली •
0 comments:
Post a Comment