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शब्द-शक्ति (Word-Power)

 

शब्द-शक्ति (Word-Power)

शब्द का अर्थ बोध करानेवाली शक्ति 'शब्द शक्तिकहलाती है।

शब्द-शक्ति को संक्षेप में 'शक्तिकहते हैं। इसे 'वृत्तिया 'व्यापारभी कहा जाता है।

सरल शब्दों मेंमिठाई या चाट का नाम सुनते ही मुँह में पानी भर आता है। साँप या भूत का नाम सुनते ही मन में भय का संचार हो जाता है। यह प्रभाव अर्थगत है। अतः जिस शक्ति के द्वारा शब्द का अर्थगत प्रभाव पड़ता है वह शब्दशक्ति है।

हिन्दी के रीतिकालीन आचार्य चिन्तामणि ने लिखा है कि ''जो सुन पड़े सो शब्द हैसमुझि परै सो अर्थ'' अर्थात जो सुनाई पड़े वह शब्द है तथा उसे सुनकर जो समझ में आवे वह उसका अर्थ है। स्पष्ट है कि जो ध्वनि हमें सुनाई पड़ती है वह 'शब्दहैऔर उस ध्वनि से हम जो संकेत या मतलब ग्रहण करते है वह उसका 'अर्थहै।

शब्द से अर्थ का बोध होता है। अतः शब्द हुआ 'बोधक' (बोध करानेवालाऔर अर्थ हुआ 'बोध्य' (जिसका बोध कराया जाये)

जितने प्रकार के शब्द होंगे उतने ही प्रकार की शक्तियाँ होंगी। शब्द तीन प्रकार केवाचकलक्षक एवं व्यंजक होते हैं तथा इन्हीं के अनुरूप तीन प्रकार के अर्थवाच्यार्थलक्ष्यार्थ एवं व्यंग्यार्थ होते हैं। शब्द और अर्थ के अनुरूप ही शब्द की तीन शक्तियाँअभिधालक्षणा एवं व्यंजना होती हैं।

शब्द                     अर्थ                 शक्ति

वाचक/अभिधेय         वाच्यार्थ/अभिधेयार्थ/मुख्यार्थ अभिधा

लक्षक/लाक्षणिक            लक्ष्यार्थ               लक्षणा

व्यंजक                      व्यंग्यार्थ/व्यंजनार्थ       व्यंजना

वाच्यार्थ कथित होता हैलक्ष्यार्थ लक्षित होता है और व्यंग्यार्थ व्यंजितध्वनितसूचित या प्रतीत होता है। शब्द में अर्थ तीन प्रकार से आता है। अर्थ के जो तीन स्त्रोत हैं उन्हीं के आधार पर शब्द की शक्तियों का नामकरण किया जाता है।

शब्द शक्ति के प्रकार

प्रक्रिया या पद्धति के आधार पर शब्द-शक्ति तीन प्रकार के होते हैं-

(1) अभिधा (Literal Sense Of a Word) (2) लक्षणा (Figurative Sense Of a Word) (3) व्यंजना (Suggestive Sense Of a Word)

अभिधा से मुख्यार्थ का बोध होता हैलक्षणा से मुख्यार्थ से संबद्ध लक्ष्यार्थ कालेकिन व्यंजना से  मुख्यार्थ का बोध होता है  लक्ष्यार्थ काबल्कि इन दोनों से भित्र अर्थ व्यंग्यार्थ का बोध होता है।

(1) अभिधा (Literal Sense Of a Word) - जिस शक्ति के माध्यम से शब्द का साक्षात् संकेतित (पहला/मुख्य/प्रसिद्ध/प्रचलित/पूर्वविदितअर्थ बोध होउसे 'अभिधाकहते हैं।

जैसे- 'बैल खड़ा है।'- इस वाक्य को सुनते ही बैल नामक एक विशेष प्रकार के जीव को हम समझ लेते हैंउसे आदमी या किताब नहीं समझते।

यहाँ 'बैलवाचक शब्द है जिसका मुख्यार्थ विशेष जीव है। परंपराकोशव्याकरण आदि से यह अर्थ पूर्वविदित (पहले से मालूमहै। यानी शब्द और उसके अर्थ के बीच किसी प्रकार की बाधा नहीं है।

(अभिधा का अर्थ है 'नामदूसरे शब्दों में नामवाची अर्थ को बतलानेवाला शक्ति को अभिधा कहते हैं। नाम जातिगुणद्रव्य या क्रिया का होता है और ये सभी साक्षात् संकेतित होते हैं। अभिधा को 'शब्द की प्रथमा शक्तिभी कहा जाता है।)

उदाहरणनिराला की 'वह तोड़ती पत्थरकविता के आरंभ की ये पंक्तियाँ अभिधा के प्रयोग का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं-

''वह तोड़ती पत्थर।

देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर।''

इन पंक्तियों में कविशब्दों से सीधे-सीधे जो अर्थ प्रकट करता हैवही अर्थ कविता का हैकवि ने पत्थर तोड़ती हुई स्त्री को इलाहाबाद के पथ पर देखा।

इस शब्द-शक्ति के द्वारा तीन प्रकार के शब्दों का बोध होता हैरूढ़ शब्द (जैसे-कृष्ण), यौगिक शब्द 

(जैसेपाठशालाएवं योगरूढ़ शब्द (जैसेजलज

अभिधा का महत्त्व : अलंकारशास्त्रियों के अनुसार काव्य में अभिधा शब्द-शक्ति का विशेष महत्त्व नहीं है। लेकिन अभिधा एकदम से महत्त्वहीन नहीं है। 

हिन्दी के रीतिकालीन आचार्य देव का मानना है : ''अभिधा उत्तम काव्य हैमध्य लक्षणालीन/अधम व्यंजना रस विरसउलटी कहत नवीन।''

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का मत है : ''वास्तव में व्यंग्यार्थ या लक्ष्यार्थ के कारण चमत्कार आता हैपरन्तु वह चमत्कार होता है वाच्यार्थ में ही। अतः इस वाच्यार्थ को देने वाली अभिधा शक्ति का अपना महत्त्व है।'' आचार्य शुक्ल अन्यत्र लिखते हैं : ''जब कविता में कल्पना और सौंदर्यवाद का अतिशय जोर हो जाता तब जीवन की वास्तविकता पर बल देने के लिए काव्य में भी अभिधा शक्ति का महत्त्व बढ़ जाता है।''

(2) लक्षणा (Figurative Sense Of a Word) - अभिधा के असमर्थ हो जाने पर जिस शक्ति के माध्यम से शब्द का अर्थ बोध होउसे 'लक्षणाकहते हैं।

लक्षणा की शर्ते : लक्षणा के लिए तीन शर्ते है-

(i) मुख्यार्थ में बाधाइसमें मुख्य अर्थ या अभिधेय अर्थ लागू नहीं होता है वह बाधित (असंगतहो जाता है।

(ii) मुख्यार्थ एवं लक्ष्यार्थ में संबंधजब मुख्य अर्थ बाधित हो जाता हैपर यह दूसरा अर्थ अनिवार्य रूप से मुख्य अर्थ से संबंधित होता है।

(iii) रूढ़ि या प्रयोजनमुख्य अर्थ को छोड़कर उसके दूसरे अर्थ को अपनाने के पीछे या तो कोई रूढ़ि होती है या कोई प्रयोजन।

रूढ़ि कहते हैं प्रयोग-प्रवाहप्रसिद्ध को। अर्थात वैसा बोलने का चलन हैतरीका है। किसी बात को कहने की जो प्रथा हो जाती हैवह 'रूढ़िकहलाती है। 

जैसे- ''मुझे देखते ही वह नौ दो ग्यारह हो गया।''- इस वाक्य में 'नौ दो ग्यारह होना' (मुहावराका अर्थ है- 'भाग जाना।इसके बदले में यदि कोई कहे कि 'मुझे देखते ही वह दस बीस चालीस हो गया।या 'मुझे देखते ही वह ग्यारह दो नौ हो गया।तो इसका कोई अर्थ नहीं होगा क्योंकि ऐसी कोई रूढ़ि नहीं है। यानी भागने की रूढ़ि अर्थात प्रसिद्ध नौ दो ग्यारह में ही है।

प्रयोजन कहते है अभिप्राय या मतलब को। अर्थात हमारे मन में कोई ऐसा अभिप्राय है जो प्रयुक्त शब्द से व्यक्त नहीं हो रहा है तब उसके लिए दूसरा शब्द प्रयोग कर अपना अभिप्राय प्रकट करते हैं। जैसे हम किसी को अतिशय मूर्ख कहना चाहते हैं तो ''तुम मूर्ख हो।'' कह देने से मूर्खता की अतिशयता प्रकट नहीं होतीलेकिन यदि हम कहे कि ''तुम बैल हो।'' तो इसका अर्थ है कि तुम अतिशय मूर्ख (बुद्धिमानहो। यहाँ 'बैलशब्द का प्रयोग मूर्खता की अतिशयता बताने के प्रयोजन से किया गया है।

लक्षणा की शास्त्रीय परिभाषा : मुख्यार्थ के बाधित होने पर जिस शक्ति के द्वारा मुख्यार्थ से संबंधित अन्य अर्थ रूढ़ि या प्रयोजन के कारण लिया जाएवह 'लक्षणाहै।

उदाहरण-

(i) सभी मुहावरे  लोकोक्तियाँसभी मुहावरों एवं लोकोक्तियों में लक्षणा शब्द-शक्ति के सहारे अर्थ ग्रहण किया जाता है। जैसे- ''उसके लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने की बात है।''- इस वाक्य में 'चुल्लू भर पानी में डूब मरना (मुहावरा)' से हमें शब्दों का मुख्यार्थ अभीष्ट नहीं है। हम इनसे दूसरा अर्थ लेते हैं कि 'बड़ी लज्जा की बात है।इसी तरह 'राम चरण की जगह उसके भतीजे पिण्टू के घर के मालिक होने पर उसके पड़ोसी ने कहाहंसा थे सो उड़ गयेकागा भये दीवान।'- इस वाक्य में 'हंसा थे सो उड़ गयेकागा भये दीवान (लोकोक्तिसे हम शब्दों का मुख्यार्थ नहीं लेतेबल्कि हम इनसे दूसरा अर्थ लेते हैं कि उक्त घर में 'सज्जन/योग्य/गुणवान व्यक्ति के स्थान पर दुर्जन/अयोग्य/गुणहीन व्यक्ति का आधिपत्य हो गया है।'

(ii) एक पद्यबद्ध उदाहरणनिराला की 'वह तोड़ती पत्थरकविता की अंतिम पंक्ति-

देखा मुझे उस दृष्टि से

जो मार खा रोई नहीं।

दृष्टि मार नहीं खातीप्राणी मार खाता हैदृष्टि नहीं रोती प्राणी रोता है। इसलिए दृष्टि 'जो मार खा रोई नहीं'- इस कथन में अभिधेय अर्थ या मुख्य अर्थ लागू नहीं होताबाधित हो जाता है। तब हम उससे संबंधित अन्य अर्थ दूसरा अर्थ लेते हैंकवि उस स्त्री की बात कह रहा है जो जीवन संघर्ष में बार-बार मार खाकर या आघात झेलकर रोई नहीं।

(iii) एक और पद्यबद्ध उदाहरणदिनकर की काव्य-कृति 'रेणुकासे-

विद्युत की इस चकाचौंध में,

देखदीप की लौ रोती है,

अरीह्रदय को थाम,

महल के लिए झोपड़ी बलि होती है।

इस पद्य का मुख्यार्थ स्पष्ट है कि विद्युत की इस चकाचौंध में दीप की लौ रोती है। अरी ! हृदय को थाम लेयहाँ महल के लिए झोपड़ी बलि होती है। किन्तु इसका लक्ष्यार्थ यह है कि महलों में रहनेवाले लोगों को जो वैभव प्राप्त है वह वस्तुतः झोंपड़ी में रहनेवाले मजदूरों के श्रम का ही परिणाम है। इस पद्य में 'महलका अर्थ महल के निवासी अर्थात 'धनीऔर 'झोपड़ीका अर्थ झोंपड़ी के निवासी अर्थात 'निर्धनअर्थ भी लक्षणा शब्द-शक्ति से गृहीत होते हैं। इसी प्रकार इस पद्य में प्रयुक्त 'विद्युत की चकाचौंधका 'वैभवअर्थ और 'दीपक की लौ का रोनाका 'श्रमिक जीवनअर्थ भी लक्षणा शब्द-शक्ति द्वारा ज्ञात होते हैं।

लक्षणा के भेद

लक्षणा के भेद कारण के आधार पर लक्षणा के दो भेद हैं-

(1) रूढ़ा लक्षणा (2) प्रयोजनवती लक्षणा

(1) रूढ़ा लक्षणा जहाँ रूढ़ि के कारण मुख्यार्थ से भिन्न लक्ष्यार्थ का बोध होवहाँ 'रूढ़ा लक्षणाहोती है।

उदाहरण :

(i) गद्यात्मक उदाहरण : ''आप तो एकदम राजा हरिश्चन्द्र है'' का लक्ष्यार्थ है आप हरिश्चन्द्र के समान सत्यवादी हैं। सत्यवादी व्यक्ति को राजा हरिश्चन्द्र कहना रूढ़ि है।

(ii) पद्यबद्ध उदाहरण : 'आगि बड़वाग्नि ते बड़ी है आगि पेट की' (तुलसीका मुख्यार्थ हैबड़वाग्नि यानी समुद्र में लगने वाली आग से बड़ी पेट की आग होती है। पेट में आग नहींभूख लगती है इसलिए मुख्यार्थ की बाधा है। लक्ष्यार्थ है तीव्र और कठिन भूख को व्यक्त करना जो पेट की आग के जरिये किया गया है। तीव्र और कठिन भूख के लिए 'पेट में आग लगनाकहना रूढ़ि है।

(2) प्रयोजनवती लक्षणा - जहाँ प्रयोजन के कारण मुख्यार्थ से भिन्न लक्ष्यार्थ का बोध होवहाँ 'प्रयोजनवती लक्षणाहोती है।

उदाहरण :

(i) ''शिवाजी सिंह है''- यदि हम कहें कि शिवाजी सिंह हैं। तो सिंह शब्द के मुख्यार्थ (विशेष जीवमें बाधा पड़ जाती है। हम सब जानते है कि शिवाजी आदमी थेसिंह नहीं लेकिन यहाँ शिवाजी के लिए सिंह शब्द का प्रयोग विशेष प्रयोजन के लिए किया गया है। शिवाजी को वीर या साहसी बताने के लिए सिंह शब्द का प्रयोग हुआ है। इस प्रकार 'सिंहशब्द का 'वीरया 'साहसीअर्थ लक्ष्यार्थ है।

(ii) ''लड़का शेर है''- यदि हम कहें कि 'लड़का शेर है।तो इसका लक्ष्यार्थ है 'लड़का निडर है।यहाँ पर शेर का सामान्य अर्थ अभीष्ट नहीं है। लड़के को निडर बताने के प्रयोजन से उसके लिए शेर शब्द का प्रयोग किया गया है।

(iii) एक पद्यबद्ध उदाहरण :

कौशल्या के वचन सुनि भरत सहित रनिवास।

व्याकुल विलप्त राजगृह मनहुँ शोक निवास।। -तुलसी

कौशल्या के वचन सुनकर समस्त राजगृह व्याकुल होकर रो रहा है। 'राजगृहअर्थात राजभवन नहीं रो सकता। 'राजगृहका लक्ष्यार्थ है 'राजगृह में रहनेवाले लोग समस्त राजगृह के रोने से अत्यधिक दुःख को व्यक्त करने का विशेष प्रयोजन है।

प्रयोजनवती लक्षणा के भेद

भेद          लक्षण/पहचान-चिह्न परिभाषा एवं उदाहरण

(1) गौणी लक्षणा सादृश्य संबंध      जहाँ सादृश्य संबंध अर्थात समान गुण या धर्म के कारण लक्ष्यार्थ की प्रतीति हो।

उदाहरण : 'मुख कमल' सादृश्य संबंध के द्वारा लक्ष्यार्थ का बोध हो रहा है कि मुख कमल के समान कोमल है।

(i) सारोपा 

( +_आरोपा) विषय/उपमेय/आरोप का विषय + विषयी/उपमान/आरोप्यमाण (दोनों) जहाँ विषय और विषयी दोनों का शब्द निर्देश करते हुए अभेद बताया जाए।

उदाहरण : 'सीता गाय है।का लक्ष्यार्थ हैसीता सीधी-सादी है। यहाँ गाय (विषयीका सीधापन-सादापन सीता (विषयपर आरोपित है।

(ii) साध्यावसाना ( + अध्यवसानाअध्यवसान =आत्मसातनिगरण विषयी (केवल) जहाँ केवल विषयी का कथन कर अभेद बताया जाए।

उदाहरण : यदि कोई मालिक खीझ कर नौकर को कहे कि 'बैल कहीं का।तो इस वाक्य में विषय (नौकरका निर्देश नहीं हैकेवल विषयी (बैलका कथन है।

(2) शुद्धा लक्षणा   सादृश्येतर संबंध सादृश्येतर  सादृश्य + इतर जहाँ सादृश्येतर संबंध (सादृश्य संबंध के अतिरिक्त किसी अन्य संबंधसे लक्ष्यार्थ की प्रतीति हो।

सादृश्येतर संबंध हैंआधार-आधेय भावसामीप्यवैपरीत्यकार्य-कारणतात्कर्म्य आदि।     उदाहरण :

(i) आधार-आधेय संबंध का उदाहरण : 'महात्मा गाँधी को देखने के लिए सारा शहर उमड़ पड़ा।यहाँ 'शहरका मुख्यार्थ (नगरबाधित है, 'शहरका लक्ष्यार्थ है- 'शहर के निवासी शहर हैआधार और शहर का निवासी हैआधेय।

(ii) सामीप्य संबंध का उदाहरण : आँचल में है दूध और आँखों में पानी। (यशोधरायहाँ आँचल का मुख्यार्थ (साड़ी का छोरबाधित हैआँचल मैथलीशरण गुप्त का लक्ष्यार्थ हैस्तन। चूँकि आँचल सदा स्तन के समीप रहता हैइसलिए आँचल और स्तन में सामीप्य संबंध है।

(iii) वैपरीत्य संबंध का उदाहरण : 'तुम सूख-सूख कर हाथी हुए जा रहे हो।कोई व्यक्ति सूख-सूखकर हाथी नहीं हो सकता हैलक्ष्यार्थ हैतुम बहुत दुर्बल हो गये हो।

(iv) वैपरीत्य संबंध का एक और उदाहरण : 'उधो तुम अति चतुर सुजानयहाँ जब गोपियाँ उद्धव को चतुर और सुजान बता रही है तो सूरदास वे वस्तुतः उद्धव को सीधा और अजान कह रही है। यहाँ चतुर और सुजान के मुख्यार्थ बाधित है और उनमें चतुरता का अभाव और अज्ञता का बोध कराना लक्ष्यार्थ है।

(i) उपादान लक्षणा (उपादान = ग्रहण करना) मुख्यार्थ + लक्ष्यार्थ (दोनों) जहाँ मुख्यार्थ के साथ लक्ष्यार्थ का भी ग्रहण हो।

उदाहरण : 'पगड़ी की लाज रखिए।यहाँ 'पगड़ीका मुख्यार्थ हैपगड़ीपाग और लक्ष्यार्थ है- 'पगड़ी वाला यहाँ लक्ष्यार्थ के साथ-साथ मुख्यार्थ का भी ग्रहण किया गया है।

(ii) लक्षण-लक्षणा लक्ष्यार्थ (केवल) जहाँ मुख्यार्थ को छोड़कर (त्याग करकेवल लक्ष्यार्थ का ग्रहण हो।

उदाहरण :

(i) 'वह पढ़ाने में बहुत कुशल है।'- इस वाक्य में 'कुशलका मुख्यार्थ (कुशलाने वालाबाधित है और केवल लक्ष्यार्थ (दक्षका ग्रहण किया गया है।

(ii) 'माधुरी नृत्य में प्रवीण है।'- इस वाक्य में 'प्रवीणका मुख्यार्थ (वीणा बजाने में निपुणबाधित है और केवल लक्ष्यार्थ (कुशलको ग्रहीत किया गया है।

(iii) 'देवदत्त चौकन्ना हो गया।'- इस वाक्य में 'चौकन्नाका मुख्यार्थ (चार कानों वालाबाधित है और केवल लक्ष्यार्थ (सावधानका ग्रहण किया गया है।

लक्षणा का महत्त्व : काव्य में लक्षणा के प्रयोग से जीवन के अनुभव को समृद्ध किया जाता है। कल्पना के सहारे सादृश्य और साधर्म्य के अनेकानेक विधानों द्वारा अनुभवों की सूक्ष्मता और विस्तार को प्रकट किया जाता है। इसलिए काव्य में लक्षणा शब्द-शक्ति की प्रबलता है।

(3) व्यंजना (Suggestive Sense Of a Word) - अभिधा  लक्षणा के असमर्थ हो जाने पर जिस शक्ति के माध्यम से शब्द का अर्थ बोध होउसे 'व्यंजनाकहते हैं।

'व्यंजना' (वि + अंजनाशब्द का अर्थ है- 'विशेष प्रकार का अंजन अंजन लगाने से आँखों की ज्योति बढ़ती हैपर विशेष प्रकार के अंजन लगाने से परोक्ष वस्तु भी दिखने लगती है। इसी प्रकार व्यंजना शब्द-शक्ति से अकथित अर्थ स्पष्ट होते हैं। जब अभिधा एवं लक्षणा अर्थ व्यक्त करने में असमर्थ हो जाती है तब व्यंजना शक्ति काव्य के छिपे हुए व्यंग्यार्थ का बोध कराती है।

व्यंग्यार्थ को 'ध्वन्यार्थ', 'सूच्यार्थ', 'आक्षेपार्थ', 'प्रतीयमानार्थआदि भी कहा जाता है।    उदाहरण :

(i) प्रसिद्ध उदाहरण : 'सूर्य अस्त हो गया।इस वाक्य के सुनने के उपरांत प्रत्येक व्यक्ति इससे भिन्न-भिन्न अर्थ ग्रहण करता है। प्रसंग विशेष के अनुसार इस वाक्य के अनंत व्यंजनार्थ हो सकते हैं।

वाक्य                        प्रसंग विशेष (वक्ता-श्रोता)                      अर्थ

सूर्य अस्त हो गया               पिता के पुत्र से कहने पर           पढ़ाई-लिखाई शुरू करो।

सास के बहू से कहने पर            चूल्हा-चौका आरंभ करो।

किसान के हलवाहे से कहने पर       हल चलाना बंद करो

पशुपालक के चरवाहे से कहने पर      पशुओं को घर ले चलो।

पुजारी के चेले से कहने पर          संध्या-पूजन का प्रबंध करो।

राहगीर के अपने साथी से कहने पर   ठहरने का इंतजाम करो।

कारवाँ-प्रमुख के उपप्रमुख से कहने पर पड़ाव की व्यवस्था करो।

इस तरह इस एक वाक्य से वक्ता-श्रोता के अनुसार  जाने कितने अर्थ निकल सकते हैं। यहाँ जिसने भी अर्थ दिये गये है वे साक्षात् संकेतित नहीं हैइसलिए इनमें अभिधा शक्ति नहीं है। इनमें लक्षणा शक्ति भी नहीं हैकारण है कि उक्त वाक्य लक्षणा की शर्त मुख्यार्थ में बाधा को पूरा नहीं करता क्योंकि यहाँ सूर्य का जो मुख्यार्थ है वह मौजूद है। साफ है कि इनमें पायी जानेवाली शब्द-शक्ति व्यंजना है।

(ii) एक पद्यबद्ध उदाहरण :

प्रभुहिं चितइ पुनि चितइ महि राजत लोचन लोल।

खेलत मनसिजु-मीन-जुगजनु विधुमंडल डोल।। तुलसी

यहाँ धनुष-यज्ञ के प्रसंग में सीता की मनोदशा का चित्रण किया गया है। इस पद्य की पहली पंक्ति का वाच्यार्थ/अभिधेयार्थ यह है कि सीता पहले राम की ओर देखती है और फिर धरती की ओर। इससे उनके चपल नेत्र शोभित हो रहे हैं। किन्तु व्यंजनार्थ यह है कि सीता के मन में इस समय उत्सुकताहर्षलज्जा आदि के भाव क्षण-क्षण में प्रकट हो रहे हैं। राम को देखकर उत्सुकता और हर्ष का भाव उत्पन्न होता हैसाथ ही दूसरों की उपस्थिति का ध्यान कर उनके मन में तुरंत लज्जा भी  जाती हैऔर वे धरती की ओर देखने लगती है। पर हर्ष और उत्सुकता के वशीभूत होने से वे अपने को रोक नहीं पाती और फिर राम की और देखती हैकिन्तु लज्जावश फिर धरती की ओर देखने लगती है। इस प्रकार यह चक्र कुछ समय तक चलता रहता है।

स्पष्ट है कि उक्त पद्य की पहली पंक्ति से हमें हर्षउत्सुकतालज्जा आदि भावों की जो प्रतीति होती है वह  तो अभिधा शक्ति से होती है और  लक्षणा शक्ति सेबल्कि होती है व्यंजना शक्ति से।

(iii) एक और पद्यबद्ध उदाहरण :

चलती चाकी देख के दिया कबीरा रोय।

दो पाटन के बीच में साबुत बचा  कोय।। - कबीर

यहाँ चलती चक्की को देखकर कबीरदास के दुःखी होने की बात कही गई है। उसके द्वारा यह अर्थ व्यंजित होता है कि संसार चक्की के समान है जिसके जन्म और मृत्यु रूपी दो पार्टों के बीच आदमी पिसता रहता है।






हिन्दी व्याकरण 

•   भाषा   •   लिपि   •   व्याकरण   •   वर्ण,वर्णमाला   •   शब्द   •   वाक्य   •   संज्ञा   •   सर्वनाम   •   क्रिया   •   काल   •   विशेषण   •   अव्यय   •   लिंग   •   उपसर्ग   •   प्रत्यय   •   तत्सम तद्भव शब्द   •    संधि 1   •  संधि 2   •   कारक   •   मुहावरे 1   •   मुहावरे 2   •   लोकोक्ति   •   समास 1   •   समास 2   •   वचन   •   अलंकार   •   विलोम   •   अनेकार्थी शब्द   •  अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 1   •   अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 2   •   पत्रलेखन   •   विराम चिह्न   •   युग्म शब्द   •   अनुच्छेद लेखन   •   कहानी लेखन   •   संवाद लेखन   •   तार लेखन   •   प्रतिवेदन लेखन   •   पल्लवन   •   संक्षेपण   •   छन्द   •   रस   •   शब्दार्थ   •   धातु   •   पदबंध   •   उपवाक्य   •   शब्दों की अशुद्धियाँ   •   समोच्चरित भिन्नार्थक शब्द   •   वाच्य   •   सारांश   •   भावार्थ   •   व्याख्या   •   टिप्पण   •   कार्यालयीय आलेखन   •   पर्यायवाची शब्द   •   श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द   •   वाक्य शुद्धि   •   पाठ बोधन   •   शब्द शक्ति   •   हिन्दी संख्याएँ   •   पारिभाषिक शब्दावली   •



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