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वाक्य ( Sentence )

 


वाक्य ( Sentence )

वह शब्द समूह जिससे पूरी बात समझ में  जाये, 'वाक्यकहलाता है।

दूसरे शब्दों मेंविचार को पूर्णता से प्रकट करनेवाली एक क्रिया से युक्त पद-समूह को 'वाक्यकहते हैं। 

सरल शब्दों मेंसार्थक शब्दों का व्यवस्थित समूह जिससे अपेक्षित अर्थ प्रकट होवाक्य कहलाता है।

जैसेविजय खेल रहा हैबालिका नाच रही है।

वाक्य के भाग

वाक्य के दो भेद होते है-

(i) उद्देश्य (Subject)

(ii) विद्येय (Predicate)

(i) उद्देश्य (Subject) :- वाक्य में जिसके विषय में कुछ कहा जाये उसे उद्देश्य कहते हैं। 

सरल शब्दों मेंजिसके बारे में कुछ बताया जाता हैउसे उद्देश्य कहते हैं।

जैसेपूनम किताब पढ़ती है। सचिन दौड़ता है। 

इस वाक्य में पूनम और सचिन के विषय में बताया गया है। अतः ये उद्देश्य है। इसके अंतर्गत कर्ता और कर्ता का विस्तार आता है जैसे- 'परिश्रम करने वाला व्यक्तिसदा सफल होता है। इस वाक्य में कर्ता (व्यक्तिका विस्तार 'परिश्रम करने वालाहै।

उद्देश्य के भाग-

उद्देश्य के दो भाग होते है-

(i) कर्ता 

(ii) कर्ता का विशेषण या कर्ता से संबंधित शब्द।

(ii) विद्येय (Predicate):- उद्देश्य के विषय में जो कुछ कहा जाता हैउसे विद्येय कहते है।

जैसेपूनम किताब पढ़ती है।

इस वाक्य में 'किताब पढ़तीहै विधेय है क्योंकि पूनम (उद्देश्य )के विषय में कहा गया है।

दूसरे शब्दों मेंवाक्य के कर्ता (उद्देश्यको अलग करने के बाद वाक्य में जो कुछ भी शेष रह जाता हैवह विधेय कहलाता है। 

इसके अंतर्गत विधेय का विस्तार आता है। जैसेलंबे-लंबे बालों वाली लड़की 'अभी-अभी एक बच्चे के साथ दौड़ते हुए उधर गई

इस वाक्य में विधेय (गईका विस्तार 'अभी-अभी एक बच्चे के साथ दौड़ते हुए उधरहै।

विशेष-आज्ञासूचक वाक्यों में विद्येय तो होता है किन्तु उद्देश्य छिपा होता है।

जैसेवहाँ जाओ। खड़े हो जाओ।

इन दोनों वाक्यों में जिसके लिए आज्ञा दी गयी है वह उद्देश्य अर्थात 'वहाँ  जाने वाला '(तुमऔर 'खड़े हो जाओ' (तुम या आपअर्थात उद्देश्य दिखाई नही पड़ता वरन छिपा हुआ है।

विधेय के भाग -

विधेय के छः भाग होते है-

(i) क्रिया    (ii) क्रिया के विशेषण  (iii) कर्म    (iv) कर्म के विशेषण या कर्म से संबंधित शब्द      (v) पूरक       (vi)पूरक के विशेषण।

नीचे की तालिका से उद्देश्य तथा विधेय सरलता से समझा जा सकता है-


वाक्य

उद्देश्य

विधेय

गाय घास खाती है

गाय

घास खाती है।

सफेद गाय हरी घास खाती है।

सफेद गाय

हरी घास खाती है।


सफेद -कर्ता विशेषण

गाय -कर्ता[उद्देश्य]

हरी - विशेषण कर्म 

घास -कर्म [विधेय]

खाती हैक्रिया[विधेय]

वाक्य के भेद -

 रचना के आधार पर

रचना के आधार पर वाक्य के तीन भेद होते है-

(i) साधरण वाक्य या सरल वाक्य (Simple Sentence)

(ii) मिश्रित वाक्य (Complex Sentence)

(iii) संयुक्त वाक्य (Compound Sentence)

(i) साधरण वाक्य या सरल वाक्य :- जिन वाक्य में एक ही क्रिया होती हैऔर एक कर्ता होता हैवे साधारण वाक्य कहलाते है।

दूसरे शब्दों मेंजिन वाक्यों में केवल एक ही उद्देश्य और एक ही विधेय होता हैउन्हें साधारण वाक्य या सरल वाक्य कहते हैं।

इसमें एक 'उद्देश्यऔर एक 'विधेयरहते हैं। जैसे- 'बिजली चमकती है', 'पानी बरसा

इन वाक्यों में एक-एक उद्देश्यअर्थात कर्ता और विधेयअर्थात क्रिया है। अतःये साधारण या सरल वाक्य हैं।

(ii) मिश्रित वाक्य :- जिस वाक्य में एक से अधिक वाक्य मिले हों किन्तु एक प्रधान उपवाक्य तथा शेष आश्रित उपवाक्य होंमिश्रित वाक्य कहलाता है। 

दूसरे शब्दों मेंजिस वाक्य में मुख्य उद्देश्य और मुख्य विधेय के अलावा एक या अधिक समापिका क्रियाएँ होंउसे 'मिश्रित वाक्यकहते हैं। 

जैसे- 'वह कौन-सा मनुष्य हैजिसने महाप्रतापी राजा भोज का नाम  सुना हों'

दूसरे शब्दों मे जिन वाक्यों में एक प्रधान (मुख्यउपवाक्य हो और अन्य आश्रित (गौणउपवाक्य हों तथा जो आपस में 'कि'; 'जो'; 'क्योंकि'; 'जितना'; 'उतना'; 'जैसा'; 'वैसा'; 'जब'; 'तब'; 'जहाँ'; 'वहाँ'; 'जिधर'; 'उधर'; 'अगर/यदि'; 'तो'; 'यद्यपि'; 'तथापि'; आदि से मिश्रित (मिले-जुलेहों उन्हें मिश्रित वाक्य कहते हैं।

इनमे एक मुख्य उद्देश्य और मुख्य विधेय के अलावा एक से अधिक समापिका क्रियाएँ होती है। जैसेमैं जनता हूँ कि तुम्हारे अक्षर अच्छे नहीं बनते। जो लड़का कमरे में बैठा है वह मेरा भाई है। यदि परिश्रम करोगे तो उत्तीर्ण हो जाओगे।

'मिश्र वाक्यके 'मुख्य उद्देश्यऔर 'मुख्य विधेयसे जो वाक्य बनता हैउसे 'मुख्य उपवाक्यऔर दूसरे वाक्यों को आश्रित उपवाक्यकहते हैं। पहले को 'मुख्य वाक्यऔर दूसरे को 'सहायक वाक्यभी कहते हैं। सहायक वाक्य अपने में पूर्ण या सार्थक नहीं होतेपर मुख्य वाक्य के साथ आने पर उनका अर्थ निकलता हैं। ऊपर जो उदाहरण दिया गया हैउसमें 'वह कौन-सा मनुष्य हैमुख्य वाक्य है और शेष 'सहायक वाक्य'; क्योंकि वह मुख्य वाक्य पर आश्रित है।

(iii) संयुक्त वाक्य :- जिस वाक्य में दो या दो से अधिक उपवाक्य मिले होंपरन्तु सभी वाक्य प्रधान हो तो ऐसे वाक्य को संयुक्त वाक्य कहते है।

दूसरे शब्दों मेंजिस वाक्य में साधारण अथवा मिश्र वाक्यों का मेल संयोजक अवयवों द्वारा होता हैउसे संयुक्त वाक्य कहते हैं।

संयुक्त वाक्य उस वाक्य-समूह को कहते हैंजिसमें दो या दो से अधिक सरल वाक्य अथवा मिश्र वाक्य अव्ययों द्वारा संयुक्त हों। इस प्रकार के वाक्य लम्बे और आपस में उलझे होते हैं। जैसे- 'मैं रोटी खाकर लेटा कि पेट में दर्द होने लगाऔर दर्द इतना बढ़ा कि तुरन्त डॉक्टर को बुलाना पड़ा।इस लम्बे वाक्य में संयोजक 'औरहैजिसके द्वारा दो मिश्र वाक्यों को मिलाकर संयुक्त वाक्य बनाया गया।

इसी प्रकार 'मैं आया और वह गयाइस वाक्य में दो सरल वाक्यों को जोड़नेवाला संयोजक 'औरहै। यहाँ यह याद रखने की बात है कि संयुक्त वाक्यों में प्रत्येक वाक्य अपनी स्वतन्त्र सत्ता बनाये रखता हैवह एक-दूसरे पर आश्रित नहीं होताकेवल संयोजक अव्यय उन स्वतन्त्र वाक्यों को मिलाते हैं। इन मुख्य और स्वतन्त्र वाक्यों को व्याकरण में 'समानाधिकरण उपवाक्य भी कहते हैं।

दूसरे शब्दो मेंजिन वाक्यों में दो या दो से अधिक सरल वाक्य योजकों (औरएवंतथायाअथवाइसलिएअतःफिर भीतोनहीं तोकिन्तुपरन्तुलेकिनपर आदिसे जुड़े होंउन्हें संयुक्त वाक्य कहते है। 

जैसेवह सुबह गया और शाम को लौट आया। प्रिय बोलो पर असत्य नहीं। उसने बहुत परिश्रम किया किन्तु सफलता नहीं मिली।

वाक्य के भेद-

अर्थ के आधार पर

अर्थ के आधार पर वाक्य मुख्य रूप से आठ प्रकार के होते है-

(i) सरल वाक्य (Affirmative Sentence)

(ii) निषेधात्मक वाक्य (Negative Semtence)

(iii) प्रश्नवाचक वाक्य (Interrogative Sentence)

(iv) आज्ञावाचक वाक्य (Imperative Sentence)

(v) संकेतवाचक वाक्य (Conditional Sentence)

(vi) विस्मयादिबोधक वाक्य (Exclamatory Sentence)

(vii)  विधानवाचक वाक्य (Assertive Sentence)

(viii)  इच्छावाचक वाक्य (IIIative Sentence)

(i) सरल वाक्य :- वे वाक्य जिनमे कोई बात साधरण ढंग से कही जाती हैसरल वाक्य कहलाते है।

जैसेराम ने बाली को मारा। राधा खाना बना रही है।

(ii) निषेधात्मक वाक्य :-  जिन वाक्यों में किसी काम के  होने या  करने का बोध हो उन्हें निषेधात्मक वाक्य कहते है।

जैसेआज वर्षा नही होगी। मैं आज घर जाऊॅंगा।

(iii) प्रश्नवाचक वाक्य :- वे वाक्य जिनमें प्रश्न पूछने का भाव प्रकट होप्रश्नवाचक वाक्य कहलाते है।

जैसेराम ने रावण को क्यों मारातुम कहाँ रहते हो ?

(iv) आज्ञावाचक वाक्य :- जिन वाक्यों से आज्ञा प्रार्थनाउपदेश आदि का ज्ञान होता हैउन्हें आज्ञावाचक वाक्य कहते है।

जैसेवर्षा होने पर ही फसल होगी। परिश्रम करोगे तो फल मिलेगा ही। बड़ों का सम्मान करो।

(v) संकेतवाचक वाक्य :-  जिन वाक्यों से शर्त्त (संकेतका बोध होता है यानी एक क्रिया का होना दूसरी क्रिया पर निर्भर होता हैउन्हें संकेतवाचक वाक्य कहते है। 

जैसेयदि परिश्रम करोगे तो अवश्य सफल होंगे। पिताजी अभी आते तो अच्छा होता। अगर वर्षा होगी तो फसल भी होगी।

(vi ) विस्मयादिबोधक वाक्य :-  जिन वाक्यों में आश्चर्यशोकघृणा आदि का भाव ज्ञात हो उन्हें विस्मयादिबोधक वाक्य कहते है।

जैसेवाह !तुम  गये। हाय !मैं लूट गया।

(vii) विधानवाचक वाक्य :-  जिन वाक्यों में क्रिया के करने या होने की सूचना मिलेउन्हें विधानवाचक वाक्य कहते है। 

जैसेमैंने दूध पिया। वर्षा हो रही है। राम पढ़ रहा है।

(viii) इच्छावाचक वाक्य :-  जिन वाक्यों से इच्छाआशीष एवं शुभकामना आदि का ज्ञान होता हैउन्हें इच्छावाचक वाक्यकहते है। 

जैसेतुम्हारा कल्याण हो। आज तो मैं केवल फल खाऊँगा। भगवान तुम्हें लंबी उमर दे।

वाक्य के अनिवार्य तत्व

वाक्य में निम्नलिखित  तत्व अनिवार्य है-

(1) सार्थकता

(2) योग्यता 

(3) आकांक्षा

(4) निकटता 

(5) पदक्रम 

(6) अन्वय

(1) सार्थकता - वाक्य का कुछ  कुछ अर्थ अवश्य होता है। अतः इसमें सार्थक शब्दों का ही प्रयोग होता है।

(2) योग्यता - वाक्य में प्रयुक्त शब्दों में प्रसंग के अनुसार अपेक्षित अर्थ प्रकट करने की योग्यता होती है। 

जैसे -  चायखाई यह वाक्य नहीं है क्योंकि चाय खाई नहीं जाती बल्कि पी जाती है।

(3) आकांक्षा  आकांक्षा का अर्थ है 'इच्छा', वाक्य अपने आप में पूरा होना चाहिए। उसमें किसी ऐसे शब्द की कमी नहीं होनी चाहिए जिसके कारण अर्थ की अभिव्यक्ति में अधूरापन लगे। जैसेपत्र लिखता हैइस वाक्य में क्रिया के कर्ता को जानने की इच्छा होगी। अतः पूर्ण वाक्य इस प्रकार होगाराम पत्र लिखता है।

(4) निकटता  बोलते तथा लिखते समय वाक्य के शब्दों में परस्पर निकटता का होना बहुत आवश्यक हैरूक-रूक कर बोले या लिखे गए शब्द वाक्य नहीं बनाते। अतः वाक्य के पद निरंतर प्रवाह में पास-पास बोले या लिखे जाने चाहिए।

(5) पदक्रम  वाक्य में पदों का एक निश्चित क्रम होना चाहिए। 'सुहावनी है रात होती चाँदनीइसमें पदों का क्रम व्यवस्थित  होने से इसे वाक्य नहीं मानेंगे। इसे इस प्रकार होना चाहिए- 'चाँदनी रात सुहावनी होती है'

(6) अन्वय  अन्वय का अर्थ हैमेल। वाक्य में लिंगवचनपुरुषकालकारक आदि का क्रिया के साथ ठीक-ठीक मेल होना चाहिएजैसे- 'बालक और बालिकाएँ गई', इसमें कर्ता क्रिया अन्वय ठीक नहीं है। अतः शुद्ध वाक्य होगा 'बालक और बालिकाएँ गए'

वाक्य-विग्रह (Analysis)

वाक्य-विग्रह (Analysis) वाक्य के विभिन्न अंगों को अलग-अलग किये जाने की प्रक्रिया को वाक्य-विग्रह कहते हैं। इसे 'वाक्य-विभाजनया 'वाक्य-विश्लेषणभी कहा जाता है। 

सरल वाक्य का विग्रह करने पर एक उद्देश्य और एक विद्येय बनते है। संयुक्त वाक्य में से योजक को हटाने पर दो स्वतंत्र उपवाक्य (यानी दो सरल वाक्यबनते हैं। मिश्र वाक्य में से योजक को हटाने पर दो अपूर्ण उपवाक्य बनते है।

सरल वाक्य= 1 उद्देश्य + 1 विद्येय 

संयुक्त वाक्यसरल वाक्य + सरल वाक्य 

मिश्र वाक्यप्रधान उपवाक्य + आश्रित उपवाक्य

वाक्य का रूपान्तर

किसी वाक्य को दूसरे प्रकार के वाक्य मेंबिना अर्थ बदलेपरिवर्तित करने की प्रकिया को 'वाक्यपरिवर्तनकहते हैं। हम किसी भी वाक्य को भित्र-भित्र वाक्य-प्रकारों में परिवर्तित कर सकते है और उनके मूल अर्थ में तनिक विकार नहीं आयेगा। हम चाहें तो एक सरल वाक्य को मिश्र या संयुक्त वाक्य में बदल सकते हैं।

सरल वाक्यहर तरह के संकटो से घिरा रहने पर भी वह निराश नहीं हुआ।

संयुक्त वाक्यसंकटों ने उसे हर तरह से घेराकिन्तु वह निराश नहीं हुआ।

मिश्र वाक्ययद्यपि वह हर तरह के संकटों से घिरा थातथापि निराश नहीं हुआ।

वाक्यपरिवर्तन करते समय एक बात खास तौर से ध्यान में रखनी चाहिए कि वाक्य का मूल अर्थ किसी भी हालत में विकृत  हो। यहाँ कुछ और उदाहरण देकर विषय को स्पष्ट किया जाता है -

(सरल वाक्य से मिश्र वाक्य

सरल वाक्य -   उसने अपने मित्र का पुस्तकालय खरीदा।

मिश्र वाक्य -   उसने उस पुस्तकालय को खरीदाजो उसके मित्र का था।

सरल वाक्य -   अच्छे लड़के परिश्रमी होते हैं। 

मिश्र वाक्य -   जो लड़के अच्छे होते हैवे परिश्रमी होते हैं। 

सरल वाक्य -   लोकप्रिय कवि का सम्मान सभी करते हैं। 

मिश्र वाक्य -   जो कवि लोकप्रिय होता हैउसका सम्मान सभी करते हैं।

(सरल वाक्य से संयुक्त वाक्य

सरल वाक्य -   अस्वस्थ रहने के कारण वह परीक्षा में सफल  हो सका।

संयुक्त वाक्य -   वह अस्वस्थ था और इसलिए परीक्षा में सफल  हो सका। 

सरल वाक्य -   सूर्योदय होने पर कुहासा जाता रहा। 

संयुक्त वाक्य -   सूर्योदय हुआ और कुहासा जाता रहा। 

सरल वाक्य -   गरीब को लूटने के अतिरिक्त उसने उसकी हत्या भी कर दी। 

संयुक्त वाक्य -   उसने  केवल गरीब को लूटाबल्कि उसकी हत्या भी कर दी।

(मिश्र वाक्य से सरल वाक्य

मिश्र वाक्य -   उसने कहा कि मैं निर्दोष हूँ। 

सरल वाक्य -   उसने अपने को निर्दोष घोषित किया। 

मिश्र वाक्य -   मुझे बताओ कि तुम्हारा जन्म कब और कहाँ हुआ था। 

सरल वाक्य -   तुम मुझे अपने जन्म का समय और स्थान बताओ। 

मिश्र वाक्य -   जो छात्र परिश्रम करेंगेउन्हें सफलता अवश्य मिलेगी। 

सरल वाक्य -   परिश्रमी छात्र अवश्य सफल होंगे।

(कर्तृवाचक से कर्मवाचक वाक्य

कर्तृवाचक वाक्य -   लड़का रोटी खाता है। 

कर्मवाचक वाक्य -   लड़के से रोटी खाई जाती है। 

कर्तृवाचक वाक्य -   तुम व्याकरण पढ़ाते हो। 

कर्मवाचक वाक्य -   तुमसे व्याकरण पढ़ाया जाता है। 

कर्तृवाचक वाक्य -   मोहन गीत गाता है। 

कर्मवाचक वाक्य -   मोहन से गीत गाया जाता है।

(विधिवाचक से निषेधवाचक वाक्य

विधिवाचक वाक्य -   वह मुझसे बड़ा है। 

निषेधवाचक वाक्य -   मैं उससे बड़ा नहीं हूँ। 

विधिवाचक वाक्य -   अपने देश के लिए हरएक भारतीय अपनी जान देगा। 

निषेधवाचक वाक्य -   अपने देश के लिए कौन भारतीय अपनी जान  देगा ?

सामान्य वाक्यअशुद्धियाँ एवं उनके संशोधन

वाक्यरचना के कुछ सामान्य नियम

वाक्य को सुव्यवस्थित और संयत रूप देने को व्याकरण में 'पदक्रमकहते हैं। निर्दोष वाक्य लिखने के कुछ नियम हैं। इनकी सहायता से शुद्ध वाक्य लिखने का प्रयास किया जा सकता है। सुन्दर वाक्यों की रचना के लिए (क्रम (order), (अन्वय (co-ordination) और (प्रयोग (use) से सम्बद्ध कुछ सामान्य नियमों का ज्ञान आवश्यक है।

(क्रम

किसी वाक्य के सार्थक शब्दों को यथास्थान रखने की क्रिया को 'क्रमअथवा 'पदक्रमकहते हैं। इसके कुछ सामान्य नियम इस प्रकार हैं-

(i) हिंदी वाक्य के आरम्भ में कर्तामध्य में कर्म और अन्त में क्रिया होनी चाहिए। 

जैसे -   मोहन ने भोजन किया।  यहाँ कर्ता 'मोहन', कर्म 'भोजनऔर अन्त में क्रिया 'क्रियाहै।

(ii) उद्देश्य या कर्ता के विस्तार को कर्ता के पहले और विधेय या क्रिया के विस्तार को विधेय के पहले रखना चाहिए।

 जैसे -  अच्छे लड़के धीरे-धीरे पढ़ते हैं।

(iii) कर्ता और कर्म के बीच अधिकरणअपादानसम्प्रदान और करण कारक क्रमशः आते हैं।

 जैसे -  मुरारि ने घर में (अधिकरणआलमारी से (अपादानश्याम के लिए (सम्प्रदानहाथ से (करणपुस्तक निकाली।

(iv) सम्बोधन आरम्भ में आता है।  जैसे -  हे प्रभुमुझपर दया करें।

(v) विशेषण विशेष्य या संज्ञा के पहले आता है।  जैसे -  मेरी उजली कमीज कहीं खो गयी।

(vi) क्रियाविशेषण क्रिया के पहले आता है।  जैसे -   वह तेज दौड़ता है।

(vii) प्रश्रवाचक पद या शब्द उसी संज्ञा के पहले रखा जाता हैजिसके बारे में कुछ पूछा जाय।  जैसे -  क्या मोहन सो रहा है ?

टिप्पणीयदि संस्कृत की तरह हिंदी में वाक्यरचना के साधारण क्रम का पालन  किया जायतो इससे कोई क्षति अथवा अशुद्धि नहीं होती। फिर भीउसमें विचारों का एक तार्किक क्रम ऐसा होता हैजो एक विशेष रीति के अनुसार एक-दूसरे के पीछे आता है।

(अन्वय (मेल)

'अन्वयमें लिंगवचनपुरुष और काल के अनुसार वाक्य के विभित्र पदों (शब्दोंका एक-दूसरे से सम्बन्ध या मेल दिखाया जाता है। यह मेल कर्ता और क्रिया काकर्म और क्रिया का तथा संज्ञा और सर्वनाम का होता हैं।

कर्ता और क्रिया का मेल

(i) यदि कर्तृवाचक वाक्य में कर्ता विभक्तिरहित हैतो उसकी क्रिया के लिंगवचन और पुरुष कर्ता के लिंगवचन और पुरुष के अनुसार होंगे। 

जैसे -  करीम किताब पढ़ता है। सोहन मिठाई खाता है। रीता घर जाती है।

(ii) यदि वाक्य में एक ही लिंगवचन और पुरुष के अनेक विभक्तिरहित कर्ता हों और अन्तिम कर्ता के पहले 'औरसंयोजक आया होतो इन कर्ताओं की क्रिया उसी लिंग के बहुवचन में होगी I  जैसे -  मोहन और सोहन सोते हैं। आशाउषा और पूर्णिमा स्कूल जाती हैं।

(iii) यदि वाक्य में दो भित्र लिंगों के कर्ता हों और दोनों द्वन्द्वसमास के अनुसार प्रयुक्त हों तो उनकी क्रिया पुंलिंग बहुवचन में होगी। 

जैसे -  नर-नारी गये। राजा-रानी आये। स्त्री-पुरुष मिले। माता-पिता बैठे हैं।

(iv) यदि वाक्य में दो भित्र-भित्र विभक्तिरहित एकवचन कर्ता हों और दोनों के बीच 'औरसंयोजक आयेतो उनकी क्रिया पुंलिंग और बहुवचन में होगी। 

जैसे -  राधा और कृष्ण रास रचते हैं। बाघ और बकरी एक घाट पानी पीते हैं।

(v) यदि वाक्य में दोनों लिंगों और वचनों के अनेक कर्ता होंतो क्रिया बहुवचन में होगी और उनका लिंग अन्तिम कर्ता के अनुसार होगा। 

जैसे -  एक लड़कादो बूढ़े और अनेक लड़कियाँ आती हैं। एक बकरीदो गायें और बहुत-से बैल मैदान में चरते हैं।

(vi) यदि वाक्य में अनेक कर्ताओं के बीच विभाजक समुच्चयबोधक अव्यय 'याअथवा 'वारहे तो क्रिया अन्तिम कर्ता के लिंग और वचन के अनुसार होगी। 

जैसे -   घनश्याम की पाँच दरियाँ वा एक कम्बल बिकेगा। हरि का एक कम्बल या पाँच दरियाँ बिकेंगी। मोहन का बैल या सोहन की गायें बिकेंगी।

(vii) यदि उत्तमपुरुषमध्यमपुरुष और अन्यपुरुष एक वाक्य में कर्ता बनकर आयें तो क्रिया उत्तमपुरुष के अनुसार होगी। 

जैसे -   वह और हम जायेंगे। हरितुम और हम सिनेमा देखने चलेंगे। वहआप और मैं चलूँगा। 

गुरूजी का मत है कि वाक्य में पहले मध्यमपुरुष प्रयुक्त होता हैउसके बाद अन्यपुरुष और अन्त में उत्तमपुरुषजैसे -   तुमवह और मैं जाऊँगा।

कर्म और क्रिया का मेल

(i) यदि वाक्य में कर्ता 'नेविभक्ति से युक्त हो और कर्म की 'कोविभक्ति  होतो उसकी क्रिया कर्म के लिंगवचन और पुरुष के अनुसार होगी। 

जैसे -  आशा ने पुस्तक पढ़ी। हमने लड़ाई जीती। उसने गाली दी। मैंने रूपये दिये। तुमने क्षमा माँगी।

(ii) यदि कर्ता और कर्म दोनों विभक्तिचिह्नों से युक्त होंतो क्रिया सदा एकवचन पुंलिंग और अन्यपुरुष में होगी। 

जैसे -  मैंने कृष्ण को बुलाया। तुमने उसे देखा। स्त्रियों ने पुरुषों को ध्यान से देखा।

(iii) यदि कर्ता 'कोप्रत्यय से युक्त हो और कर्म के स्थान पर कोई क्रियार्थक संज्ञा आए तो क्रिया सदा पुंलिंगएकवचन और अन्यपुरुष में होगी। 

जैसे -  तुम्हें (तुमकोपुस्तक पढ़ना नहीं आता। अलका को रसोई बनाना नहीं आता   उसे (उसकोसमझकर बात करना नहीं आता।

(iv) यदि एक ही लिंग-वचन के अनेक प्राणिवाचक विभक्तिरहित कर्म एक साथ आएँतो क्रिया उसी लिंग में बहुवचन में होगी। 

जैसे -  श्याम ने बैल और घोड़ा मोल लिए। तुमने गाय और भैंस मोल ली।

(v) यदि एक ही लिंग-वचन के अनेक प्राणिवाचक-अप्राणिवाचक अप्रत्यय कर्म एक साथ एकवचन में आयेंतो क्रिया भी एकवचन में होगी।

 जैसे -  मैंने एक गाय और एक भैंस खरीदी। सोहन ने एक पुस्तक और एक कलम खरीदी। मोहन ने एक घोड़ा और एक हाथी बेचा।

(vi) यदि वाक्य में भित्र-भित्र लिंग के अनेक प्रत्यय कर्म आयें और वे 'औरसे जुड़े होंतो क्रिया अन्तिम कर्म के लिंग और वचन में होगी। 

जैसे -  मैंने मिठाई और पापड़ खाये। उसने दूध और रोटी खिलाई।

संज्ञा और सर्वनाम का मेल

(i) वाक्य में लिंगवचन और पुरुष के अनुसार सर्वनाम उस संज्ञा का अनुसरण करता है। जिसके बदले उसका प्रयोग होता है। जैसे-

लड़के वे ही हैं। लड़कियाँ भी ये ही हैं।

(ii) यदि वाक्य में अनेक संज्ञाओं के स्थान पर एक ही सर्वनाम आयेतो वह पुंलिंग बहुवचन में होगा। जैसे-

रमेश और सुरेश पटना गये हैदो दिन बाद वे लौटेंगे। 

सुरेशशीला और रमा आये और वे चले भी गये।

(वाक्यगत प्रयोग

वाक्य का सारा सौन्दर्य पदों अथवा शब्दों के समुचित प्रयोग पर आश्रित है। पदों के स्वरूप और औचित्य पर ध्यान रखे बिना शिष्ट और सुन्दर वाक्यों की रचना नहीं होती। प्रयोग-सम्बन्धी कुछ आवश्यक निर्देश निम्रलिखित हैं -

कुछ आवश्यक निर्देश

(i) एक वाक्य से एक ही भाव प्रकट हो। 

(ii) शब्दों का प्रयोग करते समय व्याकरण-सम्बन्धी नियमों का पालन हो। 

(iii) वाक्यरचना में अधूरे वाक्यों को नहीं रखा जाये। 

(iv) वाक्य-योजना में स्पष्टता और प्रयुक्त शब्दों में शैली-सम्बन्धी शिष्टता हो। 

(v) वाक्य में शब्दों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध हो। तात्पर्य यह कि वाक्य में सभी शब्दों का प्रयोग एक ही काल मेंएक ही स्थान में और एक ही साथ होना चाहिए। 

(vi) वाक्य में ध्वनि और अर्थ की संगति पर विशेष ध्यान देना चाहिए। 

(vii) वाक्य में व्यर्थ शब्द  आने पायें। 

(viii) वाक्य-योजना में आवश्यकतानुसार जहाँ-तहाँ मुहावरों और कहावतों का भी प्रयोग हो। 

(ix) वाक्य में एक ही व्यक्ति या वस्तु के लिए कहीं 'यहऔर कहीं 'वह', कहीं 'आपऔर कहीं 'तुम', कहीं 'इसेऔर कहीं 'इन्हें', कहीं 'उसेऔर कहीं 'उन्हें', कहीं 'उसकाऔर कहीं 'उनका', कहीं 'इनकाऔर कहीं 'इसकाप्रयोग नहीं होना चाहिए। 

(x) वाक्य में पुनरुक्तिदोष नहीं होना चाहिए। शब्दों के प्रयोग में औचित्य पर ध्यान देना चाहिए। 

(xi) वाक्य में अप्रचलित शब्दों का व्यवहार नहीं होना चाहिए। 

(xii) परोक्ष कथन (Indirect narration) हिन्दी भाषा की प्रवृत्ति के अनुकूल नहीं है। यह वाक्य अशुद्ध हैउसने कहा कि उसे कोई आपत्ति नहीं है। इसमें 'उसेके स्थान पर 'मुझेहोना चाहिए।

अन्य ध्यातव्य बातें

(1) 'प्रत्येक', 'किसी', 'कोईका प्रयोग -  ये सदा एकवचन में प्रयुक्त होते हैबहुवचन में प्रयोग अशुद्ध है  

 जैसे -  प्रत्येक व्यक्ति जीना चाहता है। 

प्रत्येक पुरुष से मेरा निवेदन है। 

कोईमैंने अब तक कोई काम नहीं किया। 

कोई ऐसा भी कह सकता है। 

 किसी व्यक्ति का वश नहीं चलता। 

किसी-किसी का ऐसा कहना है। 

किसी ने कहा था।

टिप्पणी - 'कोईऔर 'किसीके साथ 'भीका प्रयोग अशुद्ध है। जैसेकोई भी होगातब काम चल जायेगा। यहाँ 'भीअनावश्यक है। कोई 'कोऽपिका तद्भव है। 'कोईऔर 'किसीमें 'भीका भाव वर्त्तमान है।

(2) 'द्वाराका प्रयोग -  किसी व्यक्ति के माध्यम (through) से जब कोई काम होता हैतब संज्ञा के बाद 'द्वाराका प्रयोग होता हैवस्तु (संज्ञाके बाद 'सेलगता है। 

जैसे -  सुरेश द्वारा यह कार्य सम्पत्र हुआ। युद्ध से देश पर संकट छाता है।

(3) 'सबऔर 'लोगका प्रयोग -  सामान्यतः दोनों बहुवचन हैं। पर कभी-कभी 'सबका समुच्चय-रूप में एकवचन में भी प्रयोग होता है। 

जैसे -  तुम्हारा सब काम गलत होता है। 

यदि काम की अधिकता का बोध हो तो 'सबका प्रयोग बहुवचन में होगा। 

जैसे -  सब यही कहते हैं। 

हिंदी में 'सबसमुच्चय और संख्यादोनों का बोध कराता है। 

'लोगसदा बहुवचन में प्रयुक्त होता है। 

जैसे -  लोग अन्धे नहीं हैं। लोग ठीक ही कहते हैं।

कभी-कभी 'सब लोगका प्रयोग बहुवचन में होता है। 'लोगकहने से कुछ व्यक्तियों का और 'सब लोगकहने से अनगिनत और अधिक व्यक्तियों का बोध होता है। 

जैसे -  सब लोगों का ऐसा विचार है। सब लोग कहते है कि गाँधीजी महापुरुष थे।

(4) व्यक्तिवाचक संज्ञा और क्रिया का मेल -  यदि व्यक्तिवाचक संज्ञा कर्ता हैतो उसके लिंग और वचन के अनुसार क्रिया के लिंग और वचन होंगे। 

जैसे -  काशी सदा भारतीय संस्कृति का केन्द्र रही है। यहाँ कर्ता स्त्रीलिंग है। 

पहले कलकत्ता भारत की राजधानी था। यहाँ कर्ता पुंलिंग है। 

उसका ज्ञान ही उसकी पूँजी था। यहाँ कर्ता पुंलिंग है।

(5) समयसूचक समुच्चय का प्रयोग ''तीन बजे हैं। आठ बजे हैं।'' इन वाक्यों में तीन और आठ बजने का बोध समुच्चय में हुआ है।

(6) 'परऔर 'ऊपरका प्रयोग -  'ऊपरऔर 'परव्यक्ति और वस्तु दोनों के साथ प्रयुक्त होते हैं। किन्तु 'परसामान्य ऊँचाई का और 'ऊपरविशेष ऊँचाई का बोधक है। 

जैसे -  पहाड़ के ऊपर एक मन्दिर है। इस विभाग में मैं सबसे ऊपर हूँ। 

हिंदी में 'ऊपरकी अपेक्षा 'परका व्यवहार अधिक होता है। 

जैसे -  मुझपर कृपा करो। छत पर लोग बैठे हैं। गोप पर अभियोग है। मुझपर तुम्हारे एहसान हैं।

(7) 'बादऔर 'पीछेका प्रयोग -  यदि काल का अन्तर बताना होतो 'बादका और यदि स्थान का अन्तर सूचित करना होतो 'पीछेका प्रयोग होता है। 

जैसे -  उसके बाद वह आयाकाल का अन्तर। 

मेरे बाद इसका नम्बर आयाकाल का अन्तर। 

गाड़ी पीछे रह गयीस्थान का अन्तर। 

मैं उससे बहुत पीछे हूँस्थान का अन्तर।

(8) (नएनयेनईनयी का शुद्ध प्रयोग -  जिस शब्द का अन्तिम वर्ण 'याहै उसका बहुवचन 'येहोगा। 'नयामूल शब्द हैइसका बहुवचन 'नयेऔर स्त्रीलिंग 'नयीहोगा।

(गएगईगयेगयी का शुद्ध प्रयोग -  मूल शब्द 'गयाहै। उपरिलिखित नियम के अनुसार 'गयाका बहुवचन 'गयेऔर स्त्रीलिंग 'गयीहोगा।

(हुयेहुएहुयीहुई का शुद्ध प्रयोग -  मूल शब्द 'हुआहैएकवचन में। इसका बहुवचन होगा 'हुए'; 'हुयेनहीं 'हुएका स्त्रीलिंग 'हुईहोगा; 'हुयीनहीं।

(किएकियेका शुद्ध प्रयोग -  'कियामूल शब्द हैइसका बहुवचन 'कियेहोगा।

(लिएलियेका शुद्ध प्रयोग -  दोनों शुद्ध रूप हैं। किन्तु जहाँ अव्यय व्यवहृत होगा वहाँ 'लिएआयेगाजैसेमेरे लिए उसने जान दी। क्रिया के अर्थ में 'लियेका प्रयोग होगाक्योंकि इसका मूल शब्द 'लियाहै।

(चाहियेचाहिए का शुद्ध प्रयोग -  'चाहिएअव्यय है। अव्यय विकृत नहीं होता। इसलिए 'चाहिएका प्रयोग शुद्ध है; 'चाहियेका नहीं। 'इसलिएके साथ भी ऐसी ही बात है।

 



हिन्दी व्याकरण 

•   भाषा   •   लिपि   •   व्याकरण   •   वर्ण,वर्णमाला   •   शब्द   •   वाक्य   •   संज्ञा   •   सर्वनाम   •   क्रिया   •   काल   •   विशेषण   •   अव्यय   •   लिंग   •   उपसर्ग   •   प्रत्यय   •   तत्सम तद्भव शब्द   •    संधि 1   •  संधि 2   •   कारक   •   मुहावरे 1   •   मुहावरे 2   •   लोकोक्ति   •   समास 1   •   समास 2   •   वचन   •   अलंकार   •   विलोम   •   अनेकार्थी शब्द   •  अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 1   •   अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 2   •   पत्रलेखन   •   विराम चिह्न   •   युग्म शब्द   •   अनुच्छेद लेखन   •   कहानी लेखन   •   संवाद लेखन   •   तार लेखन   •   प्रतिवेदन लेखन   •   पल्लवन   •   संक्षेपण   •   छन्द   •   रस   •   शब्दार्थ   •   धातु   •   पदबंध   •   उपवाक्य   •   शब्दों की अशुद्धियाँ   •   समोच्चरित भिन्नार्थक शब्द   •   वाच्य   •   सारांश   •   भावार्थ   •   व्याख्या   •   टिप्पण   •   कार्यालयीय आलेखन   •   पर्यायवाची शब्द   •   श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द   •   वाक्य शुद्धि   •   पाठ बोधन   •   शब्द शक्ति   •   हिन्दी संख्याएँ   •   पारिभाषिक शब्दावली   •



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