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कहानी-लेखन (Story-Writing)

 


कहानी-लेखन (Story-Writing)

जीवन की किसी एक घटना के रोचक वर्णन को 'कहानीकहते हैं।

कहानी सुननेपढ़ने और लिखने की एक लम्बी परम्परा हर देश में रही हैक्योंकि क्योंकि यह मन को रमाती है और सबके लिए मनोरंजक होती है। आज हर उम्र का व्यक्ति कहानी सुनना या पढ़ना चाहता है यही कारण है कि कहानी का महत्त्व दिन-दिन बढ़ता जा रहा है। बालक कहानी प्रिय होते है। बालकों का स्वभाव कहानियाँ सुनने और सुनाने का होता है। इसलिए बड़े चाव से बच्चे अच्छी कहानियाँ पढ़ते हैं। बालक कहानी लिख भी सकते हैं। कहानी छोटे और सरल वाक्यों में लिखी जाती है।

बच्चे अपनी दादीनानी और माँ से तरह-तरह की कहानियाँ बड़ी रुचि से सुनते हैं। छोटी-छोटी कहानी लिखने में अभ्यास और कल्पना की आवश्यकता है। निम्नवर्ग के विद्यार्थियों को पहले चित्र देखकर और कहानी के संकेत पढ़कर कहानी लिखने का अभ्यास करना चाहिए। यहाँ ध्यान देने की बात है कि कहानी रोचक और स्वाभाविक हो। घटनाओं का पारस्परिक संबंध होभाषा सरल हो और कहानी से कोई--कोई उपदेश मिलता हो। अंत मेंकहानी का एक अच्छा शीर्षक या नाम दे देना चाहिए।

परिभाषाकहानी को परिभाषा के चौखटे में बाँधना एक कठिन कार्य है। फिर भीविद्वानों तथा कहानी-लेखकों ने इसकी परिभाषा अपने ढंग से गढ़ी है। मुझे सबसे अच्छी परिभाषा सुप्रसिद्ध कहानीकार प्रेमचन्द की लगती है। उन्होंने लिखा है : ''कहानी (गल्पएक रचना हैजिसमें जीवन के किसी एक अंग या मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य रहता है। उसके चरित्रउसकी शैलीउसका कथा-विन्याससब उसी एक भाव को पुष्ट करते हैं। वह एक ऐसा रमणीय उद्यान नहींजिसमें भाँति-भाँति के फूलबेल-बूटे सजे हुए हैंबल्कि एक गमला हैजिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुत्रत रूप में दृष्टिगोचर होता है।'' हिन्दी के एक दूसरे कहानीकार अज्ञेय ने कहानी की परिभाषा इस प्रकार दी है- 'कहानी जीवन की प्रतिच्छाया है और जीवन स्वयं एक अधूरी कहानी हैएक शिक्षा हैजो उम्रभर मिलती है और समाप्त नहीं होती।''

कहानी की प्रमुख विशेषताएँ    

इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ है-

(1) आज कहानी का मुख्य विषय मनुष्य हैदेव या दानव नहीं। पशुओं के लिए भी कहानी में अब कोई जगह नहीं रही। हाँबच्चों के लिए लिखी गयी कहानियों में देवदानवपशु-पक्षीमनुष्य सभी आते हैं। लेकिन श्रेष्ठ कहानी उसी को कहते हैजिसमें मनुष्य के जीवन की कोई समस्या या संवेदना व्यक्त होती है। देवीदेवताओंदानवों और पशु-पक्षियों का समय अब समाप्त हो गया।

(2) पहले कहानी शिक्षा और मनोरंजन के लिए लिखी जाती थीआज इन दोनों के स्थान पर कौतूहल जगाने में जो कहानी सक्षम होवही सफल समझी जाती है। फिर भीमनोरंजन आज भी साधारण पाठकों की माँग है। कौतूहल और मनोरंजन से अधिक हम कहानियों में मनुष्य की नयी संवेदनाओं की खोज करते हैं।

(3) आज की कहानियों में भाग्य की अपेक्षा पुरुषार्थ पर अधिक बल दिया जाता है। आज का मनुष्य यह जानने लगा है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता हैवह किसी के हाथ का खिलौना नहीं। अतएवआज की कहानियों का आधार जीवन का संघर्ष है।

(4) प्राचीन कहानियों का उद्देश्य रस का परिपाक था। आज की कहानी का लक्ष्य विविध प्रकार के चरित्रों की सृष्टि करना है। व्यक्ति-वैचित्र्य दिखाना उसका मुख्य उद्देश्य है। यही कारण है कि आज कहानी में चरित्र-चित्रण का महत्त्व अधिक बढ़ा है।

(5) पहले जहाँ कहानी का लक्ष्य घटनाओं का जमघट लगाना होता थावहाँ आज घटनाओं को महत्त्व  देकर मानव-मन के किसी एक भावविचार और अनुभूति को व्यक्त करना है। प्रेमचन्द ने इस सम्बन्ध में स्पष्ट लिखा है, ''कहानी का आधार अब घटना नहींअनुभूति है।''

(6) प्राचीन कहानी समष्टिवादी थी। सबके हितों को ध्यान में रखकर लिखी जाती थी। आज की कहानी व्यक्तिवादी हैजो व्यक्ति के 'मनोवैज्ञानिक सत्यका उद्घाटन करती है। मनोवैज्ञानिकों ने मानव-मन के जिन स्तरों की खोज की हैउन स्तरों की गहराई में उतरकर मानवीय सत्य को खोलकर उपस्थित करना आज के कहानीकार का मुख्य लक्ष्य हो गया है।

(7) पहले की उपेक्षा आज की कहानी भाषा की सरलता पर अधिक बल देती हैक्योंकि उसका उद्देश्य जीवन की गाँठों को खोलना है।

(8) पुरानी कहानियाँ अधिकतर सुखान्त होती थींकिन्तु आज की कहानियाँ मनुष्य की दुःखान्तक कथा कोउसकी जीवनगत समस्याओं और अन्तहीन संघर्षों को अधिक-से-अधिक प्रकाशित करती हैं।

सारांश यह है कि आज कहानी जीवन की प्रतिच्छाया के रूप में लिखी जा रही है। यह सब कुछ होते हुए भी सामान्य पाठक कहानी में मनोरंजन के तत्त्वों को भी ढूँढता है।

कहानी-लेखन की विधियाँ

कहानी का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार होने के कारण छात्रों से भी आशा की जाती है कि वे भी इस ओर ध्यान दें और कहानी लिखने का अभ्यास करेंक्योंकि इससे उनमें सर्जनात्मक शक्ति जगती है। इसके लिए उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे चार विधियों से कहानी लिखने का अभ्यास करें 

(1) कहानी की सहायता या आधार पर कहानी लिखना,

(2) रूपरेखा के सहारे कहानी लिखना,

(3) अधूरी या अपूर्ण कहानी को पूर्ण करना,

(4) चित्रों की सहायता से कहानी का अभ्यास करना।

(1) कहानी की सहायता या आधार पर कहानी लिखना

मूल कहानी को ध्यान से पढ़कर कहानी लिखने का अभ्यास किया जाना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि कहानी को खूब ध्यान से पढ़ा जायउसकी प्रमुख बातों या चरित्रों या घटनाओं को अलग कागज पर संकेत-रूप में लिख लिया जाय और फिर अपनी भाषा में मूल कहानी को इस तरह लिखा जाय कि कोई भी महत्त्वपूर्ण बात या घटना या प्रसंग छूटने  पाय। यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि मूल कहानी के आधार पर लिखी गयी कहानी उससे अधिक बड़ी या लम्बी  होउससे छोटी हो सकती है। इस प्रकार की कहानी लिखते समय छात्रों को अग्रंकित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

(i) कहानी का आरम्भ आकर्षक ढंग से हो 

(ii) संवाद छोटे-छोटे हों 

(iii) कहानी का क्रमिक विकास हो 

(iv) उसका अन्त स्वाभाविक हो

(v) कहानी का शीर्षक मूल कहानी का शीर्षक हो,

 (vi) भाषा सरल और सुबोध हो। 

इनके आधार पर छात्रों से कहानी लिखने का अभ्यास कराया जाना चाहिए।

(2) रूपरेखा (संकेतोंके सहारे कहानी लिखना

रूपरेखा या दिये गये संकेतों के आधार पर कहानी लिखना कठिन भी हैसरल भी। कठिन इसलिए कि संकेत अधूरे होते हैं। इसके लिए कल्पना और मानसिक व्यायाम करने की आवश्यकता पड़ती है। सरल इसलिए कि कहानी के संकेत पहले से दिये रहते हैं। यहाँ केवल खानापुरी करनी होती है। लेकिनइस प्रकार की कहानी लिखने के लिए कल्पना से अधिक काम लेना पड़ता है। ऐसी कहानी लिखने में वे ही छात्र अपनी क्षमता का परिचय दे सकते हैजिनमें सर्जनात्मक और कल्पनात्मक शक्ति अधिक होती है। इसके लिए छात्र को संवेदनशील और कल्पनाप्रवण होना चाहिए। एक उदाहरण इस प्रकार है-

संकेत

एक किसान के लड़के लड़तेकिसान मरने के निकटसबको बुलायालकड़ियों को तोड़ने को दियाकिसी से  टूटाएक-एक कर लकड़ियों तोड़ीशिक्षा। उपर्युक्त संकेतों को पढ़ने और थोड़ी कल्पना से काम लेने पर पूरी कहानी इस प्रकार बन जायेगी-

एकता

एक था किसान। उसके चार लड़के थे। परउन लड़कों में मेल नहीं था। वे आपस में बराबर लड़ते-झगड़ते रहते थे। एक दिन किसान बहुत बीमार पड़ा। जब वह मृत्यु के निकट पहुँच गयातब उसने अपने चारों लड़कों को बुलाया और मिल-जुलकर रहने की शिक्षा दी। किन्तु लड़कों पर उसकी बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। तब किसान ने लकड़ियों का गट्ठर माँगाया और लड़कों को तोड़ने को कहा। किसी से वह गट्ठर  टूटा। फिरलकड़ियाँ गट्ठर से अलग की गयीं। किसान ने अपने सभी लड़कों को बारी-बारी से बुलाया और लकड़ियों को अलग-अलग तोड़ने को कहा। सबने आसानी से ऐसा किया और लकड़ियाँ एक-एक कर टूटती गयीं। अब लड़कों की आँखें खुलीं। तभी उन्होंने समझा कि आपस में मिल-जुलकर रहने में कितना बल है।

(3) अपूर्ण कहानी को पूर्ण करना

छात्रों में कल्पना-शक्ति जगाने के लिए ऐसी कहानी लिखने का भी अभ्यास कराया जाता हैजो अधूरी या अपूर्ण है। उसको पूरा करना है। इसके लिए आवश्यक है कि अपूर्ण कहानी को ध्यान से पढ़ाया जायउसके क्रमों को समझाया जाय और उनमें परस्पर सम्बन्ध बनाते हुए सर्जनात्मक कल्पना के सहारे अधूरी कहानी को पूरा करने का अभ्यास कराया जाय। एक उदाहरण इस प्रकार है-

कौए ने गाना सुनाने के लिए ज्योंही अपनी चोंच खोलीरोटी का टुकड़ा उसके मुँह से गिर गया। रोटी का टुकड़ा ले लोमड़ी हँस-हँसकर खाने लगी और कौआ अपनी मूर्खता पर पछताने लगा। अब अगर दूसरी बार कौआ मांस का टुकड़ा ले आयेतो लोमड़ी क्या करेगी ? इस अपूर्ण कहानी को पूरा करें। यहाँ छात्र को कल्पना-शक्ति के सहारे शेष कहानी को पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए। शेष कहानी के अनेक रूप हो सकते है। इन्हें मैं छात्रों की कल्पना पर छोड़ता हूँ।

(4) चित्रों की सहायता से कहानी लिखना

चित्र भाव या विचार को जगाते हैं इनसे हमारी कल्पना-शक्ति जगती है। छात्रों में भाव और कल्पना-शक्ति को जगाने के लिए दिये गये चित्रों की सहायता से पूरी कहानी तैयार करने का अभ्यास कराया जाना चाहिए। एक उदाहरण इस प्रकार है-

मूर्ख बन्दर

एक था सेठ। उसने एक बन्दर पाला था। बन्दर सेठ से बड़ा हिला-मिला था। सेठ बन्दर को बहुत बुद्धिमान समझता थापर बन्दर तो बन्दर ही ठहरा। एक दिन की बात है। गर्मी के दिन में सेठ गहरी नींद सो रहा था। बन्दर उसे पंखा झल रहा था। एक मक्खी उड़कर आयी और सेठ के शरीर पर बैठ गयी। बन्दर बार-बार उस मक्खी को पंखे से उड़ातापर मक्खी बार-बार सेठ के शरीर पर बैठ जाती।

अन्त में बन्दर से नहीं रहा गया। बाहर से वह पत्थर का एक बड़ा-सा टुकड़ा ले आया। इस बार मक्खी सेठ की नाक पर बैठी। बन्दर ने उसी समय पत्थर के टुकड़े से उसे जोर से मारा। मक्खी तो उड़ गयीपर बेचारे सेठ की नाक टूट गयी। उनका एक दाँत भी टूट गया और वे बेहोश हो गये।

 







हिन्दी व्याकरण 

•   भाषा   •   लिपि   •   व्याकरण   •   वर्ण,वर्णमाला   •   शब्द   •   वाक्य   •   संज्ञा   •   सर्वनाम   •   क्रिया   •   काल   •   विशेषण   •   अव्यय   •   लिंग   •   उपसर्ग   •   प्रत्यय   •   तत्सम तद्भव शब्द   •    संधि 1   •  संधि 2   •   कारक   •   मुहावरे 1   •   मुहावरे 2   •   लोकोक्ति   •   समास 1   •   समास 2   •   वचन   •   अलंकार   •   विलोम   •   अनेकार्थी शब्द   •  अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 1   •   अनेक शब्दों के लिए एक शब्द 2   •   पत्रलेखन   •   विराम चिह्न   •   युग्म शब्द   •   अनुच्छेद लेखन   •   कहानी लेखन   •   संवाद लेखन   •   तार लेखन   •   प्रतिवेदन लेखन   •   पल्लवन   •   संक्षेपण   •   छन्द   •   रस   •   शब्दार्थ   •   धातु   •   पदबंध   •   उपवाक्य   •   शब्दों की अशुद्धियाँ   •   समोच्चरित भिन्नार्थक शब्द   •   वाच्य   •   सारांश   •   भावार्थ   •   व्याख्या   •   टिप्पण   •   कार्यालयीय आलेखन   •   पर्यायवाची शब्द   •   श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द   •   वाक्य शुद्धि   •   पाठ बोधन   •   शब्द शक्ति   •   हिन्दी संख्याएँ   •   पारिभाषिक शब्दावली   •



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